-गरीब तबका सबसे ज्यादा है परेशान
नई दिल्ली
उत्तर पश्चिमी जिले के जहांगीरपुरी दंगे को तीन दिन हो गए हैं। हिंसा की दहशत अभी भी लोगों में बरकरार है। आज भी सड़कों पर पत्थरों के टूकड़े दंगे की गवाही दे रही है। जिनको देखकर लोगों को दंगे का भयावह मंजर याद आ रहा है। लोग उन्हीं पत्थरों को देखकर एक दूसरे से बातचीत कर रहे हैं और दंगों के पीछे के बैठे लोगों के बारे में बातचीत कर रहे हैं।
लोगों का कहना है कि दंगों की वजह से जहां दिल्ली पुलिस पैरामिलिट्री फॉर्स के साथ गश्त कर लोगों को दोबारा से शांति वाला माहौल देने की कोशिश कर रही है। वहीं दूसरी तरफ गरीब तबका बोल रहा है कि कब इलाके से बेरिकेट हटेगें और हम अपनी रोजी रोटी कमाने के लिये निकलेगें। कुछ लोगों ने मंगलवार को अपनी दुकानें डर के साय में दुकान आधी ही खोली तो कुछ नौकरी पेशा लोग भी ऑफिस के लिये निकले, जिनको परिवार ने बोला कि घर समय से आ जाना।
फुटपाथ में लावारिस हालत में खड़ी टूटी फूटी रेहड़िया कुछ बोलती हैं
जहांगीरपुर के ब्लॉक में रहने वाले मूलरूप से छपरा बिहार के रहने वाले संतोष त्रिपाठी ने बताया कि “अरे भाई दंगे से फायदा जिसको हुआ,उसको हुआ, लेकिन हम गरीबों को तो सिर्फ एक ही चीज मिली है। वो ये कि दंगे के अगले दिन से मैं अपने परिवार का पेट नहीं भर पाया हूं।
चूल्हे में आग लगाने के लिये माचिस के भी पैसे नहीं हैं,खाने की बात तो छोड़ ही दो। बेटी के पेट में दर्द हो रहा है। जिसका उपचार करवाने के लिये पैसे तक नहीं हैं। जिस डॉक्टर से दवा लाते थे। वो भी दंगे के बाद बंद पड़ी है। डॉक्टर साहब को भी अपनी जान का डर था। अगर मामला शांत हो तो हम भी अपनी रेहड़ी लगाकर अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिये निकले।”
किराये पर रेहड़ी ली है,दंगे में टूटी किराया देने के भी पैसे नहीं हैं
मूलरूप से जाम नगर के रहने वाले संतोष कुमार ने बताया कि दंगा होने के बाद हम आज घर से निकले हैं। हमकों अपनी रेहड़ी की चिंता थी,जिसपर छोले भटूरे बनाया करते थे। दंगाईयों ने उसका भी नुकसान पहुंचा दिया है। अब जब देखी तो उसके पट्टे हटा रखे थे और सरिये भी मोड़ रखे थे। दंगाईयों को रेहड़ी तोड़कर क्या मिला। यहां पेट भरने के लिये पैसे तक नहीं हैं। ऊपर से अब ऊधार लेकर रेहड़ी ठीक करवाऊंगा फिर देखता हूं कि कब रेहड़ी शुरू होती है। घर में अभी जो रखा है उसी से थोड़ा पेट भर रहा हूं।
अब दुकानें खुले तो मजदूरी करके परिवार का पेट भरेगें
मैनपुरी के रहने वाले जयप्रकाश पथरिया ने बताया कि बाबू जी घर से दिल्ली मजदूरी करने आए थे। हर रोज तीन साढ़े तीन सौ रुपये की दिहाड़ी बन जाती थी, लेकिन दंगे ने तो पेट पर लात मार दी है। तीन दिन से खाना मांगकर गुजारा कर रहा है। पहले तो कुछ रेहड़ी पटरी लगाने वाले भाई फ्री में ही कुछ खिला दिया करते थे। लेकिन वो बेचारे भी घरों में खाली बैठे हैं,उनकी तो रेहड़कयों को दंगाईयों ने तोड़ दिया है। हम तो चाहते हैं जल्दी से पुलिस हटे और दुकानें खुले बस।
दुकान खोल जरूर पर लगाई नहीं,पता नहीं कब दंगा फिर हो जाए
परचून-जनरल स्टोर की दुकान चलाने वाले कुछ दुकानों ने बताया कि ये दो दुकानें ऐसी हैं,जिनसे घरों में खाने की जरूरत पूरी होती हैं,लेकिन दंगे की वजह से आज दुकानें खोली तो हैं लेकिन लगाई नहीं हैं। पता नहीं दोबारा से दंगाई फिर से दंगा करने के लिये घरों से न निकल जाए। दंगे वाले दिन भी ऐसा ही हुआ था। इसलिये कुछ ने दुकानें दहशत के साय में खोलकर कुछ दुकानदारी की है,लेकिन कुछ ने शटर उठाया ही नहीं है। उनका कहना है कि जान से तो आगे भी कमा लेगें,अभी थोड़ा खाकर भी सब्र कर लेगें।
आरडब्ल्यूए और अमन कमेटी के साथ पुलिस की शांति कायम करने की कोशिश
दिल्ली पुलिस पहले ही दिन से आरडब्ल्यूए,मार्किट एसोसिएशन और अमन कमेटी के बातचीत कर इलाके में गश्त कर लोगों से मिलकर उनको विश्वास दिलवाने की कोशिश कर रही है कि डरने की कोई बात नहीं हैं दिल्ली पुलिस उनके साथ हमेशा से है और आगे भी रहेगी।
दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और किसी बेकसूर को सताया नहीं जाएगा। बस दिल्ली पुलिस आप सबका साथ चाहती है। जिसमें अगर कोई अफवाह फैलाता है या फिर कोई संदिग्ध दिखाई देता है या फिर कोई संदिग्ध हरकत करता दिखाई देता तो तुरंत नजदीक खड़े पुलिस वाले को इसकी सूचना दे,जिससे उसकी हरकत से होने वाले नुकसान को उसी वक्त रोका जा सके।
दिल्ली पुलिस बिना अपने नागरिकों के कुछ नहीं कर सकती है। उसको अपने नागरिकों का सहयोग कदम कदम पर लेना पड़ता है। मंगलवार को भी आला अधिकारियों ने लोगों के साथ मिलकर इलाके में गश्त करके जाहिर करने की कोशिश की कि अब कोई डर नहीं हैं,बस हिफाजत के लिये भी पुलिस बल को तैनात किया गया है। आप कहीं और कभी भी आ जा सकते हैं।
बंगलादेशी सेल और एफआरआर विभाग पर उठे सवाल
लोगों का कहना है कि बुराड़ी से लेकर जहांगीरपुरी,रोहिणी, मंगोलपुरी और नांगलोई की इस पूरी बेल्ट पर बंगलादेशी आज लाखों की संख्या में कॉलोनी बनाकर रह रहे हैं और ड्रग्स व अन्य असमाजिक कार्यो में लिप्त हैं। जिनके आधार कार्ड भी बने हुए हैं। यह यहां पर किसने बसाए,इनके आधार कार्ड कैसे बने।
कई बार ये लोग विभिन्न वारदातों में पकड़े भी जाते रहे हैं। लेकिन पुलिस सजा जरूर दिलवा देती है लेकिन यह जांच नहीं करती कि ये लोग कैसे यहां पर पूरी सहूलियत के साथ और नागरिकता लेकर रह रहे हैं। इस बारे में दिल्ली पुलिस की बंगलादेशी सेल और एफआरआरओ बांग्लादेशियों को लेकर क्या कर रही है। थानास्तर पर सिर्फ अफ्रीकन नागरिकों पर भी नकेल दिल्ली पुलिस कसती नजर आई है। लेकिन बंगलादेशी नागरिकों पर क्यों नहीं,जो जहांगीरपुरी दंगों में पूरी तरह से शामिल रहे थे।