उत्तर प्रदेश

 ठंड के दस्तक देते ही बढ़ने लगे निमोनिया के मरीज

प्रयागराज, 02 जनवरी। कोरोना का खतरा पूरी तरह टला नहीं है। ऊपर से ठंड के दस्तक देते ही निमोनिया भी अपने पाँव पसार रहा है। तेलियरगंज स्थित जिला क्षय रोग अस्पताल के ओपीडी में सर्दी, खांसी से ग्रसित 40 से ज्यादा नए मरीज रोजाना आ रहे हैं। इनमें नवजात शिशु व 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या अधिक है। ज़्यादातर बच्चों में निमोनिया के लक्षण मिले हैं।

चिकित्सा अधिकारी डॉ प्रेम चन्द्र गौतम का कहना है कि निमोनिया सांस से जुड़ी एक गम्भीर बीमारी है। बदलते मौसम में बच्चों की देखभाल करना बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया कि सांस तेज चलना, पसली चलना या पसली धसना निमोनिया के लक्षण हैं। ऐसी स्थिति में योग्य चिकित्सक को दिखाएं व बच्चे को पर्याप्त आराम करने दें और शरीर को हाइड्रेट रखें। साथ ही ठंड से बचाव के गर्म कपड़े पहनाए रखें। निमोनिया के लक्षणों को पहचानकर समय पर जांच करा लें व इलाज शुरू कर दें तो यह ठीक हो सकता है।

डॉ गौतम ने बताया कि निमोनिया बैक्टींरिया, वायरस या केमिकल प्रदूषण की वजह से फेफड़ों में आई सूजन को निमोनिया कहा जाता है। यह एक गम्भीर इंफेक्शन या सूजन होती है जिसमें हवा की थैली में पस और अन्य तरल पदार्थ भर जाता है। निमोनिया दो प्रकार का होता है-लोबर निमोनिया और ब्रोंकाइल निमोनिया। लोबर निमोनिया फेफड़ों के एक या ज्यादा हिस्सों को प्रभावित करता है। ब्रोंकाइल निमोनिया दोनों फेफड़ों के पैचेज को प्रभावित करता है।

–बच्चों को निमोनिया से बचाव का उपाय

जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ अरुण कुमार तिवारी ने बताया कि शिशु स्वास्थ्य के मजबूत विकास में सम्पूर्ण टीकाकरण की भूमिका बहुत अहम है। निमोनिया जैसी बीमारी से बचाव में भी न्यूमोकॉकल वैक्सीन (पीसीवी) बेहद कारगर है। जो शिशु को लगभग 80 प्रतिशत तक रोगमुक्त कर देता है। यह टीका नवजात शिशु को अन्य 12 तरह की बीमारियों से बचाता है। जैसे पोलियो, ट्यूबर क्लोसिस, जैपनीज इंसेफलाइटिस, डिप्थीरिया, टेटनस, कुकर खांसी, हेपेटाइटिस बी, एच बी इन्फ्लूएंजा, मिजिल्स, रूबेला जैसी बीमारियां। यह टीका शिशु को डेढ़ माह, साढ़े तीन माह और नौ माह के होने पर लगाया जाता है।

–वयस्क नागरिकों के लिए जरूरी बात

कुछ बीमारियां व स्थितियां ऐसी हैं, जिसमें निमोनिया का खतरा अधिक होता है। इनमें शामिल हैं-धूम्रपान, मदिरापान करने वाले, डायलिसिस करवाने वाले, हृदय, फेफड़े, लीवर की बीमारियों के मरीज, मधुमेह, गम्भीर गुर्दा रोग, बुढ़ापा या कम उम्र (नवजात) एवं कैंसर व एड्स के मरीज जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

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