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खाने की थाली पर महंगाई का तड़का

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

कोरोना के साइड इफेक्ट के साथ सबसे बड़ा साइड इफेक्ट अब खाने की थाली पर दिखाई देने लगा है। हालांकि देश-दुनिया मेें खाद्यान्नों के उत्पादन में बढ़ोतरी ही हुई है पर कोरोना और उसके बाद दुनिया के देशों में युद्ध और तनाव के हालात ने कोढ़ में खाज का काम किया है। दरअसल कोरोना के कारण सबकुछ थम जाने के बाद दुनिया के देशों ने जिस ओर सबसे अधिक ध्यान दिया है, वह कोरोना के कारण ठप हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास है। इसे अच्छा प्रयास भी माना जा सकता है क्योंकि आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाना इसलिए आवश्यक है कि विकास और रोजगार की गति उसी पर निर्भर है।

यह दूसरी बात है कि संकट के इस दौर में जहां दुनिया के देशों को अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाते हुए रोजगार बढ़ाने के समन्वित प्रयास करने चाहिए थे वहीं पहले अफगान और अब रूस-यूक्रेन युद्ध की त्रासदी में फंस कर रह गए हैं। दुनिया अभी महामारी की त्रासदी से निपट भी नहीं पाई है कि रूस-यूक्रेन युद्ध दुनिया के देशों को दो खेमों में बांट कर रख दिया है। दुनिया के देश कोरोना के कारण आई समस्याओं से निपटने के स्थान पर एक-दूसरे की टांग खिंचाई में उलझ कर रह गए हैं।

देखा जाए तो दुनिया के देशों में तनाव के कारण कच्चे तेल के भावों में जिस तरह से तेजी आई है और इस तेजी को रोकने के लिए जो प्रयास होने चाहिए थे उन्हें नजरअंदाज किया गया है। इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। आपसी खींचतान के चलते कच्चे तेल का उत्पादन और विपणन दोनों प्रभावित हुए हैं। पाम ऑयल का आयात-निर्यात प्रभावित हुआ है। तो युद्ध के कारण दुनिया के देशों में गेहूं-चावल आदि का कारोबार प्रभावित हुआ है। दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्था को इन बिगड़े हालात ने हिला कर रख दिया है।

यदि हमारे देश की बात करें तो कोरोना के पहले और बाद के हालात में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। पिछले कुछ माह से जब भी घरेलू जरूरत के सामान खरीदने जाते हैं तो पैकिंग पर हर बार बदली हुई रेट देखने को मिल रही है। जानकारों के अनुसार पिछले दो साल में खाद्य सामग्री की कीमतों में एक मोटे अनुमान के अनुसार 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी देखी जा रही है। खाद्य तेलों के भाव तो सारे रिकॉर्ड तोड़ चुके हैं तो दालों के भाव में भी तेजी देखी गई है। मसालों के भाव भी आसमान की ओर है तो डेयरी उत्पाद के भाव लगातार बढ़ रहे हैं।

देखा जाए तो खाद्य तेल, दालें और सब्जियां गरीब की थाली से दूर होती जा रही है। दरअसल, अन्य कारणों के साथ पेट्रोल, डीजल, गैस की कीमतों ने बहुत कुछ बिगाड कर रख दिया है। पेट्रोलियम पदार्थों के भाव भले सरकारों की स्थाई रेवेन्यू का माध्यम हो पर इसका प्रभाव पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। वस्तुओं का परिवहन महंगा हो रहा है तो उसकी वसूली अंततोगत्वा आम आदमी से ही होनी हैै। ऐसे में भावों में बढ़ोतरी का अनवरत दौर जारी है। एक मोटे अनुमान के अनुसार गत दो सालों में खुदरा कीमतों में 6 प्रतिशत से भी अधिक की सालाना बढ़ोतरी रही है।

सरकारों ने चाहे वह केन्द्र की हो या राज्यों की पेट्रोल-डीजल को आय का साधन बना लिया है। आए दिन पेट्रोल, डीजल, गैस के भावों में बढ़ोतरी हो रही है और इन पर करों का बोझ सीधे लोगों को प्रभावित कर रही है। यह भी सही है कि सरकार को इनसे निरंतर राजस्व मिल रहा है और अब सरकारों की रेवेन्यू का प्रमुख जरिया यह हो गया है। पर आखिर आम आदमी की दिक्कत और परेशानियों को भी समझना होगा।

भारत ही नहीं दुनिया के देशों को समझना होगा कि खाने की थाली पर महंगाई की मार नहीं पड़नी चाहिए। आखिर नागरिकों को भरपेट भोजन नहीं मिलेगा तो एक समय ऐसा आएगा कि दूसरे मुद्दे नेपथ्य में चले जाएंगे। इसलिए समय रहते इस तरह की रणनीति तय करनी होगी। जिस तरह से पानी-बिजली व अन्य वादों को लेकर मुफ्तखोर बनाया जा रहा है उससे अच्छा तो यह हो कि खाद्य वस्तुओं पर राहत दी जाए। होना तो यह चाहिए कि अनाज, तेल, दालें, सब्जियां, गैस आदि पर महंगाई की मार नहीं पड़नी चाहिए। थाली को महंगाई की मार से बचाने की ठोस योजना बनानी होगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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