बिहार

शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की हुई पूजा

सहरसा,27 सितंबर। शहर के विभिन्न पूजा स्थल एवं स्थापित मंदिर मे मंगलवार को मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना की गई। पूरा शहर दुर्गा सप्तशती पाठ मंत्रो से गुंजायमान रहा।जिले के प्रमुख शक्तिपीठ उग्रतारा स्थान महिषी, कात्यायनी स्थान तथा चंडी स्थान मे बड़ी संख्या मे श्रद्धालुओ ने माता का पूजन किया।

दुर्गा मंदिर के पुजारी शशिधर झा, रविन्द्र झा,कन्हैया झा ने बताया की शारदीय नवरात्र मे शक्ति की आराधना के लिए व्रत,उपवास रखकर श्रद्धा के साथ मनाते है।उन्होने बताया कि मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। नवरात्र के दूसरे दिन इनकी पूजा की जाती है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमंडल धारण किए हैं।

उन्होने आगे बताया कि पूर्वजन्म में देवी ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।देवी ने कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं।इसीलिए उनका एक नाम अपर्णा भी है।इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया।देवता,ऋषि, सिद्धगण,मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य का सराहना की और कहा-हे देवी, आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।देवी ब्रह्मचारिणी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल, कमल, श्वेत और सुगंधित पुष्प प्रिय हैं। ऐसे में नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा को गुड़हल, कमल, श्वेत और सुगंधित पुष्प अर्पित करें। मां दुर्गा को नवरात्रि के दूसरे दिन चीनी का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से दीर्घायु का आशीष मिलता है। मां ब्रह्मचारिणी को दूध और दूध से बने व्यंजन जरूर अर्पित करें।इस अवसर पर सायंकाल मे सभी मंदिर के आगे महिलाओ ने दीप प्रज्वलित कर माता से सुख समृद्धि की कामना की।

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