अंतर्राष्ट्रीय

बांग्लादेश पर बोझ बन चुके 13 लाख रोहिंग्या शरणार्थियों का भविष्य अधर में

ढाका, 13 जनवरी। बांग्लादेश के कुतुपालंग स्थित दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी शिविर में म्यांमार से भाग कर आए कम से कम रोहिंग्या समुदाय के 13 लाख लोग रह रहे हैं। सबसे पहले वर्ष 1999 में यहां शरणार्थी शिविर बनाए गए थे। उसके बाद से लगातार यहां रोहिग्याओं का आना जारी रहा है।

अब म्यांमार में और अस्थिर हालात बन जाने की वजह से यहां रहने वाले लोग अपनी मातृभूमि में लौटने को लेकर चिंतित हैं। म्यांमार में फरवरी 2021 से सैन्य शासन स्थापित होने के बाद हालात और बिगड़ गए हैं और स्थानीय विद्रोहियों के साथ सेना का संघर्ष और दमन की घटनाएं लगातार सुर्खियों में छाई रही हैं। हाल ही में म्यांमार की सेना की ओर से विद्रोहियों पर की गई बमबारी के दौरान दो बम भारतीय सीमा में भी गिरे थे।

बांग्लादेश के सूचना और संस्कृति मंत्री डॉक्टर हसन महमूद ने बताया कि म्यांमार में सेना के हमले के बाद भागकर आए लोगों के रहने के लिए यहां सीमा से सटे इलाके में जो विशाल शरणार्थी शिविर बनाए गए हैं उसका नाम “वन वेस्ट” है। यहां से केवल ढाई किलोमीटर की दूरी पर नाफ नदी और जंगलाकिरण का समतल रास्ता है जो म्यांमार जाता है। वहीं से ये सारे शरणार्थी भागकर आए हैं।

शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कमीशन (यूएनएससीआर) ने इस मामले में हस्तक्षेप कर यह सुनिश्चित किया था कि शरणार्थियों के रहने व खाने की व्यवस्था की जाएगी। उन्हें अच्छी गुणवत्ता वाले चावल, दाल, चिकित्सा के सामान और वित्तीय मदद पहुंचाई जाएगी। कई देशों ने इस मामले में बयान जारी कर म्यांमार में जनसंहार की निंदा की थी और इन्हें शरण देने के लिए बांग्लादेश की सराहना की थी। वित्तीय मदद का भी आश्वासन मिला था लेकिन अब कहीं से कोई मदद नहीं मिल रही।

हसन महमूद कहते हैं कि मुक्ति युद्ध के समय भारत ने भी लाखों बांग्लादेशियों को शरण देकर जो उदाहरण पेश किया था, वही उदाहरण बांग्लादेश आज दुनियाभर में पेश कर रहा है। इन शरणार्थियों को मानवता के नाते रखने से इनकार भी नहीं किया जा सकता और इनका आना बांग्लादेश पर लगातार बोझ बनता जा रहा है। इतनी भारी संख्या में यहां रह रहे लोगों को खाना, चिकित्सा और अन्य मौलिक सुविधाएं मुहैया कराना बांग्लादेश के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार ने शरणार्थी शिविर में रह रहे कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों से बात की तो अपनी मातृभूमि से बिछोह की एक करुण कहानी सामने आई। शिविर में रह रहे एक बुजुर्ग नजीर अहमद ने बताया कि पिछले पांच साल से वह अपने परिवार के साथ यहां रह रहे हैं। म्यांमार में खेती-बाड़ी करने वाले नजीर अपनी पत्नी और दो बच्चों को साथ लेकर आए थे। अब पत्नी का इंतकाल हो चुका है। वह इस चिंता में हैं कि जीवन में फिर कभी अपनी मातृभूमि लौट पाएंगे या नहीं।

एक अन्य शरणार्थी हमीदुल्ला अपने कुनबे के 17 लोगों के साथ यहां आए थे। पांच साल में परिवार के सदस्यों की संख्या और बढ़ गई है। उनके मन में भी अपने वतन वापसी को लेकर नजीर अहमद जैसी अनिश्चितता है।

इसी तरह से सहारा खातून दूसरी बार इस शरणार्थी शिविर में रहने आई हैं। इसके पहले 1992 में यहीं रहती थी। तब बांग्लादेश और म्यांमार के बीच हुए एक समझौते के बाद वह 2003 में स्वदेश लौट गई थीं। हालांकि बाद में वहां एक बार फिर सेना के हमले शुरू हो गये जिसमें उसके पति की जान चली गई। बेटा ऐसा लापता हुआ कि आज तक नहीं मिला। उसके बाद वह फिर से शिविर में लौट आई थीं। उन्होंने साफ कहा कि अब वे अपने देश लौटना नहीं चाहतीं।

यहां रहने वाले रोहिंग्या समुदाय के लोगों को पहचान पत्र दिए गए हैं। पूरा शरणार्थी शिविर सशस्त्र बलों की सुरक्षा घेरे में है। बावजूद इसके यहां रहने वाले लोग एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते और कभी-कभार हत्या जैसी गंभीर वारदातों को भी अंजाम देते रहते हैं।

बांग्लादेश के सूचना मंत्री हसन महमूद दावा करते हैं कि रोहिंग्याओं को पर्याप्त सुविधाएं देने की कोशिश बांग्लादेश कर रहा है लेकिन हमारी भी एक सीमा है। उन्होंने बताया कि शरणार्थी शिविरों में रहने वाले लोगों की बेहतरी के लिए एक तरफ बांग्लादेश काम कर रहा है तो दूसरी तरफ तेजी से बढ़ती इनकी जनसंख्या पर नियंत्रण बड़ी चुनौती है। इन्हें जागरूक करने और बेहतर माहौल देने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन बहुत ज्यादा लाभ नहीं हो रहा।

दरअसल रोहिंग्या समुदाय के बारे में कहा जाता है कि वे बेहद कट्टर और हिंसक प्रवृत्ति के होते हैं। इनकी हिंसक प्रवृत्ति की वजह से ही म्यांमार की सेना इनके खिलाफ हमलावर रही है। 2021 के फरवरी महीने से सेना और स्थानीय विद्रोहियों के बीच भी लगातार हमलों का दौर जारी है। 25 अगस्त 2017 को रोहिंग्या उग्रवादियों ने वहां सैन्यकर्मियों पर हमला किया था जिसमें 21 जवानों की मौत हो गई थी। उसके बाद से पूरे देश को रोहिंग्या मुक्त करने के लिए सेना ने अभियान चलाया। जिसके चलते रोहिंग्याओं को देश छोड़कर अन्यत्र शरण लेना पड़ा।

बांग्लादेश के मंत्री हसन कहते हैं कि इन शरणार्थियों की सुविधा के लिए कोई विदेशी मदद नहीं मिल रही। इसीलिए ये बांग्लादेश पर बोझ हो गए हैं। एक साल बाद ही बांग्लादेश में चुनाव है। उसके बाद सरकार क्या रुख अख्तियार करती हैं, यह बड़ा प्रश्न है। इसी बीच म्यांमार में हालात और अधिक हिंसक हो गए हैं। इस बीच शिविर में रहने वाले लोग भी एक-दूसरे पर हिंसक हमले और कई गंभीर अपराधों को अंजाम देते रहे हैं जिसकी वजह से उन पर खुफिया निगरानी भी रखनी पड़ रही है। इन लोगों का भविष्य क्या होगा, यह समय की गर्त में दफन है।

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