राष्ट्रीय

वैवाहिक दुष्कर्म से जुड़ी सभी याचिकाओं पर 16 को एकसाथ सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, 09 सितंबर। सुप्रीम कोर्ट वैवाहिक दुष्कर्म के मामले पर 16 सितंबर को सुनवाई करेगा। कोर्ट ने कहा कि वह सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करेगा।

11 मई को दिल्ली हाई कोर्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म के मामले पर विभाजित फैसला दिया था। जस्टिस राजीव शकधर ने जहां भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को असंवैधानिक करार दिया था वहीं जस्टिस सी हरिशंकर ने इसे सही करार दिया है। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई करेगा।

हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि उसका ये रुख नहीं है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 को हटाया जाए या रखा जाए। केंद्र सरकार अपना रुख संबंधित पक्षों से मशविरा के बाद ही तय करेगी। सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध बनाने की मांग की थी। गोंजाल्वेस ने ब्रिटेन के लॉ कमीशन का हवाला देते हुए वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध बनाने की मांग की थी। सुनवाई के दौरान गोंजाल्वेस ने कहा था कि यौन संबंध बनाने की इच्छा पति-पत्नी में से किसी पर भी नहीं थोपी जा सकती है। उन्होंने कहा था कि यौन संबंध बनाने का अधिकार कोर्ट के जरिये भी नहीं दिया जा सकता है। ब्रिटेन के लॉ कमीशन की अनुशंसाओं का हवाला देते हुए गोंजाल्वेस ने कहा कि पति को पत्नी पर अपनी इच्छा थोपने का अधिकार नहीं है। पति अगर अपनी पति के साथ जबरन यौन संबंध बनाता है तो वो किसी अनजान व्यक्ति द्वारा किए गए दुष्कर्म से ज्यादा परेशान करने वाला है।

दो फरवरी को सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की वकील करुणा नंदी ने कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म का अपवाद किसी शादीशुदा महिला की यौन इच्छा की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। उन्होंने कहा था कि इससे जुड़े अपवाद संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। नंदी ने कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म का अपवाद यौन संबंध बनाने की किसी शादीशुदा महिला की आनंदपूर्ण हां की क्षमता को छीन लेता है। उन्होंने कहा था कि धारा 375 का अपवाद दो किसी शादीशुदा महिला के ना कहने के अधिकार को मान्यता नहीं देता है। ऐसा होना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। ये अपवाद असंवैधानिक है क्योंकि ये शादी की निजता को व्यक्तिगत निजता से ऊपर मानता है।

हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान इस मामले के एमिकस क्युरी रेबेका जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को बरकरार रखा जाना संवैधानिक नहीं होगा। जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 304बी और घरेलू हिंसा अधिनियम और अन्य नागरिक उपचार सहित विभिन्न कानूनी प्रावधान धारा 375 के तहत दुष्कर्म से निपटने के लिए अपर्याप्त है।

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