(बॉलीवुड के अनकहे किस्से) टैलेंट हंट से मिला था देश को पहला सुपर स्टार राजेश खन्ना
अंग्रेजी फिल्म पत्रिका फिल्म फेयर के पुरस्कार सबसे प्रतिष्ठित और लोकप्रिय रहे हैं । साल 1965 में फिल्म फेयर और यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स कम्बाइन ने फिल्म फेयर-यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स कम्बाइन टैलेंट हंट प्रतियोगिता का आयोजन हिंदी सिनेमा में नई प्रतिभा को सामने लाने के लिया किया था। इसका एक उद्देश्य पुराने अभिनेताओं दिलीप कुमार-देव आनन्द-राज कपूर की त्रिमूर्ति से आगे की एक दूसरी पीढ़ी तैयार करना था।
यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स कम्बाइन के स्थापनाकाल से उससे व्यावसायिक हिन्दी सिनेमा बिरादरी के बड़े नाम बी. आर.चोपड़ा, बिमल रॉय, देवेन्द्र गोयल, एफ.सी. मेहरा, जी.पी. सिप्पी, एच.एस. रावेल, हेमन्त कुमार, नासिर हुसैन, जे. ओम प्रकाश, मोहन सहगल, शक्ति सामन्त और सुबोध मुखर्जी (सभी फिल्म निर्माता) जुड़े थे। हालांकि पहले भी इस तरह की प्रतियोगिताएं हो चुकी थीं, लेकिन यह प्रतियोगिता इस मायने में अलग और खास थी कि यह हर विजेता को एक फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने का लिखित अनुबंध दे रही थी ।
इस प्रतियोगिता ने लाखों युवक-युवतियों को आकर्षित किया। जतिन (राजेश खन्ना) ने तो मजाक-मजाक में ही फॉर्म भर दिया था। उन्हें नहीं पता था कि वह अन्तिम दौर में पहुंचने वाले छह प्रतियोगियों में से एक होंगे।अन्तिम छह में पहुंचने वालों में विनोद मेहरा भी थे। उनका और राजेश खन्ना का मुकाबला इतना करीबी था कि कोई नहीं कह पा रहा था कि इनमें से कौन किसको पछाड़ देगा। अंतिम फैसले के लिए सबको एक दृश्य अदा करने को दिया गया। जब जतिन की दृश्य पेश करने की बारी आई, तो वह चलकर आगे आए और अपने ही एक नाटक से एक मोनोलॉग (एकालाप) प्रस्तुत किया। यह एकालाप अपनी कमियों के एहसास से भरे हुए एक नौजवान के बारे में था जो यकीन नहीं कर पाता कि कोई भी और कैसी भी लड़की उसको प्यार कर सकती है। 12 पारखियों के सामने उसने एक अनुभवी नायक की तरह पूरी कुशलता से स्वर का उतार-चढ़ाव बदला और अंत में कुछ ठहरा। निर्णायक यह जानने को बेचैन थे कि आगे क्या हुआ? बिना घबराए, उसने लड़की का संवाद बोला। लड़की बताती है कि वह अंधी है और शायद इसी कारण जिस व्यक्ति से वह प्यार करने लगी, उसके बाहरी रंगरूप से आगे देख पाई।
जब जतिन ने दृश्य खत्म किया तो शक्ति सामंत, नासिर हुसैन, बी.आर.चोपड़ा आदि ने एक-दूसरे की तरफ देखा और जान गए कि बॉलीवुड को एक सुपर कलाकार मिल गया है । हालांकि जतिन, विनोद मेहरा को केवल एक अंक से हरा पाए थे। जतिन के साथ फरीदा जलाल- जो कुछ ही वर्ष बाद उसके साथ आराधना में काम करने वाली थीं को सह विजेता का पुरस्कार दिया गया, और उस समय पन्द्रह वर्ष की लीना चन्द्रावरकर को लड़कियों में दूसरे स्थान पर घोषित किया गया।
इस टैलेंट हंट को जीतने के साथ ही राजेश खन्ना हिंदी सिनेमा के चोटी के एक दर्जन निर्माताओं से मुख्य भूमिकाएं पाने का हकदार हो गए थे। वहीं एक गर्वित करने वाला यह एहसास भी था कि यह प्रतियोगिता उन्होंने दस हजार हिस्सा लेने वाले युवाओं को हरा कर जीती थी। अपनी राह देखती नई तकदीर के साथ जतिन ने परदे के लिए नया नाम भी अपनाने का फैसला किया। उसने अक्सर ‘जितेन्द्र’ को अपना स्क्रीन नाम बनाने के बारे में सोचा था, लेकिन रवि कपूर ने वह पहले ही अपना लिया था। हालांकि इस बारे में आज तक भ्रम है कि उन्हें राजेश खन्ना नाम किसने दिया उसके मामा के. के. तलवार ने, उसके पिता ने या बड़े भाई नरेन्द्र ने । जतिन की किस्मत शायद उसे इंद्र के विजेता जितेन्द्र से अधिक बनाने के लिए पुकार रही थी। उसे ‘राजेश’ बनना था, राजाओं का राजा; और अपने अपनाए गए नाम के अनुसार, जतिन खन्ना अन्तत: बॉक्स ऑफिस का राजा बन गया और अपने से पहले और बाद में आने वाले राजाओं से अधिक चमका।
चलते-चलते
राजेश खन्ना उर्फ जतिन कुमार ने यह टैलेंट हंट जीतने से पहले ही चेतन आनंद की एक फिल्म जिसका शीर्षक आखिरी खत (1966) था को साइन कर लिया था, जो अन्ततः भविष्य के सुपर स्टार की रिलीज होने वाली पहली फिल्म बनी। टैलेंट हंट विजेता और एक भावी स्टार को पेश करने के उद्देश्य से बनाई गई पहली फिल्म राज (1967) में उनकी दोहरी भूमिका थी, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उन्हें हीरो से उम्मीद रखे जाने वाले हरेक भाव को दिखाने का मौका मिले। उनकी तीसरी फिल्म नासिर हुसैन की बहारों के सपने थी जो आशा पारिख की लोकप्रियता और आर.डी.बर्मन के संगीत के बाबजूद नहीं चल पाई। इसी वर्ष उनकी एक अन्य फिल्म औरत भी कुछ खास नहीं कर पाई। इसके बाद आई आराधना ही उन्हें अंतत: सुपर स्टार की पदवी दिला पाई।
(लेखक, राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)