राष्ट्रीय

डीसीडब्ल्यू ने फोरेंसिक नमूनों के डेटा की सुरक्षा पर दिल्ली पुलिस और एफएसएल को नोटिस जारी किया

नई दिल्ली, 24 अगस्त। दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने बुधवार को दिल्ली पुलिस और एफएसएल को नोटिस जारी किया है। डीसीडब्ल्यू ने दिल्ली पुलिस से एफएसएल के साथ पीड़ित और आरोपित के नाम और अन्य विवरण साझा करने के कारणों की जानकारी देने को कहा है। डीसीडब्ल्यू ने दिल्ली पुलिस से पूछा है कि एफएसएल को नमूने देते समय पीड़ित और आरोपी के विवरण सुरक्षित रखने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। डीसीडब्ल्यू ने एफएसएल को अपने कर्मचारियों से पीड़ित और आरोपित के विवरण सुरक्षित रखने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देने के लिए भी कहा है।

वहीं, स्वाति मालीवाल ने दिल्ली पुलिस और एफएसएल से इस संबंध में आयोग की सिफारिशों को स्वीकार नहीं करने की वजह बताने को कहा है। साथ ही उन्होंने दिल्ली पुलिस और एफएसएल से आयोग द्वारा की गई सिफारिशों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देने को कहा है। आयोग ने इस संबंध में किसी भी लंबित प्रस्ताव की जानकारी भी मांगी है।

मालीवाल कहा, “एफएसएल रिपोर्ट यौन उत्पीड़न या किसी अन्य गंभीर अपराध के मामले में निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि दिल्ली पुलिस एफएसएल के साथ आरोपितों और पीड़ितों का विवरण क्यों साझा करती है ? क्या यह भ्रष्टाचार और पक्षपात को बढ़ावा नहीं देता ? पीड़ित के साथ-साथ आरोपित की जानकारी को एफएसएल से सख्ती से सुरक्षित किया जाना चाहिए जो तब अधिक स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से काम करने में सक्षम होगा। डीसीडब्ल्यू ने इस संबंध में एक व्यवस्था बनाने के लिए दिल्ली पुलिस और एफएसएल को सिफारिश की है। इस मामले में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी गई है और मुझे उम्मीद है कि इस खामी को दूर करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएंगे।”

डीसीडब्ल्यू के प्रवक्ता सौरव ने बताया कि डीसीडब्ल्यू को फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला के दौरे और एफएसएल और दिल्ली पुलिस के साथ बातचीत के माध्यम से जानकारी मिली है कि वर्तमान में दिल्ली पुलिस एफएसएल को फोरेंसिक नमूनों के साथ मामले की एफआईआर का पूरा विवरण देती है। इसमें पीड़ित के साथ-साथ आरोपित का विवरण भी शामिल है।

दरअसल दिल्ली पुलिस द्वारा एफएसएल के रिसेप्शन पर ही यह पूरी जानकारी जमा की जाती है, जिससे एफएसएल में काम करने वाले कई कर्मचारी इस बात से वाकिफ रहते हैं कि किस सैंपल के मामले में कौन आरोपी है। इसके अलावा, पीड़ितों और अभियुक्तों की जानकारी नमूनों की जांच करने वाले कर्मचारियों के पास भी जाती है जिससे पूरी प्रक्रिया खतरे में आ जाती हैं क्योंकि मामले में भ्रष्टाचार अथवा पक्षपात की सम्भावना हो सकती है।

डीसीडब्ल्यू ने दिल्ली पुलिस के साथ-साथ एफएसएल को कई बार सिफारिश की है कि दिल्ली पुलिस द्वारा एफएसएल को प्रदान किए गए नमूनों में पीड़ित और आरोपित के साथ-साथ एफआईआर का विवरण नहीं होना चाहिए। आयोग ने सिफारिश की है कि फोरेंसिक नमूनों के लिए एक विशिष्ट पहचान कोड बनाकर इसे आसानी से क्रियान्वित किया जा सकता है।

इससे नमूने की जांच करने वालों सहित एफएसएल के कर्मचारियों तक आरोपित और पीड़ित की पहचान उजागर होने से रोकने में मदद मिलेगी। इसके माध्यम से एफएसएल में भ्रष्टाचार अथवा पक्षपात की संभावना काफी कम हो जाएगी।

स्वाति मालीवाल ने टिप्पणी की है कि आज तक दिल्ली पुलिस और एफएसएल द्वारा इस मुद्दे पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

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