दिल्ली

महिलाओं के कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न के मामले में डीसीडब्ल्यू ने दिल्ली सरकार को रिपोर्ट सौंपी

नई दिल्ली, 19 सितंबर। दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने दिल्ली सरकार को रिपोर्ट सौंपी है। जिसमें सवाल उठाते हुए बताया गया है कि राजधानी में कार्यस्थल पर हो रहे यौन उत्पीड़न से बचने के लिए बनाए गए कानून (रोकथाम, निषेध और निवारण) का सुचारु रुप से पालन नहीं किया जा रहा है।

इस कानून के अन्तर्गत हर जिले में लोकल कंप्लेंट कमेटी (एलसीसी) का गठन करना अनिवार्य है। जहां उन संस्थाओं के खिलाफ शिकायतों का निवारण किया जाता है जहां दस से कम कर्मचारी काम करते हैं और मालिक ने ही यौन उत्पीड़न किया हो। दिल्ली में स्थानीय शिकायत समितियों (एलसीसी) की स्थिति का पता लगाने के लिए डीसीडब्ल्यू द्वारा दिल्ली के सभी जिलाधिकारियों को नोटिस जारी कर अपने जिले से विशेष जानकारी मांगी गई थी।

मांगी गयी जानकारी से यह निकलकर आया कि पिछले तीन वर्षों, 2019 से 2021 में स्थानीय शिकायत समिति को सिर्फ 40 शिकायतें ही प्राप्त हुयीं है। जैसे कि साउथ वेस्ट जिले में पिछले तीन वर्षों में सिर्फ तीन शिकायतों का ही निवारण किया गया, वेस्ट जिले में तो एक भी शिकायत पर कार्यवाही नहीं की गई है।

इतनी कम शिकायतें मिलने के बावजूद भी तय समय पर शिकायतों का निवारण नहीं किया गया, जो कि अत्यन्त दुःखद है। उदाहरण के तौर पर साउथ जिले में वर्ष 2020 में सिर्फ एक शिकायत प्राप्त की गयी थी। जिसका आज तक भी समाधान नहीं किया गया है। जबकि कानून में लिखा गया गया है कि समस्त जॉच कार्यवाही 90 दिनों में पूर्ण कर ली जानी चाहिए।

जांच में यह भी पाया गया है कि समितियां गठन करने में बहुत सारी अनियमितताएं थी। जबकि कानून इन समितियों के अध्यक्ष को सामाजिक कार्य के क्षेत्र से प्रतिष्ठित महिलाओं को नामित करने का आदेश देता है, जिसका पालन कई जिलों द्वारा नहीं किया जा रहा है। उदाहरणस्वरुप एक जिले की एलसीसी अध्यक्ष के रुप में उसी जिले की एसडीएम को नामित किया गया था।

वहीं दूसरे जिले में अध्यक्ष जनप्रतिनिधि के परिवार से थे। ऐसे कई जिले भी थे जिनमें जानी मानी सामाजिक संस्थाओं के सदस्यों का नामित नहीं किया गया था। यह भी पाया गया की नॉर्थ वेस्ट जिले की समिति में सभी सदस्य सरकारी अधिकारी ही थे।

इसके साथ ही डीसीडब्ल्यू को यह जानकारी भी मिली की समितियों के सुचारु रुप से संचालन हेतु समुचित संसाधन जैसे कार्यालय का स्थान, बजट एवं कर्मचारी तक नहीं भी उपलब्ध करवाए गए थे। जिससे काम में गुणवत्ता न्यूनतम रहती है। साउथ, वेस्ट व शहादरा जिले के जिलाधिकारी द्वारा प्रेषित उत्तर में बताया गया है कि उनके पास समितियों के कामकाज के लिए स्टाफ एवं कार्यालय स्थल उपलब्ध नहीं करवाया गया।

वहीं ईस्ट, शहादरा और वेस्ट ने बताया की उनको कोई भी बजट आवंटित नहीं किया गया था। जिससे समिति का संचालन किया जा सके। नई दिल्ली जिले ने बताया जब भी स्ब्ब् समिति बैठक का संचालन किया जाता है, उस हेतु व्यय राशि को जिले के कोष धनराशि का उपयोग किया गया। समितियों से उनके कामकाज के लिए उपर्युक्त बजट के अभाव में गुणवत्तपरक काम करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।

साथ ही, इन समितियों के गठन एवं कार्यों के बारे में प्रचार-प्रसार का अभाव रहा है। एक शिकायतकर्ता आज भी बड़े पैमाने पर यह नहीं जानता है कि स्ब्ब् में शिकायत करने के लिए किससे और कैसे संपर्क करना है। इस सन्दर्भ में दिल्ली महिला आयोग की अनुशंसा यह है हैं कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित शिकायतों को दर्ज करने के लिए पूरी दिल्ली में लोगों की पहुंच बढ़ाने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन एक शिकायत प्राप्त करने वाला तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए।

आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि पंजीकृत शिकायतों की कम संख्या स्ब्ब् और कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के अन्य प्रावधानों के बारे में जनजागरूकता की कमी के कारण भी हो सकती है। आयोग ने सिफारिश की है कि राज्य सरकार को यौन उत्पीड़न और अधिनियम के प्रावधानों के बारे में जनता को प्रचार प्रसार के विभिन्न माध्यमों से जागरूक करना चाहिए।

स्वाति मालीवाल ने कहा,“ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न करना एक संगीन अपराध है जिसे गंभीरता से निपटना चहिए एवं ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। स्थानीय शिकायत समितियों को स्वतंत्र और फुर्तीले तरीके से काम करना चाहिए साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चहिए कि स्स्ब् सुचारु रुप से काम करे और इनको ऑफिस, कर्मचारी, बजट भी पर्याप्त रुप से आवंटित हो। इसके अलावा, सरकार को कार्यस्थल कानून और स्थानीय शिकायत समितियों पर यौन उत्पीड़न के प्रावधानों का पर्याप्त मात्रा में प्रचार करना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि इस मामले में सरकार कार्रवाई करेगी तथा इस पर रिपोर्ट हमें 20 दिनों में सौंपेगी।

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