विरासत के बोल कार्यक्रम आयोजित
भागलपुर, 19 नवंबर। पीस सेंटर परिधि द्वारा कला केंद्र भागलपुर में शनिवार को विरासत के बोल कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन डॉक्टर सोहेल हाथों में बुद्ध की प्रतिमा पर पुष्पांजलि कर किया। उनका परिचय देते हुए सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ सोसायटी एंड सेकुलरिज्म के निदेशक इरफान इंजीनियर ने कहा कि मैं भारत की विविधता पर बात करूंगा और सबसे पहले भाषा पर बात करूंगा। भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है पर मैं कहता हूं कि भारत की राष्ट्रभाषा हिंदुस्तानी है। भारत सरकार ने 21 भाषाओं को राष्ट्रभाषा घोषित किया हुआ है। अर्थात अस्पष्ट है कि भारत की एक राष्ट्रीय भाषा नहीं है और ना हो सकती है। वो इसलिए नहीं हो सकती कि भारत की जनसंख्या की बहुत बड़ा हिस्सा हिंदी नहीं जानती।
उन्होंने कहा कि आज भाषा के नाम पर एकरूपता थोपने की कोशिश हो रही है। उसी प्रकार खानपान के नाम पर भी एक विचार को स्थापित करने की कोशिश हो रही है। क्या हम बिहार के खाने को पंजाबियों पर थोप सकते हैं। विविधता को नकारने की कोशिश हो रही। विविधता में एकता दिखाने के लिए हम धार्मिक चिन्हों प्रतीकों का ही इस्तेमाल करते हैं। हमने धर्म की दृष्टि से ही देश की एकता को प्रस्तुत करने की कोशिश की है। बैंगन हिंदुस्तान की सब्जी है पर आलू पुर्तगाल से आया, कुर्ता और कमीज तुर्की से आया। ब्लाउज अंग्रेज लेकर आए। चीनी के क्रिस्टल बनाने की तकनीक मिस्र से आई। इसीलिए हम उसे मिश्री कहते हैं। जितनी चीजें बाहर से भारत आई उतनी चीजें तो भारत से बाहर भी नहीं गई। इस तरह के मिश्रण सारी दुनिया में यह बुनियादी तत्व है सभ्यता का। कोई सभ्यता अपने आप में प्योर नहीं है। हजारों साल की सभ्यता लगातार परिवर्तित होकर हम तक पहुंचा। हर सभ्यता लगातार अपने में कुछ नया जोड़ती है और पुराने को छोड़ देती है। मेरी नजर में यह कोशिश करना कि हम एक भारतीय पहचान बनाएंगे यह भारत को खत्म करने का बड़ा प्रयास है। आप जैसा है वैसे ही भारतीय हैं हमें दूसरे की नकल करने की जरूरत नहीं है। दिल्ली से आई वेदी सिन्हा और पाखी सिन्हा ने प्रेम को संसार में नहीं बल्कि अंतर्मन में ढूंढने प्रस्तुत किए। जिसमें कभी-कभी तो कभी सूफियाना अंदाज झलक रहा था। वेदी सिन्हा, पाखी सिन्हा और सुमंत की तिकड़ी ने निर्गुण का एक अलग ही समा बांध दिया। प्रेरणा कला मंच वाराणसी के कलाकारों ने फादर आनंद के निर्देशन में नाटक अमानत की प्रस्तुति की। मुंशी प्रेमचंद की कहानी मंदिर और मस्जिद पर केंद्रित नाटक में धार्मिक विदेश के बाद बने माहौल में भी और भाईचारा जीतता है, यही इसका मूल है।
मंच संचालन करते हुए इलाहाबाद के आगे कवि अंशु मालवीय ने कहा कि विविधता और प्रेम की खोज में आये हैं। स्वेता भारती के निर्देशन में कॉल नृत्य संस्थान द्वारा बिहार के लोक गीतों की प्रस्तुति की गई। बाहर से आए सभी मेहमानों का तक़ी अहमद जावेद ने फूल देकर स्वागत किया।