राष्ट्रीय

बीबीए के 30 दिन के संघर्ष से लौटे 1,623 बच्चों का बचपन

-16 राज्यों में चलाया गया था अभियान

-216 रेस्क्यू ऑपरेशन किए, 241 एफआईआर दर्ज

नई दिल्ली, 01 जुलाई । बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने कोरोनाकाल के दौरान न केवल बच्चों की सुरक्षा पुख्ता की, बल्कि जबरन बालश्रम में धकेले गए सैकड़ों बच्चों को इस दलदल से निकाला। बीबीए ने अपने इसी निरंतर संघर्ष के क्रम में जून माह में विशेष अभियान चलाते हुए सैकड़ों बच्चों को बालश्रम से छुटकारा दिलाने में कामयाबी पाई है।

देश भर के 16 राज्यों में इस अभियान के तहत कुल 1,623 बच्चों को छुड़ाया गया है यानी कि औसतन रोज 54 बच्चों ने बालश्रम के नर्क से मुक्ति हासिल की। इन राज्यों में 216 रेस्क्यू ऑपरेशन किए गए और 241 एफआईआर दर्ज की गईं। 222 ट्रैफिकर्स व बालश्रम करवाने वाले नियोक्ताओं को गिरफ्तार किया गया और इन पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं, जेजे एक्ट, चाइल्ड लेबर एक्ट और बंधुओं मजदूरी के तहत केस दर्ज किए गए।

इन रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान बीबीए कार्यकर्ताओं को बाल मजदूरों की कई मर्मस्पर्शी कहानियां सुनने को मिलीं। इनमें गरीबी, विस्थापन और शोषण एक समान कारक था। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा 1980 में स्थापित बीबीए ट्रैफिकिंग, गुलामी और बंधुआ मजदूरी करने वाले बच्चों को छापामार कार्रवाई के तहत छुड़ाने का काम करता है। साथ ही यह ऐसे बच्चों को त्वरित न्याय दिलाने में एवं कानूनी सहायता देने में भी मदद करता है।

इन राज्यों में चलाया गया ऑपरेशन

पिछले 30 दिनों में देश के 16 राज्यों में रेस्क्यू ऑपरेशन चलाए गए। इनमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत उत्तरी क्षेत्र के बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, पंजाब, गुजरात और हरियाणा शामिल थे। जबकि दक्षिणी राज्यों से आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल थे।

गरीबी और आर्थिक स्थिति के चलते बाल मजदूरी करने को मजबूर

बीबीए कार्यकर्ताओं ने पाया कि अधिकांश बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों से अच्छे काम और अच्छे पैसे का झूठा वादा करके ट्रैफिकिंग करके लाए गए थे। गरीबी और कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते ये बच्चे पढ़ाई के बजाए बाल मजदूरी करने को मजबूर हुए थे। इनका एक ही लक्ष्य था कि किसी तरह अपने परिवार की आर्थिक मदद करना। सैकड़ों की तादात में बच्चे या तो अपनी मर्जी से या फिर परिवार की मर्जी से ट्रैफिकर्स के साथ पैसों के लालच में महानगरों या बड़े शहरों में आए।

दर्द की कहानी बच्चों की जुबानी

-ऐसी ही कहानी है 16 साल की रेनू (परिवर्तित नाम) की, जो कि दिल्ली के एक पॉश एरिया में घरेलू सहायिका के रूप में काम कर रही थी। चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) के सामने पेश किए जाने से पहले रेनू ने खुद पर हुई प्रताड़ना बताई। रेनू ने कहा, “मुझे बचा-खुचा खाने को दिया जाता था, मारपीट की जाती थी और मेहनताना भी नहीं दिया जाता था।”

फिलहाल रेनू छत्तीसगढ़ में अपने परिवार के साथ है। रेनू को दिल्ली लाने वाले ट्रैफिकर और काम पर रखने वाले नियोक्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है। बीबीए इस मामले को देख रहे संबंधित अधिकारियों के संपर्क में है और प्रयास में है कि रेनू को उसका मेहनताना मिले और साथ ही उसके परिवार को राज्य द्वारा चलाई जा रही लाभार्थी स्कीमों से भी जोड़ा जा सके।

-इसी तरह एक बेकरी में काम कर रहे 16 साल के सुनील (परिवर्तित नाम) को भी बीबीए की टीम ने रेस्क्यू किया है। सुनील जब केवल 10 साल का था, तभी उसके शराबी पिता की मौत हो गई थी। इसके बाद उसे स्कूल छोड़ना पड़ा और जीवनयापन के लिये अपनी मां के साथ तमिलनाडु के छोटे गांव से चेन्नई आना पड़ा।

रोजीरोटी कमाने के लिए वह एक बेकरी में काम करने लगा था। उसे बहुत कम मेहनताना मिलता था और रोजाना 12 घंटे से भी ज्यादा काम करवाया जाता था। रेस्क्यू करने के बाद बीबीए की टीम ने उसका दाखिला वोकेशनल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में करवा दिया है। साथ ही बीबीए टीम प्रयास कर रही है कि सुनील और उसकी मां को राज्य सरकार की लाभार्थी स्कीमों से जोड़ा जा सके ताकि उनका जीवनयापन सुचारू रूप से चल सके।

-इसी तरह की कहानी बिहार के सीतामढ़ी जिले के रहने वाले 13 साल के सोनू (परिवर्तित नाम) की भी है। सोनू को सीतामढ़ी जिले की एक वेल्डिंग शॉप से छुड़ाया गया है। सोनू के परिवार में माता-पिता व दो बड़ी बहनें हैं। पिता पुणे में दिहाड़ी मजदूर हैं और परिवार के इकलौते कमाने वाले भी। बहनों की शादी के लिए पिता ने काफी कर्ज ले रखा था और इसी को चुकाने के लिए सोनू को भी बाल मजदूरी के दलदल में आना पड़ा।

रेस्क्यू के बाद बीबीए टीम ने सोनू का दाखिला गांव के ही स्कूल में 7वीं कक्षा में करवा दिया है। बीबीए आंदोलन के निदेशक मनीश शर्मा ने बताया कि हमारा फोकस जबरन बालश्रम में धकेले गए बच्चों को छुड़ाने पर और उनकी शिक्षा पर रहता है। उन्होंने कहा, हाल ही में हमने बड़ी संख्या में जबरन बाल मजदूरी में धकेले गए बच्चों को छुड़ाने में कामयाबी हासिल की है।

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