नई पीढ़ी की अभ्यास में कोई दिलचस्पी नहीं: द्रोणाचार्य
नई दिल्ली
‘गुरु द्रोणाचार्य के पास ‘धनुष’ था और मेरे पास ‘तीन कलम’ है।’ हस्त लेखन कला में महारथ हासिल कर चुके द्रोणाचार्य ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि महाभारत कालीन द्रोणाचार्य के पास अर्जुन जैसे शिष्य थे, जो गुरु से मिली विद्या पर निरंतर अभ्यास करते रहते थे। लेकिन, आज कि पीढ़ी अलग है, जबकि कला को उभारने के लिये तप की जरूरत होती है।
राजधानी दिल्ली के उत्तम नगर में रहने वाले 72 वर्षीय द्रोणाचार्य की कहानी दिलचस्प है। उनकी लिखावट बोलती है। वे जैसा हाथ से लिख सकते हैं, वैसी लिखावट मशीन भी नहीं कर सकती है। लेकिन, यह हुनर उनमें अचानक नहीं आया है, बल्कि उसके पीछे वर्षों का सतत अभ्यास है। इस अभ्यास ने द्रोणाचार्य के भीतर जमी लिखावट की कला को पूरी तरह निखार दिया है।
ऐसी मान्यता है कि ईश्वर सभी को कुछ न कुछ विशेष ‘कलात्मक गुण’ देता है। कई लोग उस गुण को लगातार अभ्यास कर निखार लेते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जो ताउम्र अपनी कला को पहचानने में गुजार देते हैं। अपनी कला पर अभ्यास नहीं करते, जिससे पुरानी कला खत्म होती जा रही है।
मशीनी कला के इस युग को द्रोणाचार्य ने चुनौती दी है। वे जैसा हाथ से लिख सकते हैं, वह सुंदरता मशीनी लिखावट में नहीं है। अपने इसी हस्त लेखन की बदौलत द्रोणाचार्य ने ‘केट ग्लेडस्टोन’ अमेरिका की ओर से आयोजित विश्व हस्त लेखन में प्रथम श्रेणी का स्थान प्राप्त कर भारत का नाम रोशन किया है।
द्रोणाचार्य पहले भारत मौसम विज्ञान विभाग से जुड़े थे। 2011 में सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी। लेकिन सवाल था कि क्या किया जाए! इसी सोच-विचार के दौरान उन्होंने अपनी पुरानी कलम को उठाया और लिखना प्रारंभ कर दिया। फिर जमकर अभ्यास किया।
द्रोणाचार्य को अपने अभ्यास का सुखद अनुभव आया। केट ग्लेडस्टोन अमेरिका की तरफ से आयोजित ‘विश्व हस्त लेखन’ में वे लगातार तीन बार विफल हुये। फिर वर्ष 2018 में उन्होंने प्रथम श्रेणी का स्थान प्राप्त हुआ। आज हस्त लेखन कला के माहिर लोगों में द्रोणाचार्य की गिनती होती है।
वे कहते हैं, “गुरु द्रोणाचार्य को ईश्वर ने धनुर विद्या दी थी और मुझे ‘कलम’ की शक्ति दी है।” लेकिन वे इस बात से दुखी नजर आते हैं कि नई पीढ़ी में हस्त कला को लेकर विशेष रुचि नहीं है। वे कहते हैं, “गुरु द्रोणाचार्य के पास अर्जुन थे, जो गुरु द्वारा मिली विद्या का निरंतर अभ्यास करते थे। लेकिन, आज कि पीढ़ी कुछ विशेष करना नहीं चाहती है। कुछ बच्चे हस्त लेखन कला को सीखना तो चाहते हैं, लेकिन उसपर अभ्यास नहीं करते।
हस्त लेखन कला में पारंगत द्रोणाचार्य कहते हैं कि जब वे लिखते हैं तो ऐसा लगता है कि ईश्वर उनसे लिखवा रहा है। इसलिये उन्होंने अपनी तीनों कलम का नाम ब्रह्मा, विष्णु और महेश रखा है। द्रोणाचार्य कहते हैं, “कला को उभारने के लिये तप की जरूरत होती है। इसी तप के कारण मुझे कई बार सम्मानित किया जा चुका है।”
द्रोणाचार्य अपनी कला को पैसे के लिये नहीं बेचते हैं। वे कहते हैं, “मेरे जीवित रहते हुए कोई भी इस कला को सीख ले, ताकि कला की मृत्यु न हो। वह जिंदा रहे और लोगों को प्रेरित करती रहे।” बातचीत के क्रम में आगे वे कहते हैं, “यह पता नहीं था कि बचपन में जब पिता एवं गुरु पिटाई कर हाथों में कलम देकर लिखना सिखाते थे। वहीं कलम आगे मेरी पहचान बनेगी।”
अपने हाथों की अंगुलियों के बीच में पिता की कलम को निहारते हुए 72 वर्षीय द्रोणाचार्य बताते हैं, “पिता जो मेरे गुरु भी थे, उनकी शिक्षा का फैलाव होना चाहिये। मेरे जाने के बाद यह कला लुप्त नहीं होनी चाहिये।” आगे वे कहते हैं कि पिता द्वारा दी गई कलम मेरी जिंदगी है। हर सुबह उगते नये सूरज की तरह मैं भी कुछ नई चीज लिखने की कोशिश करता हूं।