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पाकिस्तान ने चीन से मांगी भारत के 22 सीमावर्ती ठिकानों की खुफिया जानकारी

नई दिल्ली, 05 जनवरी। पाकिस्तान ने भारतीय वायु सेना के सीमावर्ती ठिकानों की खुफिया जानकारी और उनकी सैटेलाइट तस्वीरें हासिल करने के लिए चीन से सहयोग मांगा है। चीन से 22 भारतीय ठिकानों की विस्तृत उपग्रह तस्वीरें मांगी गई हैं, जिनमें से छह वायु सेना के एयरबेस हैं। यह मांग भौतिकी में एकमात्र पाकिस्तानी नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. अब्दुस सलाम से जुड़े अंतरिक्ष और ऊपरी वायुमंडल अनुसंधान आयोग के माध्यम से की गई है।

दरअसल, पाकिस्तान जानना चाहता है कि भारतीय वायु सेना सीमावर्ती क्षेत्रों में क्या गतिविधियां कर रही है, इसलिए चीन से भारतीय वायु सेना के कम से कम छह सीमावर्ती ठिकानों की विस्तृत उपग्रह तस्वीरें मांगी गई हैं। पाकिस्तान ने खुफिया जानकारी के लिए चीन से कुल 22 ठिकानों के बारे में जानकारी मांगी है। पाकिस्तान ने यह जानकारियां अपने स्पेस एंड अपर एटमॉस्फियर रिसर्च कमीशन (एसयूपीएआरसीओ) के जरिये चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (सीएनएसए) से मांगी हैं। इस आयोग के संस्थापक भौतिकी में एकमात्र पाकिस्तानी नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. अब्दुस सलाम हैं। पाकिस्तान और चीन के इन दोनों संस्थाओं के बीच एक-दूसरे से जानकारियां साझा करने के लिए दस साल का समझौता है।

दोनों संस्थाओं के बीच 2021 में हस्ताक्षरित अंतरिक्ष सहयोग रूपरेखा समझौते के तहत चीन पाकिस्तान को उपग्रह तस्वीरें दे सकता है। पाकिस्तानी आयोग से मांगी गई जानकारियों में श्रीनगर, आदमपुर, अंबाला, बठिंडा, सिरसा और भुज जैसे उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों में सक्रिय भारतीय वायुसेना के ठिकाने हैं। ये सभी भारतीय वायुसेना के पश्चिमी और दक्षिण पश्चिमी कमान का हिस्सा हैं। पाकिस्तान ने चीन से सब-मीटर रेजोल्यूशन वाली तस्वीरें मांगी हैं, जो तकनीकी क्षमता उसके पास नहीं है। इस रेजोल्यूशन की तस्वीरें व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं, लेकिन महंगी हैं। पाकिस्तानी स्पेस एंड अपर एटमॉस्फियर रिसर्च कमीशन का नेतृत्व सैन्य अधिकारी के पास है और इसका वार्षिक बजट 30 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।

पाकिस्तान की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी का मुख्यालय लाहौर में पंजाब विश्वविद्यालय में अतिरिक्त सुविधाओं के साथ पाकिस्तान के उत्तरी भाग में राजधानी इस्लामाबाद में है। पाकिस्तान में अंतरिक्ष विज्ञान और अनुसंधान के विकास में सहायता के लिए 1961 में स्थापित एजेंसी ने 1964 में काम करना शुरू किया। एजेंसी ने 1960 के दशक की शुरुआत में साउंडिंग रॉकेट का आयात और लॉन्च करना शुरू किया और रॉकेट इंजन बनाने की क्षमता हासिल की। एजेंसी ने अपने अस्तित्व के शुरुआती 30-35 वर्षों तक अनुसंधान के क्षेत्र में सीमित प्रगति के साथ अपना स्तर न्यूनतम बनाए रखा, इसीलिए उपग्रह प्रौद्योगिकी में इसकी प्रगति भी अपेक्षाकृत देर से शुरू हुई।

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