‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 कनेक्टिंग द डॉट्स’ का आयोजन
नई दिल्ली, 10 सितंबर। दिल्ली शिक्षक विश्वविद्यालय में शनिवार को ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 कनेक्टिंग द डॉट्स’ विषय पर वार्ता का आयोजन किया। जिसमें एनईपी 2020 के प्रभावी कार्यान्वयन और संरचनात्मक चुनौतियां पर चर्चा की गई।
वार्ता में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया बतौर मुख्य अतिथि शामिल रहे। इस मौके पर सिसोदिया ने कहा कि देश में शिक्षा के ऊपर बहुत सी शानदार पॉलिसी बनाई गई लेकिन उनका जमीनी स्तर पर कैसे क्रियान्वयन किया जाए इसपर काम नहीं हुआ जिसकी वजह से ये नीतियां काफी हद तक सफल नहीं रही।
उन्होंने कहा कि किसी भी पॉलिसी को सफल बनाने के लिए, जमीनी स्तर पर उसके कार्यान्वयन के सभी बिन्दुओं को जोड़ना बेहद जरुरी है। इन मिसिंग डॉट्स को न जोड़ पाने की वजह से हमने बहुत कुछ खोया है।
सिसोदिया ने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि केवल नीतियां और कानून बनाना पर्याप्त होता तो ‘नो डिटेंशन’ पॉलिसी सबसे सफल प्रयोगों में से एक होता लेकिन यह एक बड़ा फेलियर साबित हुआ क्योंकि इसके क्रियान्वयन के बुनियादी बिन्दुओं को जोड़ने पर ध्यान नहीं दिया गया। इसके अनुसार सिलेबस में बदलाव नहीं किए गए, टीचर ट्रेनिंग में बदलाव नहीं किया गया, अगली क्लास में बच्चे के प्रमोशन के तौर-तरीकों पर ध्यान नहीं दिया गया और सीधे पॉलिसी लागू कर दिया गया।
उपमुख्यमंत्री ने कहा कि एनईपी 2020 के सफल क्रियान्वयन के लिए कई कानूनों की ओर रुख करने और उनमें बदलाव करने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि एनईपी में कई ऐसी चीजे है जो विभिन्न राज्यों के शिक्षा संबंधी कानूनों से काफी अलग है और यदि इन कानूनों में बदलाव नहीं किए गए और इसका भी सफल क्रियान्वयन नहीं हो पाएगा और यह केवल एक अच्छा पॉलिसी डॉक्यूमेंट बनकर रह जाएगा।
वहीं, प्रधान शिक्षा सलाहकार शैलेंद्र शर्मा ने कहा कि आरटीई 2009 के संबंध में कुछ उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि गुजरात के प्राइमरी एजुकेशन एक्ट 1961 में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य तो है लेकिन इसकी जिम्मेदारी परिवार को लेनी होगी वही यहां प्राथमिक शिक्षा के अंतर्गत पहली से सातवीं कक्षा आती है। इस क़ानून में पाठ्यक्रम, ट्रेनिंग और मूल्यांकन का कोई ज़िक्र नहीं है।