उत्तर प्रदेश

स्वर्णमयी अन्नपूर्णा के 56 भोग की तैयारी में रात दिन एक कर रहे कारीगर

वाराणसी,21 अक्टूबर। धनतेरस से स्वर्णमयी माता अन्नपूर्णा का दरबार आम श्रद्धालुओं के लिए खुल जायेगा। वर्ष में सिर्फ चार दिन के लिए खुलने वाले स्वर्णमयी माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु लालायित हैं। धनतेरस के पूर्व मंदिर परिसर में रंग रोगन के साथ पूरे दरबार को दुल्हन की तरह रंग बिरंगे बिजली के झालरों से सजाया गया है। दरबार में 56 भोग चढ़ाने के लिए मिष्ठान्न और नमकीन कारीगर तैयार करने में जुटे हैं। मंदिर प्रबंधन और महंत शंकरपुरी की निगरानी में कारीगर रात दिन मिष्ठान्न और नमकीन सफाई के साथ बना रहे है। इसमें महिला कारीगर भी शामिल है। इस बार सूरन का लड्डू भी बन रहा है। मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोगों के अनुसार अन्नकूट वाले दिन माता रानी का 56 भोग की झांकी सजेगी। कुल 151 कुंतल मिठाई और नमकीन दरबार में चढ़ाई जायेगी। इसमें 40 प्रकार के मिष्ठान्न व 16 तरह की नमकीन शामिल की गई है।

बताते चले स्वर्णमयी अन्नपूर्णा का दरबार आमलोगों के लिए कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की उदया तिथि 23 अक्टूबर से खुल जायेगा। दरबार में वार्षिक परंपरानुसार श्रद्धालुओं में अन्न-धन का खजाना बंटेगा।

गौरतलब हो कि वर्ष में चार दिन ही स्वर्णमयी अन्नपूर्णा के दर्शन का सौभाग्य मिलता है। वैसे माता अन्नपूर्णा का दर्शन तो श्रद्धालुओं को नियमित मिलता हैं। लेकिन, खास स्वर्णमयी प्रतिमा का दर्शन वर्ष में सिर्फ चार दिन धनतेरस पर्व से अन्नकूट तक ही मिलता है। मां की दपदप करती ममतामयी ठोस स्वर्ण प्रतिमा कमलासन पर विराजमान और रजत शिल्प में ढले काशीपुराधिपति की झोली में अन्नदान की मुद्रा में है। दायीं ओर मां लक्ष्मी और बायीं तरफ भूदेवी का स्वर्ण विग्रह है। काशी में मान्यता है कि जगत के पालन हार काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ याचक के भाव से खड़े रहते है। बाबा अपनी नगरी के पोषण के लिए मां की कृपा पर आश्रित हैं।

पौराणिक ग्रंथों में लिखा है कि यहां माता अन्नपूर्णा का वास बाबा विश्वनाथ के विराजमान होने से पहले ही हो चुका था। वर्ष 1775 में जब बाबा विश्वनाथ मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तब पार्श्वभाग में देवी अन्नपूर्णा का मंदिर मौजूद था। पूरे देश में कहीं ऐसी प्रतिमा देखने को नहीं मिलती। अन्नपूर्णा की स्वर्णमयी प्रतिमा की प्राचीनता का उल्लेख भीष्म पुराण व अन्य शास्त्रों में भी मिलता है। वर्ष में चार दिन धान का लावा-बताशा और पचास पैसे के सिक्के खजाना के रूप में वितरण की परम्परा अन्नपूर्णा दरबार में है। इसे घर के अन्नधन भंडार में रखने से विश्वास है कि वर्ष पर्यन्त धन धान्य की कमी नहीं होती। इसी विश्वास से लाखों श्रद्धालु दरबार में आते हैं।

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