श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में अगली सुनवाई 31 को
मथुरा, 25 मई । श्रीकृष्ण जन्मभूमि और ईदगाह प्रकरण में बुधवार को मथुरा की एक अदालत में सुनवाई हुई। अदालत ने वादी पक्ष से और साक्ष्य मांगे तो वादी पक्ष ने इसके लिए समय की मांग की। इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 31 मई निर्धारित की।
जिला जज की अदालत में अधिवक्ता शैलेंद्र सिंह और विधि की छात्राओं ने प्रार्थना पत्र देकर शाही ईदगाह को हटाने और कमीशन गठित करने की मांग की थी। इस अर्जी को जिला जज ने एडीजे सप्तम को सुनवाई के लिए भेज दिया था। श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में सात छात्राओं सहित दिल्ली-इलाहाबाद हाई कोर्ट के अधिवक्ताओं ने याचिका दायर कर 13.37 एकड़ जमीन पर दावा किया है। यह दावा विधि छात्रा उपासना सिंह, अनुष्का सिंह, नीलम सिंह साधना सिंह, अंकिता सिंह, डॉ. शंकुतला मिश्रा (लखनऊ विश्वविद्यालय), दिव्या निरंजन (आईसीएएफएआई देहरादून) के साथ इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ के अधिवक्ता अंकित तिवारी एडवोकेट, वरुण कुमार मिश्रा, शैलेंद्र सिंह, दिल्ली हाई कोर्ट के अधिवक्ता रंजन कमार रॉय ने किया है। विधि छात्राओं और अधिवक्ताओं ने सीपीसी के सेक्शन 92 को आधार मानते हुए यह दावा पेश किया था। इस पर न्यायालय ने वादी पक्ष से जमीन के मालिकाना हक संबंधी और दस्तावेज मांगे।
सेक्शन 92 में दावाकर्ताओं ने सभी हिन्दू समाज की ओर से प्रार्थना पत्र दिया है। सेक्शन 92 के तहत दो या दो से अधिक लोगों द्वारा एकमत होकर संस्थान के साथ हुई गड़बड़ी को जनहित में सही करने के लिए दावा किया जा सकता है। वादी अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह का कहना है कि उन्होंने सेक्शन 92 में कार्यदायी संस्था पर भी आरोप लगाए हैं। उन्होंने ईदगाह को हटाकर श्रीकृष्णभूमि को हस्तांतरित किए जाने की मांग की है। वादी पक्ष के अधिवक्ता ने न्यायालय से कागजात प्रस्तुत करने के लिए कुछ समय मांगा। इसके बाद न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई 31 मई को निर्धारित की।
श्रीकृष्ण विराजमान केस में सुनवाई गुरुवार को
श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद के मामले में वादी भगवान श्रीकृष्ण विराजमान के केस में गुरुवार को सुनवाई होगी। श्रीकृष्ण विराजमान को वादी बनाकर सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने 25 सितंबर 2020 को 13.37 एकड़ जमीन पर दावा पेश किया था। उन्होंने वर्ष 1973 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट और शाही ईदगाह के बीच हुए समझौते को गलत बताकर इसकी डिक्री को रद्द करने की मांग की है। दो साल बाद अदालत ने इस केस को सुनवाई योग्य मानते हुए स्वीकार कर लिया।