उत्तर प्रदेश

ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी ब्रह्मलीन, संत शोकाकुल

-स्वतन्त्रता सेनानी जगद्गुरु शंकराचार्य पाखण्डवाद के प्रबल विरोधी रहे

वाराणसी,11 सितम्बर। ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती का 99 साल की आयु में निधन हो गया। वयोवृद्ध शंकराचार्य ने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में रविवार अपरान्ह साढ़े तीन बजे अंतिम सांस ली। स्वामी शंकराचार्य लंबे समय से बीमार चल रहे थे। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती के ब्रम्हलीन होने की जानकारी पाते ही केदारघाट स्थित श्री विद्या मठ और उनके शिष्यों में शोक की लहर दौड़ गई।

मठ से जुड़ी साध्वी पूर्णाम्बा ने बताया कि सनातन धर्म, देश और समाज के लिए उन्होंने अतुल्य योगदान दिया था। ब्रह्मीभूत शंकराचार्य के तीनों प्रमुख शिष्यों स्वामी सदानन्द सरस्वती, स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती एवं ब्रह्मचारी सुबुद्धानन्द ने बताया कि जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती स्वतन्त्रता सेनानी, रामसेतु रक्षक, गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करवाने वाले तथा रामजन्मभूमि के लिए लम्बा संघर्ष करने वाले, गौरक्षा आन्दोलन के प्रथम सत्याग्रही, रामराज्य परिषद् के प्रथम अध्यक्ष और पाखण्डवाद के प्रबल विरोधी रहे थे। आश्रम से जुड़े संतों के अनुसार स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को सोमवार को शाम पांच बजे परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि दी जाएगी। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता.पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। महज नौ साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी। इस दौरान वह उत्तर प्रदेश के काशी भी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद.वेदांगए शास्त्रों की शिक्षा ली। साल 1942 के इस दौर में वह महज 19 साल की उम्र में क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए थे क्योंकि उस समय देश में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई चल रही थी। जगतगुरु शंकराचार्य का 99वां जन्मदिन हरियाली तीज के दिन मनाया गया था।

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