उत्तर प्रदेश

 फाइलेरिया से बचाव के लिए साल में एक बार खिलाई जाती है दवा

वाराणसी,10 नवम्बर। जब फाइलेरिया के बारे में जनमानस में जागरूकता की कमी थी, उस समय जिले में फाइलेरिया के मरीजों की जांच, उपचार के मद्देनजर रामनगर में फाइलेरिया नियंत्रण इकाई 1980 में शुरू हुआ। फाइलेरिया को लेकर उस समय जनमानस में जागरूकता की बेहद कमी थी। लोग जांच और उपचार के लिए आगे नहीं आते थे। धीरे-धीरे जागरूकता बढ़ने से वर्ष में 2-3 बार रात्रि ब्लड सर्वेक्षण अभियान शुरू हुआ। जिसमें हजारों लोगों की निःशुल्क जांच शुरु हुई। अब साल में एक बार ट्रिपल ड्रग थेरेपी-मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) अभियान चलाया जाता है। इसमें लक्षित आबादी को फाइलेरिया रोधी दवा खिलाई जाती है।

यह बातें गुरुवार को मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ संदीप चौधरी ने बतायी। उन्होंने कहा कि जनपद को वर्ष 2023 तक फाइलेरिया उन्मूलन करने की दिशा निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए नाइट ब्लड सर्वे, एमडीए अभियान एवं अन्य जांच व सर्वेक्षण अभियान के साथ जन जागरूक गतिविधियां आयोजित की जा रही है। सीएमओ ने जनमानस से अपील की है कि डेंगू, मलेरिया आदि मच्छर जनित रोगों की तरह फाइलेरिया को भी गंभीरता से लें और इसके प्रति सतर्क एवं जागरूक रहें।

– ऐसे हुई कार्यक्रम की शुरुआत

नोडल अधिकारी व अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसीएमओ) डॉ एसएस कनौजिया ने बताया कि साल 1955 में देश में राष्ट्रीय फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (एनएफसीपी) की शुरुआत हुई। इसके अंतर्गत एमडीए कार्यक्रम चलाया गया, जिसमें लोगों को दो प्रकार की दवा एलबेंडाजोल और डीईसी खिलाई गई। इसके बाद वर्ष 2019 में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर वाराणसी से ट्रिपल ड्रग थेरेपी की शुरुआत हुई, जिसमें लक्षित आबादी को तीन प्रकार की दवा एलबेंडाजोल, डीईसी और आइवर्मेक्टिन खिलाई गई। साल 2020 और 2021 में भी यह अभियान चलाकर लोगों को फाइलेरिया से बचाव की दवा खिलाई गई। साथ ही उन्होंने बताया कि फाइलेरिया नियंत्रण इकाई के साथ ही फाइलेरिया क्लीनिक के माध्यम से फाइलेरिया रोग के लक्षण वाले व्यक्तियों का रात्रि 8 बजे के बाद निःशुल्क जांच कर ब्लड स्लाइड सैंपल एकत्रीकरण का कार्य किया जाता है। जांच में पॉज़िटिव आने पर तत्काल प्रभाव से उपचार पर रखा जाता है।

– मादा मच्छर के काटने से फैलता है फाइलेरिया क्यूलेक्स फैंटीगंस

जिला मलेरिया अधिकारी शरद चंद पांडेय ने बताया कि फाइलेरिया क्यूलेक्स फैंटीगंस मादा मच्छर के काटने से फैलता है। यह वुचेरेरिया बेंक्रोंफटाई परजीवी द्वारा होता है। इस बीमारी में हाथ और पैर हाथी के पांव समान सूज जाते हैं, इसलिए इस बीमारी को हाथीपांव कहा जाता है। ज्यादातर संक्रमण अज्ञात या मौन रहते हैं और लंबे समय बाद इनका पता चल पाता है। इस बीमारी का कारगर इलाज नहीं है। इसकी रोकथाम व बचाव ही इसका समाधान है।

क्या है फाइलेरिया के लक्षण

फाइलेरिया नियंत्रण इकाई के प्रभारी और बायोलोजिस्ट डॉ अमित कुमार सिंह का कहना है कि आमतौर पर फाइलेरिया के कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते। लेकिन पसीना, सिर दर्द, हड्डी व जोड़ों में दर्द, भूख में कमी, उल्टी आदि के साथ बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्या दिखाई देती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाथी पांव और हाइड्रोसिल (अंडकोषों की सूजन) भी फाइलेरिया के लक्षण हैं। इसके लक्षण दिखने में 8 से 16 माह या अधिक समय लग सकता है। उन्होंने कहा कि फाइलेरिया का संक्रमण बचपन में ही आ जाता है, लेकिन कई सालों तक इसके लक्षण नजर नहीं आते। फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को विकलांग बना देती है।

क्या कहते हैं आंकड़ें

सर्वे अभियान के दौरान वर्ष 2018 में 995, वर्ष 2019 में 1097, वर्ष 2020 में 1073 और साल 2021 में 1202 फाइलेरिया के रोगी मिले। वहीं,अभियान के दौरान इस साल अब तक 20 नए रोगी और जिला फाइलेरिया नियंत्रण इकाई द्वारा 5 नए रोगी चिन्हित किए गए। हर साल आबादी के अनुसार 8 से 10 नए मरीज खोजे जा रहे हैं। साथ ही हर साल खोजे गए मरीजों में से 10 फीसद मरीज (ग्रेड वन) स्वस्थ हो रहे हैं।

कैसे करें बचाव

डी.ई.सी. गोली की सिर्फ एक खुराक वर्ष में एक बार लगातार पाँच वर्षों तक सेवन करना चाहिए। हाथ या पैर में कहीं चोट लगी हो या घाव हो तो फिर उसे साफ रखें। साबुन से धोएं और फिर पानी सुखाकर दवाई लगा लें,पानी जमा न होने दें और फाइलेरिया परजीवी वाहक यानि मच्छरों के लार्वा को मारने के लिए समय-समय पर छिड़काव करना, सोते वक्त हाथों और पैरों पर व अन्य खुले भागों पर सरसों या नीम का तेल लगा लें। मच्छरदानी का उपयोग करें। अपने घर के आस पास गंदे पानी का जमाव नहीं होने देना चाहिए, क्योंकि मच्छर गंदे और प्रदूषित पानी में पैदा होते हैं।

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