तानसेन समारोह : कड़कड़ती सर्दी में भारी पड़ी सुरों की गरमाहट
ग्वालियर, 20 दिसंबर। विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में प्रात:कालीन सभा में सुदूर देश चिली से आए कला साधकों के बैंड की मधुर धुनें, पखावज व तबले की मदमाती थाप की मधुर संगत और सुरों की गरमाहट कड़कड़ती सर्दी पर भारी पड़ी। समारोह में उदयीमान एवं युवा शास्त्रीय गायिका दीपिका भिड़े भागवत मुम्बई व श्रुति फड़के देशपाण्डे पुणे की उच्चकोटि की गायकी और सुविख्यात पखावज वादक पं. डालचंद शर्मा के पखावज वादन ने संगीत सभा में अलग ही रंग भरे।
विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में मंगलवार की प्रातःकालीन सभा का शुभारंभ ध्रुपद केन्द्र भोपाल के ध्रुपद गायन के साथ हुआ। राग “भैरव” में प्रस्तुत ध्रुपद रचना के बोल थे “शिव आदि मदअंत”। पखावज पर आदित्य दीप ने संगत की। इसके बाद स्थानीय शंकर गांधर्व महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने राग “देसी” और चौताल में निबद्ध ध्रुपद बंदिश “रघुवर की छवि सुंदर..” का सुमधुर गायन किया। पखावज संगत मुन्नालाल भट्ट की रही।
चिली के कलाकारों ने पाश्चात्य मुरली से दी सुर सम्राट को स्वरांजलि
प्रातःकालीन सभा में विश्व संगीत समागम के तहत सात समंदर पार चिली के वालपराइसो शहर से आए “सेर ओ ड्यूडो बैंड” के कला साधकों ने पाश्चात्य मुरली (बांसुरी) और इलेक्ट्रॉनिक गिटार सहित अन्य वाद्य यंत्रों की संगत से मधुर धुन बिखेर कर युवा दिलों की धड़कनें बढ़ा दीं। ऐसा महसूस हुआ कि द्वापर युग में मुरलीधर ने ब्रजभूमि से अपनी मुरली की तान से मानव सभ्यता को प्रेम का जो संदेश दिया था, उससे पश्चिमी देश भी अछूते नहीं है। सेर ओ ड्यूडो बैंड के मुख्य कलाकार थॉमस कैरासको ने बांसुरी वादन और निकोलस एकॉस्टिक ने इलेक्ट्रॉनिक गिटार वादन से पाश्चात्य लोकधुनें पेश कर सुर सम्राट को स्वरांजलि अर्पित की। साथ ही तेज रिदम में पारंपरिक पाश्चात्य वादन कर श्रोताओं में जोश भर दिया।
“हूं तो जैहौं पिया के देशवा…”
मुंबई से तानसेन समारोह में पधारीं शास्त्रीय संगीत की उदयीमान गायिका दीपिका भिड़े भागवत ने अपनी माधुर्यभरी गायिकी से गुणीय रसिकों का मन मोह लिया। उन्होंने राग “जौनपुरी” और विलंबित तिलवाड़ा ताल में जब बड़ा ख्याल “हूँ तो जैहौं पिया के देशवा..” का गायन अपनी मधुर आवाज में किया तो रसिक श्रोता विरह रस में डूब गए। दीपिका भिड़े ने एक ताल में निबद्ध छोटा ख्याल ” रे तोरी शान बरक़रार रहे..” प्रस्तुत कर घरानेदार गायकी को जीवंत कर दिया। उन्होंने मीरा रचित भजन ” जागो बंसी बारे..” गाकर भक्तिरस की धारा बहाई। उनके गायन में तबले पर अनंत मोघे और हारमोनियम पर रचना शर्मा ने दिलकश संगत की।
पखावज से झरे मान-मनुहार के अनूठे सुर
नाथद्वारा परंपरा के देश के सुविख्यात पखावज वादक पंडित डालचंद शर्मा की अंगुलियों का सानिध्य पाकर पखावज से मान-मनुहार के अनूठे सुर झरने लगे। सुधीय रसिकों को एक बारगी ऐसा महसूस हुआ कि किसी प्रेयसी की अपनी पिया से मीठी- मीठी नोकझोंक चल रही है। वर्ष 2016 के तानसेन अलंकरण से सम्मानित डालचंद ने अपने वादन के लिए श्रंगार प्रधान ताल “धमार” को चुना। उन्होंने गणेश परन से पखावज वादन का आगाज़ किया। इसी क्रम में शिव स्तुति परण, झाला व रेला पेश कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने ताल चौताल में शिव परन, धाकिट के प्रकार, अतीत-अनाघात, धिन नक बाज, रेला आदि की खूबसूरत प्रस्तुति दी। उनके वादन में हारमोनियम पर इंदौर के साखरवाल की संगत कमाल की रही। पखावज पर पंडितजी के शिष्य हरिश्चन्द्र ने अच्छा साथ निभाया। तानपूरे पर योगिनी तांबे और खुशबू भारके ने साथ निभाया।
गुनगुनी धूप में श्रुति फड़के ने की सुरों की बारिश…
शास्त्रीय संगीत में किराना सांगीतिक घराने का परचम लहरा रहीं पुणे की श्रुति फड़के देशपाण्डे ने गुनगुनी धूप में मीठे-मीठे सुरों की बारिश कर रसिकों के कानों में मिश्ररी घोल दी। श्रुति फड़के ने राग “मुल्तानी” और एक ताल में विलंबित बंदिश ” गोकुल गाँव का छोरा..” का मनोहारी गायन किया। उन्होंने एक कजरी सुनाई, जिसके बोल थे “सावन की ऋतु..”। उन्होंने राग “भैरवी” में प्रसिद्ध भजन “धन्य भाग सेवा का अवसर पाया..” गाया। श्रुति फड़के के गायन में संगीता-संतोष अग्निहोत्री दंपति ने क्रमशः तबले व हारमोनियम पर बहुत शानदार संगत दी।