राष्ट्रीय

देशवासी बताएं वर्ष 2047 में कैसा भारत चाहिएः नड्डा

नई दिल्ली

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सोमवार को देशवासियों के नाम पत्र लिख उन्हें वर्ष 2047 में आजादी के सौ वर्ष पूरे होने पर किस तरह का भारत चाहिए, इसकी योजना तैयार करने की आग्रह किया है। देशवासियों के नाम लिखे खुले पत्र में नड्डा ने जहां विपक्ष को वोटबैंक की राजनीति छोड़ने की अपील करते हुए उन्हें आत्मावलोकन की सलाह दी। नड्डा ने कहा कि विपक्ष को आत्ममंथन करना चाहिए कि इतने दशकों तक देश पर शासन करने वाली पार्टियां अब इतिहास के हाशिये पर क्यों सिमट कर रह गई हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में बीते दिनों विपक्ष के 13 दलों ने एक पत्र लिख देश में शांति व्यवस्था खराब होने, समाज में धर्म-जाति के आधार पर विभाजन का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर सवाल खड़े किए थे। विपक्षी दलों के पत्र के तीसरे दिन लिखे भाजपा अध्यक्ष के पत्र को इसका जवाब समझा जा रहा है।

नड्डा ने पत्र में आगे कहा कि उन्होंने आगे कहा कि आज भारत, राजनीति की दो विशिष्ट शैलियों को देख रहा है एक तरफ है ‘एनडीए’ का प्रयास जो उनके विकास कार्यों में दिखाई दे रहा है और दूसरी तरफ है तुच्छ राजनीति करने वाली पार्टियों का समूह, जो उनके कटु शब्दों में दिखायी दे रही है। पिछले कुछ दिनों में, हम इन पार्टियों को एक बार फिर एक साथ आते देख रहे हैं, अब यह साथ, मन से है या फिर महत्व राजनीतिक स्वार्थ है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन उन्होंने हमारे देश के मेहनती नागरिकों और उनकी भावनाओं को सीधा ठेस पहुंचाया है।

विपक्षी दलों द्वारा देश में शांति व्यवस्था के मसले को लेकर सत्तारूढ़ दल को घेरने के प्रयासों को खारिज करते हुए नड्डा ने कहा कि कौन भूल सकता है नवंबर 1966 की वो घटना, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद के बाहर बैठे उन हिंदू साधुओं पर गोलियां चलवा दी थी, जिनकी मात्र यही माँग थी कि भारत में गोहत्या पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। राजीव गांधी के उन पीड़ादायी शब्दों को कौन भूल सकता है जब इंदिरा गाँधी की मौत के बाद हजारों निर्दोष सिखों के कत्लेआम पर उन्होंने कहा था कि “जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तो पृथ्वी हिलती है।”

उन्होंने आगे कहा कि वर्ष 1969 में गुजरात, मुरादाबाद 1980, भिवंडी 1984, मेरठ 1987, 1980 के दशक में कश्मीर घाटी में हिंदुओं के खिलाफ विभिन्न घटनाएं, 1989 भागलपुर 1994 हुबली.. कांग्रेस शासन के दौरान सांप्रदायिक हिंसा की सूची लंबी है। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे या 2012 में असम दंगे किस सरकार के शासनकाल में हुए थे। इसी तरह, दलितों और आदिवासियों के खिलाफ सबसे भीषण नरसंहार कांग्रेस के शासन में हुए हैं। यह वही कांग्रेस है, जिसने डॉ. अंबेडकर को संसदीय चुनाव में भी मात दी थी।

तमिलनाडु में, राज्य में सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोगों ने सिर्फ इस वजह से भारत के सबसे बड़े गायकों में से एक को अपमानित किया और मौखिक रूप से लिंचिंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, क्योंकि उनके विचार एक राजनीतिक दल के अनुकूल नहीं थे। क्या यह लोकतांत्रिक है? मतभिन्नता और विचार अलग होते हुए भी साथ रहा जा सकता है, लेकिन अपमान क्यों ?

भाजपा अध्यक्ष ने आगे कहा कि पश्चिम बंगाल और केरल में शर्मनाक राजनीतिक हिंसा और सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं को बार-बार निशाना बनाकर उनकी हत्या करना इस बात की एक झलक पेश करता है कि हमारे देश के कुछ राजनीतिक दल लोकतंत्र को किस नज़रिये से देखते हैं।

महाराष्ट्र में दो कैबिनेट मंत्रियों को भ्रष्टाचार, जबरन वसली और असामाजिक तत्वों के साथ संबंधों के गंभीर आरोपों में गिरफ्तार किया गया है क्या यह एक राष्ट्र के रूप में हमारे लिए चिंताजनक नहीं है कि जिस राज्य में भारत की वित्तीय राजधानी है, वहाँ एक ऐसा गठबंधन है, जहाँ शीर्ष केबिनेट मंत्रियों की ऐसी जबरन वसूली की प्रवृत्ति है?

नड्डा ने कहा कि इसके साथ अब अगली बात पर चलते हैं। यह राजनीतिक दलों के एक चुनिंदा समूह के शर्मनाक आचरण और घटनाओं की सूची है, जो मैंने आप सभी के साथ साझा की है। वोट बैंक की राजनीति करने वाले इन दलों को इस बात का डर सता रहा है कि उनके धोखाधड़ी और करतूतों को व्यापकर रूप से उजागर किया जा रहा है कि कैसे उन्होंने आम लोगों को मूर्ख बनाया और तंग किया, किस प्रकार तत्वों को स्वतंत्र रूप से संरक्षण दिया। अब इन तत्वों को देश के कानून के तहत सजा दी जा रही है तो इन असमाजिक तत्वों को संरक्षण देने वाले लोग घबरा रहे हैं और इस तरह के और अनाप-शनाप आरोप लगा रहे हैं।

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