जीव संरक्षक, पर्यावरण प्रेमी प्रकाश विजय का देहांत
सुलतानपुर, 27 अगस्त। घर-आंगन में फुदकने वाली गौरैया के वजूद को बचाने की मुहिम में ताउम्र जुटे जीव संरक्षक, पर्यावरण प्रेमी प्रकाश विजय का निधन हो गया । संकट में पड़ी गौरैया के वजूद को बचाने का उनका भागीरथ प्रयास सराहनीय रहा।
डेढ़ दशक पहले छत्तीसगढ़ से जिले में पहुंचे प्रकाश विजय ने मिशन गौरैया की स्थापना की। हजार से अधिक विद्यालयों में लाखों छात्र-छात्राओं को गौरैया एवं अन्य जीव संरक्षण के लिये जागरूक किया। लोगों को नि:शुल्क कृत्रिम घोंसले देना, खुद घोंसलों को सार्वजनिक स्थानों पर लगाना, इस कार्य के लिए औरों को प्रेरित करना उनकी दिनचर्या में शुमार था। जियो और जीने दो का मन्त्र लेकर निकले प्रकाश विजय द्वारा औरों को प्रेरित करने का यह कार्य पूर्वांचल एवं अवध के कई जिलों में ताउम्र किया । पर्यावरण संरक्षण के लिए निःस्वार्थ, निष्काम भाव से जुटे प्रकाश विजय ने गौरैया को लेकर एक नई इबारत लिखी है। गौरैया की पुनर्वापसी पर विशेष काम के जरिए उन्होंने अपनी एक नई पहचान भी बनाई ।
उनके द्वारा की गयी इस सेवा के पीछे एक घटना का हाथ है जिसका दोषी खुद को मानकर पश्चाताप स्वरूप पूरा जीवन जीवों के संरक्षण में लगाने का उन्होंने संकल्प लिया था । वर्ष 2007 की घटना है, जब वे छत्तीसगढ में थे। होटल से निकलते समय फैन का स्विच आफ करना भूल गये। शाम को लौटे तो देखा कि पंखे के चलते ही दो पक्षी बेड पर मरे पड़े हैं और उनके चूजे घोसले में चीं-चीं कर रहे हैं। इस करुणामयी दृश्य ने उनके अंतर्मन को झकझोर दिया। मृत पक्षियों को दफनाया और चूजों को होटल के नौकर की मदद से दूसरी गौरैया के घोसले में रख दिया। अनजाने में हुए इस अपराध के लिए स्वयं को दोषी मान जीवन की शेष जिन्दगी बे जुबान पक्षियों के संरक्षण का संकल्प लिया। प्रायश्चित का यही तरीका मानकर निकल पड़े। यहीं से इण्टर कालेजों, डिग्री कालेजों में बेजुबान पक्षियों के संरक्षण के साथ-साथ प्रकृति के संरक्षण के लिए भी भावी पीढ़ी को जागरूक करते रहे। प्रकाश विजय ने लोगों में सैकड़ों कृत्रिम घोसले बांटे, पानी पीने के बर्तन रखवाये व पक्षियों को दाना-पानी देने की आम जन से भी गुहार लगाई। स्कूलों में उनके सारे प्रोग्राम निःशुल्क होते रहे।
कभी गौरैया के लिए लड़े बाद में खुद के अस्तित्व की लड़ाई लड़े। मुफलिसी उनके मिशन पर भारी पड़ी। उन्हें वृद्धाश्रम में रात्रि गुजारनी पड़ी। दशक पहले प्रकाश विजय द्वारा पश्चाताप के लिए शुरू हुआ मिशन गौरया आन्दोलन बन गया था लेकिन उनकी स्वास्थ्य खराबी व लॉकडाउन के चलते आंदोलन की गति धीमी हुई और अब उनके जाने के बाद सब कुछ इतिहास हो गया। उनके आगे पीछे कोई नहीं था। उनकी जिंदगी की एक कहानी रही जो उन्हीं के साथ दफन हो गई। कुछ हसरतें भी अधूरी रह गईं। अबतो यादें ही शेष हैं। सपा के प्रदेश प्रवक्ता व पूर्व विधायक अनूप संडा उनके सुख-दुख के साथी रहे जो अंतिम समय तक मददगार भी बने रहे। पूर्व विधायक की टीम व उनके समर्थकों द्वारा प्रकाश विजय का अंतिम संस्कार गोमती नदी के तट पर किया गया।