पूर्ण क्षमा का प्रतीक है पवित्र संवत्सरी महापर्व : उदयराम मुनि
जैन संत उदितराम मुनि महाराज से आशीर्वाद लेते गौरव जैन व श्रद्वालूगण।
कई करोड़ पुण्यों का फल मिलेगा इस एक काम से : मुनि
गन्नौर। जैन संत उदितराम मुनि महाराज ने कहा कि क्षमा सबसे बड़ी चीज है और इस भावना के साथ आप पूरी दुनिया का दिल जीत सकते हैं। क्षमा ऐसी चीज है, जिससे आत्मशुद्धिकरण होता है। मुनिश्री बुधवार को जैन स्थानक में प्रवचनों की रसधारा प्रवाहित कर रहे थे। जैन संत उदितराम मुनि ने कहा कि जैन धर्म और संस्कृति में संवत्सरी को महापर्व की संज्ञा दी गई है और इसे एक आध्यात्मिक पर्व माना गया है। महापर्व संवत्सरी का पावन दिन सबके लिए एक विशेष प्रेरणा लेकर आता है। यह दिन वास्तव में प्रतिक्रमण, आत्म-निरीक्षण, आत्म-परीक्षण का दिन है। आलोचना से हमारे भवों-भवों के संचित कर्म क्षय होते हैं। इस दौरान संवत्सरी पर्व पर जैन धर्मावलंबी जाने-अनजाने हुई गलतियों के लिए एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं। क्षमा, अहिंसा और मैत्री का पर्व है संवत्सरी। जैन धर्म की परंपरा के अनुसार पर्युषण पर्व के अंतिम दिन क्षमावाणी दिवस पर सभी एक-दूसरे से मिच्छामी दुक्कड़म कहकर क्षमा मांगते हैं। साथ ही यह भी कहा जाता है मैंने मन, वचन, काया से जाने-अनजाने आपका दिल दुखाया हो तो मैं हाथ जोड़कर आपसे क्षमा मांगता हूं। जैन धर्म के अनुसार मिच्छामी का भाव क्षमा करने और दुक्कड़म का अर्थ गलतियों से है अर्थात मेरे द्वारा मेरे द्वारा जाने-अनजाने में की गईं गलतियों के लिए मुझे क्षमा कीजिए। मुनि महाराज के अनुसार- क्षमापना से चित्त में अगाद का भाव पैदा होता है और आगाद भावयुक्त व्यक्ति मैत्री भाव उत्पन्न कर लेता है और मैत्री भाव प्राप्त होने पर व्यक्ति भाव विशुद्धि कर निर्भय हो जाता है। जीवन में अनेक व्यक्तियों से सम्पर्क होता है तो कटुता भी वर्ष भर के दौरान आ सकती है। व्यक्ति को कटुता आने पर उसे तुरंत ही मन मन में साफ कर देनी चाहिए और संवत्सरी पर अवश्य ही साफ कर लेना चाहिए। इस अवसर पर भारी संख्या में श्रावक मौजूद रहे।