उत्तर प्रदेश

बीबीएयू के डा. पवन ने बनाई ऐसी मशीन, जो वेस्ट मैनेजमेंट में लगे कर्मियों को बचाएगी इंफेक्शन से

-इस मशीन के प्रयोग के करोड़ों रुपये की बचत भी होगी

लखनऊ, 06 सितम्बर। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के डॉ पवन कुमार चौरसिया बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की एक विधि मशीन लर्निंग एवं इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स का प्रयोग करके कचरे को मानवरहित तरीके से अलग -अलग बॉक्स में डालने की विधि तैयार की है। इस विधि के प्रयोग से अब सरकार के करोड़ो रुपये की बचत तो होगी ही, साथ ही बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट मे लगे कर्मियों को भी इंफेक्शन के खतरे से बचाया जा सकेगा।

उत्तर प्रदेश शासन द्वारा प्रदेश के विभिन्न शासकीय अस्पतालों के कर्मचारियों को बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के अंतर्गत समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे सरकार का करोड़ों रुपया खर्च होता है। इस प्रशिक्षण के अंतर्गत कर्मचारियों को अस्पताल से उत्पन्न होने वाले विभिन्न प्रकार के बायो मेडिकल कचरों के बारे में जानकारी दी जाती है एवं किस कचरे को किस बाल्टी मे डालना है, इसके बारे में बताया जाता है | जैसे, ब्लू कार्ड बॉक्स में टूटा हुआ वाईल ,शीशी, एंपुल इत्यादि एवं व्हाइट पंचर प्रूव बॉक्स में नीडिल, ब्लेड इत्यादि डालना होता है। यह सब प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिय मानव व कर्मचारियों का प्रयोग किया जाता है, जिसमें प्रायः त्रुटि होने से इन्फ़ैकशन फैलने की संभावना बनी रहती है।

इस समस्या को ध्यान में रखते हुए डॉ पवन कुमार चौरसिया ने सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफेसर डॉ रईस एहमद खान के मार्गदर्शन में साइंस एवं टेक्नोलॉजी उत्तर प्रदेश में अपनी यह विधि प्रस्तुत की, जिसे संस्था ने मंजूर कर लिया। डॉ0 पवन द्वारा विकसित इस विधि में मेडिकल वेस्ट एवं इस तरह के संपूर्ण कचरे को अलग-अलग करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की विधि मशीन लर्निंग एवं इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स का प्रयोग कर कचरे को अलग -अलग बॉक्स में डाला जा सकता है। यह प्रक्रिया पूर्णतः मानव रहित होगी। इस विधि से सरकार का कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर होने वाला खर्च कम किया जा सकता है। साथ ही अस्पताल में कर्मचारियों एवं मरीज को इन्फ़ैकशन से बचाया जा सकता है। साथ ही साथ यह तकनीक बायो मेडिकल कचरे का डिब्बा भर जाने पर अस्पताल प्रशासन अथवा वेस्ट मैनेजमेंट संस्था को, पर्यावरण में प्रदूषण फैलने से पहले स्वयं सूचित कर देगा, जिससे कचरे का समय से निस्तारण किया जा सके एवं हमारे आस –पास के वातावरण को संक्रमण मुक्त रखा रखा जा सके।

इस खोज को पूर्ण करने के लिए कंप्यूटर विज्ञानं एवं सूचना प्रोद्योगीकी विभाग, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के डॉ विपिन कुमार, एवं सूचना प्रोद्योगीकी विभाग के डॉ धीरेन्द्र पाण्डेय, डॉ अलका एवं डॉ वंदना का सहयोग लिया जा रहा है । इस मौके पर विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रोफेसर संजय सिंह ने कार्य की सराहना किया एवं विश्विद्यालय में इस तरह के प्रोजेक्ट पर अधिक से अधिक कार्य हो सके, इसके लिये अध्यापकों का उत्साहवर्धन किया।

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