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होलाष्टक में कभी ना करें सोलह संस्कार, माना जाता है वर्जित : पं0 गौरव दीक्षित

कासगंज

ज्योतिष के ग्रंथों में ”होलाष्टक” के आठ दिन समस्त मांगलिक कार्यों में निषिद्ध कहे गए हैं। इस वर्ष 10 मार्च से 18 मार्च (होलिका दहन तक) तक होलाष्टक है। इनमें शुभ कार्य करने पर अपशकुन होता है। होलाष्टक में कभी भी विवाह, मुंडन, नामकरण आदि 16 संस्कार नहीं करने चाहिए। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर पूर्णिमा के मध्य तक किसी भी दिन ना तो नए मकान का निर्माण कार्य प्रारंभ करें और ना ही गृह प्रवेश करें।

इस संबंध में विस्तृत जानकारी शूकर क्षेत्र सोरों के ज्योतिषाचार्य पंडित गौरव दीक्षित दे रहे हैं। वे बताते हैं कि होलाष्टक के दिनों में नए मकान, वाहन, प्लॉट या प्रॉपर्टी को बेचने या खरीदने से बचें, होलाष्टक के समय में कोई भी यज्ञ, हवन आदि कार्यक्रम नहीं करना चाहिए। भारतीय ज्योतिष के अनुसार, होलाष्टक के समय में नौकरी परिवर्तन से बचना चाहिए। नई जॉब ज्वांइन करनी है तो होलाष्टक से पहले या बाद में करें। यदि अत्यंत ही आवश्यक है तो कुंडली के आधार पर किसी अच्छे योग्य ज्योतिष की सलाह ले सकते हैं।

उनका कहना है कि होलाष्टक के समय में कोई भी नया बिजनेस शुरु करने से बचना चाहिए। इस समय में ग्रह उग्र होते हैं। नए बिजनेस की शुरुआत के लिए यह समय अच्छा नहीं माना जाता है। ग्रहों की उग्रता के कारण बिजनेस में हानि होने का डर हो सकता है। होलाष्टक के समय में आप भगवान का भजन, कीर्तन, पूजा-पाठ आदि जैसे कार्य कर सकते हैं। इनके लिए किसी भी प्रकार की कोई मनाही नहीं होती है। इसके अलावा आप किसी अच्छे ज्योतिष की सलाह से आप अपने उग्र ग्रहों की शांति के लिए उपाय भी होलाष्टक के समय पर करवा सकते हैं। हिंदू धर्म में होलाष्टक के 8 दिनों तक कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है।

यह ग्रह हो जाते हैं उधर

ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक 8 ग्रह उग्र रहते हैं। इन ग्रहों में सूर्य, चंद्रमा, शनि, शुक्र, गुरु, बुध, मंगल और राहु शामिल होते हैं। इन ग्रहों के उग्र रहने से मांगलिक कार्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके कारण इन 8 दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। इस मान्यता के पीछे यह कारण है कि भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को शिव ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था।कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भस्म होने पर संसार में शोक की लहर फैल गयी थी, कामदेव की पत्नी रति द्वारा शिव से क्षमा याचना करने पर शिव जी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया इसके बाद लोगों ने खुशी मनायी। होलाष्टक का अंत दुल्हंदी के साथ होने के पीछे एक कारण यह माना जाता है।

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