हरियाणा

महिला पुनरुत्थान के लिए परुषों का संबल आवश्यक नहीं: सरसंघचालक

डॉ. भागवत ने किया अखिल भारतीय महिला चरित्र कोष का विमोचन

नागपुर, 17 अगस्त। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि भारतीय महिलाएं अपने आप में परिपूर्ण हैं। नतीजतन महिलाओं के पुनरुत्थान के लिए पुरुषों से संबल प्राप्त करने की आवश्यकता नही हैं।

सरसंघचालक डॉ. भागवत बुधवार को संघमित्रा सेवा प्रतिष्ठान तथा सेविका प्रकाशन द्वारा अखिल भारतीय महिला चरित्र कोष के प्रथम खंड का विमोचन करने के बाद संबोधित कर रहे थे। वेद काल, रामायण, महाभारत, पुराण, जैन, बौद्ध काल की महिलाओं का चरित्र इस अखिल भारतीय महिला कोष के प्रथम खण्ड मे वर्णित है। नागपुर स्थित चिटणवीस सेंटर में आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्रसेविका समिति की प्रमुख शांताक्का, महानगर कार्यवाहिका करुणा साठे, डॉ.विद्या देवधर और कार्यवाहिका राधा गोखले मंच पर उपस्थित थीं।

इस अवसर पर सरसंघचालक ने कहा कि भारतीय महिलाएं प्राचीनकाल से चिदरूपा और जगतजननी हैं। पुरुषों को महिलाओं कि चिंता करने की जरूरत नही है। डॉ. भागवत ने कहा कि पुरुष और महिला रथ के पहिए हैं। दोनों समान रूप से आवश्यक हैं, कोई किसी के कम या अधिक नहीं है। उन्होंने कहा कि ईश्वर की अवधारणा को लेकर विश्व के अन्य सभ्यताओं में संदेह की स्थिति है। ईश्वर पुरुष है या महिला, इसे लेकर उनमें विवाद है लेकिन भारत में ऐसे विवाद नहीं हैं। हम देवी और देवता यानी पुरुष और स्त्री दोनों को समान रूप से ब्रह्मस्वरूप मानते हैं। जब हमारे लिए दोनों अद्वैत है लेकिन जब सृष्टी की निर्माता की बात हो तो स्त्री और पुरुष द्वैत हो जाते हैं।

स्वामी विवेकानंद का संस्मरण साझा करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि जब अमेरिका में स्वामीजी से पूछा गया कि भारतीय महिलाओं के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे? तब स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि महिलाएं अपने आप में स्वयंपूर्ण हैं, मै उन्हें संदेश देने के लिए अपने आप को सक्षम नही मानता। भारतीय महिलाओं के पुनरुत्थान पर डॉ. भागवत ने कहा कि मौजूदा समय में कुछ लोग समाज के स्वभाव और बर्ताव को प्राचीन भारत से जोड़कर दुष्प्रचार करते हैं। अपने कथन को अधिक स्पष्ट करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि पश्चिमी जगत 50 वर्ष पूर्व जो बातें कह रहा था, वह हमारा समाज आज दोहरा रहा है। वहीं आज की दुनिया प्राचीन भारत के मूल्य और नीतियों पर चल रही है। डॉ. भागवत ने कहा कि इस विरोधाभासी स्थिति को हमे समझना होगा। सरसंघचालक ने कहा कि भारत पर हुए आक्रमणों के चलते हमारे यहां परदा पद्धति और रात्रि विवाह की परंपराए प्रचलित हुईं लेकिन मौजूदा समय में इन बातों की आवश्यकता नहीं है। डॉ. भागवत ने आवाहन किया कि समय के साथ जीवन पद्धति में बदलाव लाने की जरूरत है। सरसंघचालक ने कहा कि मातृशक्ति का पुनरुत्थान हुआ तो हमारी व्यवस्थाओं में अपने आप परिवर्तन होगा। उसके लिए अखिल भारतीय महिला चरित्र कोष को हर घर में स्थान मिलना चाहिए। यदि हमने इसे पढ़ा और अपने जीवन में उतारा तो परिवर्तन निश्चित होगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker