उत्तर प्रदेश

घर से बाहर निकलते समय बार-बार लगे कि ताला बंद है कि नहीं, ये गंभीर बीमारी अल्जाइमर का संकेत

’वर्ल्ड अल्जाइमर डे’ के पूर्व संध्या पर विशेष , 65 वर्ष की उम्र के बाद इस रोग के होने का रहता है खतरा

वाराणसी,20 सितम्बर। घर से बाहर निकलते समय दरवाजे में ताला बंद करने के बावजूद बार-बार लगे कि ताला बंद किया है कि नहीं तो ये गंभीर बीमारी अल्जाइमर का संकेत हो सकता है। समय पर इसका उपचार शुरू न होने पर यह रोग इस कदर बढ़ता है कि व्यक्ति अपने परिवारजनों को भी नहीं पहचान पाता। यहां तक कि वह खुद की भी पहचान भूल जाता है। ये भूलने का संकट अक्सर 65 वर्ष से अधिक के उम्र के लोगों को होता है, लेकिन कई युवाओं में भी देखने को मिल रहा है। जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाॅ. संदीप चौधरी बताते हैं कि न्यूरो से जुड़ी इस गंभीर बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए ही दुनियाभर में प्रत्येक वर्ष 21 सितम्बर को ’वर्ल्ड अल्जाइमर डे’ मनाया जाता है।

कबीरचौरा स्थित शिव प्रसाद गुप्त मण्डलीय चिकित्सालय के मनोरोग विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डाॅ. रविन्द्र कुशवाहा बताते हैं कि दिमाग में प्रोटीन की संरचना में गड़बड़ी के कारण अल्जाइमर के समस्या की शुरुआत होती है। दरअसल प्रोटीन की संरचना में गड़बड़ी से ब्रेन में कुछ ऐसे अवांछित तत्व एकत्र होने लगते हैं जो धीरे-धीरे मेमोरी के सेल्स को नष्ट करना शुरू कर देते हैं। नतीजा होता है कि व्यक्ति की याददाश्त कमजोर होती जाती है और वह अल्जाइमर का शिकार हो जाता है। अल्जाइमर रोग डिमेंशिया बीमारी का ही एक प्रकार है जो अधिकांशतः बुजुर्गो में होता है।

इस रोग से पीड़ित सेवानिवृत्त बैंककर्मी रामचरण शर्मा परिवर्तित नाम के परिजन बताते हैं कि 67 वर्षीय उनके पिता की उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनके भूलने की समस्या गंभीर होती जा रही थी। चश्मा, पर्स खुद कहीं रखकर उसे भूलने की बात तो सामान्य रही। पर जब दामाद के साथ घर आयी बेटी को जब वह पहचान नहीं सके तब हम सभी को यह एहसास हो गया कि उनकी यादाश्त तेजी से कमजोर हो रही है। शिव प्रसाद गुप्त मण्डलीय चिकित्सालय में दिखाने पर पता चला कि वह अल्जाइमर रोग के शिकार हो चुके हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति ईश्वरगंगी की रहने वाली 70 वर्षीय अपर्णा घोष परिवर्तित नाम की भी रही । पड़ोस में स्थित मंदिर से घर लौटते समय अक्सर ही वह रास्ता भूल जाती थी। पड़ोसियों की नजर जब भटकती हुई अपर्णा घोष पर पड़ती थी तब वह उन्हें उनके घर पहुंचाते थे। परिजनों ने जब उनका उपचार मण्डलीय चिकित्सालय में शुरू कराया तब पता चला कि वह भी अल्जाइमर से पीड़ित हैं। उपचार शुरू होने के बाद अपर्णा व रामचरण की हालत में अब काफी सुधार है । मनोचिकित्सक डाॅ कुशवाहा बताते हैं कि मण्डलीय चिकित्सालय के मानसिक मनोरोग विभाग की ओपीडी में हर माह ऐसे चार.पांच बुजुर्ग आते हैं जो अल्जाइमर रोग के शिकार होते हैं। वह बताते हैं कि यह ऐसा रोग है जिसका लक्षण दिखते ही उपचार शुरू कर देना चाहिए। वर्ना उपचार जितनी देर से शुरू होगा, मरीज की याददाश्त उतनी ही जा चुकी होगी। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि अल्जाइमर से जा चुकी याददाश्त को लौटाया नहीं जा सकता, लेकिन शेष रह गयी याददाश्त को दवाओं से रोका जा सकता है। ऐसे मरीजों के साथ उपचार के साथ.साथ परिजनों की सहानुभूति भी जरूरी होती है।

-यह है अल्जाइमर के लक्षण.

रखी हुई चीजों को भूल जाना

कुछ भी याद करने, निर्णय लेने की क्षमता कमजोर होना

रात में नींद का न आना

डिप्रेशन में रहना और हमेशा भयभीत रहना

एक ही सवाल को बार-बार दोहराना

कपड़ों का उल्टा-सीधा पहनना

चिड़चिड़ापन और परिजनों पर गुस्सा करना

दैनिक कार्यो को भी भूल जाना

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