बहनों ने पारंपरिक गीत गाकर मनाया सामा-चकेवा का पर्व,भाई के दीर्घायु की कामना
अररिया,08 नवम्बर। आस्था के महापर्व छठ की समाप्ति के साथ ही सामा चकेवा की शुरुआत हो गयीं थी। जहां गांव से लेकर शहरों तक लोकगीत ‘सामा खेलबई हे’ का गायन शुरू हो गया है।
मुखिया पूनम देवी के नेतृत्व में पंचायत के आसपास रहने वाली लड़कियों ने पारंपरिक गीतों के साथ सामा-चकवा का खेल खेला। पाश्चात्य संस्कृति के माहौल में सामा-चकेवा खेल देख बुजुर्ग भी आनंदित हुए।
भाई-बहनों के प्रेम का प्रतीक सामा चकवा खेल खेलने के लिए बालिकाओं ने सामा-चकेवा की मूर्तियां खरीद चौराहों पर सजायी हुई थी व इसके इर्द-गिर्द दीपक जला लोकगीत गाते हुए खेल की परंपरा को जीवंत किया। बालिकायें सामा खेले गईली हम भईया अंगनवा हे, कनिया भौजी लेलन लुलुआए हे, वृंदावन में आग लगले…! सामा चकेवा खेल गेलीए हे बहिना… आदि गीतों द्वारा हंसी -ठिठोली करते हुए भाई के दीर्घायु होने की कामना की।
पूर्णिमा की शाम को सामां-चकेवा की मूर्ति को नजदीकी तालाब,पोखर या नदी में किया गया विसर्जित।
पूनम देवी,बबली देवी,सिंधु देवी आदि कहती है की पूर्णिमा के दिन बहनें लड्डू, पेड़ा, बतासा, मूढ़ी व चूड़ा आदि से भाई की झोली भरती है। ग्रामीण बुजुर्ग इसका विशेष महत्व बताते हैं। उनका कहना है कि बहनें भाई की झोली भरकर उनके यहां हमेशा धन-धान्य भरे रहने की कामना करती हैं। वहीं भाई छोटी व बड़ी को बदले में पैसा या कपड़े देकर उन्हें यह विश्वास दिलाता है कि उनकी खुशी व दुख में वे हमेशा उनके साथ रहेंगे। पूर्णिमा के दिन ही आज सामां-चकेवा की मूर्ति को नजदीकी तालब,पोखर या नदी में विसर्जित कर दिया गया।
बबली देवी,सिंधु देवी बताती है की भाई-बहन की इस परंपरागत प्रेम प्रतीक खेल में सामां बहन व चकेवा भाई का प्रतीक है। बताया जाता है कि इनकी मूर्ति एक साथ बनाकर सदियों से यही संदेश दिया जाता है कि भाई-बहन का प्रेम अटूट है। वहीं इस बंधन को तोड़ने वाले लोगों को चुगला व चुगली को भी बनाया गया। वहीं ‘चुगला करे चुगली, बिलैया करे म्यांउ, चुगला के मुंह हम नोंची-नोंची खाउ’। चौथे से सातवें दिन तक उन्हें रोज थोड़ा-थोड़ा जलाकर यह संदेश दिया जाएगा कि भाई-बहन के प्रेम को जो तोड़ने की कोशिश करेगा उसका यही हाल होगा।