बिहार

आखिर कब खत्म होगी कोसी-सीमांचल वासियों का ”वनवास”, क्या इस वर्ष पटरियों पर दौड़ पायेगी ट्रेन?

फारबिसगंज, 08 नवम्बर। फारबिसगंज समेत कोसी सीमांचल वासियों का 14 वर्षों से जारी ”वनवास” आखिर कब समाप्त होगा। ये सवाल क्षेत्र के सभी लोगों का है आखिर कब दौड़ेंगी फारबिसगंज-सहरसा रेलखंड पर रेल गाड़ियां ? 2008 कुसहा त्रासदी के बाद से ही नहीं दौड़ रही है इस रूट में ट्रेन।

बरहाल इन दिनों हर अगले महीने किसी न किसी अधिकारियों द्वारा इस रेलखंड पर ट्रेन चलने का भरोसा दिया जाता है मगर इस बात को लेकर क्षेत्र के लोगों की आंखे पथरा गयी है। वैसे फारबिसगंज- सहरसा रेलखंड आमान परिवर्तन कार्य से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी सहित तीन राजनेताओं के संस्मरण से जुड़ा हुआ है । सबसे बड़ी बात यह कि इस रेलखंड में आंतरिक सुरक्षा से लेकर सामाजिक सरोकार तक शामिल है। वही,जानकार बताते हैं कि 1997 में तत्कालीन रेल मंत्री स्व रामविलास पासवान ने इस रेलखंड को आमान परिवर्तन के लिए पूरक रेल बजट में शामिल किया था तो सामरिक महत्व व आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से तत्कालीन प्रतिरक्षा मंत्री स्वर्गीय जॉर्ज फर्नांडिस द्वारा रक्षा बजट से आर्थिक सहायता दी गई थी। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने सामाजिक सरोकार के तहत मिथिलांचल से सीमांचल का संबंध को लेकर कोशी में रेल पुल का आधारशिला रखा था। आज तीनों राजनेता इस दुनिया में नहीं है मगर तीनों राजनेताओं के संस्मरण से जुड़ा हुआ है ।

कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस शहर में अपनी कई सभा भी की है शहर के विकास के लिए कई वादे भी किए गए लेकिन ये सिर्फ भाषण ही थे इस क्षेत्र के विधायक- सांसद उन्हीं के पार्टी के है लेकिन इन में इतनी भी हिम्मत नहीं है कि दिल्ली से विकास को खींच कर अपने क्षेत्र में लाएं। इनलोगों क्या मतलब है इन चीजों से ये साहब लोग को लोकल ट्रेन की जरूरत नहीं है इनकी पास अपनी सवारी है ही है तो क्या मतलब है इनलोगो को। मतलब तो जनता को है । खैर ये विधायक सांसद नेता अभी नींद में सोए हुए है इनको शहर के विकास और जनता के विकास से मतलब न कभी थी ना होगी। खैर आपको बात दें कि उत्तरी बिहार में रेलवे की स्थापना व विकास के रूप में कोसी पुत्र के नाम से चर्चित पूर्व रेल मंत्री स्वर्गीय ललित नारायण मिश्र का नाम बहुत ही प्रसिद्ध है। क्योंकि इन्होंने अपने बूते सन 1934 को दरभंगा से प्रतापगंज तक सीधी रेल सेवा जारी थी। वही, उसी वर्ष 1934 के भूकंप में इस रेलखंड का अस्तित्व ही समाप्त हो गया था। फिर 40 वर्षों के बाद 1975 में ललित नारायण मिश्र ने सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड पर ट्रेनों का परिचालन शुरू करवाया था। वही, रेलवे के जानकार बताते हैं कि जिस तरह से कटिहार-जोगबनी रेल खंड का आमान परिवर्तन को प्राथमिकता दी गई और 105 किलोमीटर रेल लाइनों महज महीनों भर में ही चालू कर दिया गया और ये अभी अपना मूर्त रूप ले लिया वहीं आंतरिक सुरक्षा व सामाजिक महत्त्व वाले फारबिसगंज -सहरसा रेलखंड आमान परिवर्तन को विशेष रूप से गंभीरता से नहीं लिया गया।

वही,कटिहार मंडल के डीआरएम द्वारा बार बार झूठे वादे किए गए कभी 15 अगस्त पर तो कभी गांधी जयंती तो कभी दिवाली के मौके पर ट्रेन परिचालन शुरू किया जायेगा सिर्फ झूठ ही अभी तक साबित हुआ है।

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