भारतीय ने बताया चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के सही समय: डॉ. वेदवीर आर्य
मेरठ, 23 अगस्त। डीआरडीओ के संयुक्त सचिव डॉ. वेदवीय आर्य ने कहा कि माया सुर सिद्धांत 22 फरवरी 6768 ईसा पूर्व से हैं। प्रथम बार भारतीयों ने ही चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण होने के सही समय का पता लगाया था। पाई को अपरिमेय संख्या, शून्य का आविष्कार गोलाकार त्रिकोणमिति सभी भारतीय गणितज्ञों की देन है। अल्जेब्रा शब्द भी भारतीय वेदों से ही लिया गया है। उन्होंने बताया कि संख्या सिद्धांत का कालक्रम वैदिक काल से है, जो 11500 ईसवी पूर्व का है।
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के गणित विभाग में चल रही सात दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन सोमवार को कई वरिष्ठ गणितज्ञों ने अपने विचार रखे। प्रख्यात गणितज्ञ डॉ. वेदवीर आर्य ने भारतीयों का गणित में योगदान के कालक्रम पर महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने इंडियन क्रोनोलॉजी पर 5 पुस्तकें भी लिखी है। नागपुर विवि के प्रो. देशपांडे ने कहा कि शुल्ब सूत्र और अपरिमेय संख्याओं की अनुमानित मान पर अपना भाषण दिया। उन्होंने बताया कि शुल्ब सूत्र में ही अपरिमेय संख्या का प्रयोग किया गया है और पाई का अनुमानित मान भी शुल्ब सूत्र में ही दिया गया है जबकि पाश्चात्य गणित में अपरिमेय संख्या पाई को मान्यता उन्नीसवीं ईसवीं में मिली है। वर्ग की रचना का वर्णन भी बोधायन शुल्ब सूत्र में दिया गया। ब्रीमर कॉलेज ऑफ टोरेंटो के डॉ. बृजेश खंबूलजा ने वैदिक गणित की फिलॉसफी पर अपने विचार रखें। उन्होंने गणित की वैदिक परिभाषा, गणित की आधुनिक परिभाषा, वैदिक गणित की परिभाषा, वैदिक दर्शन शास्त्र जैसे विषयों पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने बताया कि दर्शनशास्त्र से कोई गणित नहीं निकलता, जबकि वैदिक दर्शनशास्त्र से गणित के बड़ी संख्या में सूत्रों का निर्माण हुआ है। शास्त्रों में शून्य को परम ब्रह्म बताया गया है। कार्यशाला में डॉ. अशोक कुमार, रश्मि, रीमा गर्ग, नमन, कपिल समरेश आदि उपस्थित रहे।