राष्ट्रीय

प्रधानमंत्री मोदी 02 सितम्बर को देश का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएसी ‘विक्रांत’ राष्ट्र को सौंपेंगे

– युद्धपोत निर्माण में भारत अब अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस सहित चुनिंदा देशों में शामिल

– आईएसी विक्रांत 76 फीसदी से अधिक स्वदेशी सामग्री के साथ ‘आत्मनिर्भर भारत’ का उदाहरण

नई दिल्ली, 25 अगस्त । भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएसी ‘विक्रांत’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 02 सितम्बर को ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाने के लिए राष्ट्र को सौंपेंगे। भारत में ही तैयार यह जहाज नौसेना को पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता प्रदान करेगा। भारत अब अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस सहित उन देशों के चुनिंदा क्लबों में शामिल हो गया है, जिन्होंने 40 हजार टन से अधिक के विमान वाहक का डिजाइन और निर्माण किया है। आईएसी विक्रांत 76 फीसदी से अधिक स्वदेशी सामग्री के साथ ‘आत्मनिर्भर भारत’ का उदाहरण है।

नौसेना के वाइस चीफ वाइस एडमिरल एसएन घोरमडे ने गुरुवार को एक प्रेस वार्ता में बताया कि विक्रांत से पहले मिग-29के का संचालन किये जाने की योजना थी, इसीलिए उसी के अनुरूप इसे डिजाइन किया गया था लेकिन अब विमानवाहक पोत पर स्वदेशी लड़ाकू विमान तैनात करने का फैसला लिया गया है, जिसके लिए हम डीआरडीओ के साथ काम कर रहे हैं। इसके साथ ही विमानवाहक पोत के लिए लड़ाकू विमानों की खरीद को भी अंतिम रूप दिया जा रहा है। अब तक अमेरिकी एफ-18 सुपर हॉर्नेट और फ्रांस के राफेल-एम के ट्रायल किये जा चुके हैं और इन्हीं दोनों के बीच चयन करने का विकल्प है। भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए नौसेना करीब 26 लड़ाकू विमान लेने की तैयारी कर रही है।

वाइस एडमिरल ने कहा कि भारतीय नौसेना प्रीडेटर यूएवी जैसे ड्रोन के लिए स्वदेशी समाधान देख रही है। स्वदेशीकरण हमारे लिए आगे का रास्ता है और हम चाहते हैं कि हमारा अनुसंधान और विकास संगठन उच्च ऊंचाई पर लंबे समय तक टिकने वाले मानव रहित हवाई वाहन की अपनी क्षमताओं को विकसित करे। घोरमडे ने बताया कि देश के पहले स्वदेशी विमान वाहक 40 टन वजनी आईएसी विक्रांत ने चारों समुद्री परीक्षण सफलतापूर्वक पूरे किये हैं। पहला परीक्षण पिछले साल 21 अगस्त को, दूसरा 21 अक्टूबर को और तीसरा इसी साल 22 जनवरी को पूरा किया जा चुका है।

नौसेना के वाइस चीफ ने कहा कि करीब 2,500 किलोमीटर लंबी आईएनएस विक्रांत की पूरी केबलिंग भारत में की गई है, यह हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है। भारतीय नौसेना, डीआरडीओ और स्टील अथारिटी ऑफ़ इंडिया की मदद से भारत में युद्धपोत-ग्रेड स्टील भी बनाया गया है। इसे बाद में अन्य देशों में निर्यात किया जा सकता है। हिंद महासागर क्षेत्र में हमारे पास उच्च स्तर की तैनाती होनी चाहिए जो किसी भी तरह के दुस्साहस का मुकाबला कर सके। चीन से गतिरोध के दौरान आईएनएस विक्रमादित्य को तेजी से उपलब्ध कराने के लिए सभी प्रयास किए गए और आईएनएस विक्रांत को शीघ्रता से तैयार किया गया।

परीक्षणों के बारे में आईएसी विक्रांत के परियोजना निदेशक कमोडोर विवेक थापर ने बताया कि युद्धपोत का पहला परीक्षण प्रणोदन, इलेक्ट्रॉनिक सूट और बुनियादी संचालन स्थापित करने के लिए था। अक्टूबर-नवंबर में दूसरे समुद्री परीक्षण के दौरान विभिन्न मशीनरी परीक्षणों और उड़ान परीक्षणों के संदर्भ में जहाज को उसकी गति के माध्यम से देखा गया। तीसरे परीक्षण में जहाज के नेविगेशन और संचार प्रणालियों को देखा गया। इसके साथ ही ऑनबोर्ड पर लगे बड़ी संख्या में विभिन्न उपकरणों और प्रणालियों के भी परीक्षण किए गए। आईएसी ‘विक्रांत’ का आखिरी और चौथा समुद्री परीक्षण मई में शुरू किया था जो पिछले माह सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है।

उन्होंने बताया कि भारतीय नौसेना के लिए कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में निर्मित एयरक्राफ्ट कैरियर की स्वदेशी डिजाइन और 76% से अधिक स्वदेशी सामग्री के साथ ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया इनिशिएटिव’ के लिए राष्ट्र की खोज में एक चमकदार उदाहरण है। इससे भारत की स्वदेशी डिजाइन और निर्माण क्षमताओं में वृद्धि हुई है। भारत अब अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस सहित उन देशों के चुनिंदा क्लबों में शामिल हो गया है, जिन्होंने 40 हजार टन से अधिक के विमान वाहक का डिजाइन और निर्माण किया है।

पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता प्रदान करेगा

इस आधुनिक विमान वाहक पोत के निर्माण के दौरान डिजाइन बदलकर वजन 37 हजार 500 टन से बढ़ाकर 40 हजार टन से अधिक कर दिया गया। इसी तरह जहाज की लंबाई 262.5 मीटर हो गई। यह 61.6 मीटर चौड़ा है। इस पर लगभग तीस विमान एक साथ ले जाए जा सकते हैं, जिसमें लगभग 25 ‘फिक्स्ड-विंग’ लड़ाकू विमान शामिल होंगे। इसमें लगा कामोव का-31 एयरबोर्न अर्ली वार्निंग भूमिका को पूरा करेगा और भारत में ही तैयार यह जहाज नौसेना को पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता प्रदान करेगा। विमानवाहक पोत की लड़ाकू क्षमता, पहुंच और बहुमुखी प्रतिभा हमारे देश की रक्षा में जबरदस्त क्षमताओं को जोड़ेगी और समुद्री क्षेत्र में भारत के हितों को सुरक्षित रखने में मदद करेगी।

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