दिल्ली

कांग्रेस की सांस्कृतिक दृष्टि कभी भी भारतीय नहीं रही : प्रो. अग्निहोत्री

नई दिल्ली हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि कांग्रेस की सांस्कृतिक दृष्टि कभी भी भारतीय नहीं रही।

अग्निहोत्री ने शनिवार को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में ”आचार्य रघुवीर व उनका भारतीय संस्कृति के संवर्धन में योगदान” विषय पर आयोजित एक गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस काल में इतिहास को गलत तरीके से पेश किया गया। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू पर कम्युनिस्ट लेखकों का बहुत प्रभाव और दबाव रहा, लेकिन उस दौर में भी आचार्य रघुवीर ने पंडित नेहरू को कई बार जगाने की कोशिश की। जब नेहरू ने उनकी बात नहीं मानी तो वह जन संघ के साथ चले गये।

अग्निहोत्री ने कहा कि वह दो बार राज्यसभा सांसद रहे और नेहरू को चीन की साजिशों से अवगत कराते रहे लेकिन नेहरू ने उनकी एक न सुनी। ऐसे में आचार्य खिन्न होकर जन संघ के साथ चले गये थे, लेकिन उन्होंने भ्रमण और अध्ययन कार्य हमेशा जारी रखा। वह भारतीय संस्कृति की खोज व दुनिया में भारतीय संस्कृति के संबंधों को समझाने और संजोने के कार्य में आजीवन जुटे रहे। उन्होंने चार लाख शब्दों वाला अंग्रेजी-हिन्दी तकनीकी शब्दकोश के निर्माण का महान कार्य भी पूरा किया। उन्होंने एशिया में फैली हुई भारतीय संस्कृति की खोज कर उसका संग्रह एवं संरक्षण कार्य भी किया था।

अग्निहोत्री ने इंदिरा गांधी कला केन्द्र को आचार्य रघुवीर की याद में कार्यक्रम करने पर धन्यवाद देते हुए कहा कि ऐसे राष्ट्रनायकों पर और अधिक चर्चा-परिचर्चा आयोजित किए जाने की जरूरत है। आचार्य की राजनीतिक समझ और दूरदर्शिता, निर्भीकता और स्पष्टवादिता को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता।

आचार्य रघुवीर साहित्य की अध्येता डॉक्टर शशि बाला ने गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य को देश ने लगभग भुला दिया। यह दुख की बात है। हमारे देश के लोगों को अपनी विभूतियों को समझने, पढ़ने और जानने की कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आचार्य ने भारत मां की सेवा में पूरा जीवन लगा दिया था। लेकिन 40 वर्षों तक उनके योगदान पर किसी की नजर तक नहीं गई। उनकी जीवनी वर्ष 2003 में लिखी गई। आचार्य के बारे में देश को और जानना चाहिए।

शशि बाला ने कहा कि आचार्य द्वारा रचित अंग्रेजी-संस्कृत कोष को वह प्रकाशित करवा रही हैं। जिसके तीन खंड आ चुके हैं। यह कोष नौ खंडों में प्रकाशित किया जाएगा, जिसकी तैयारी की जा रही है।

गोष्ठी में प्रोफेसर अरुण कुमार शर्मा सहित डॉक्टर केटीएस राव (पूर्व अध्यक्ष बौद्ध अध्ययन विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय) ने भी अपने विचार रखे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker