बिहार

रामधुन से गुंजायमान है फारबिसगंज,शहर तोरण द्वार महावीरी झंडा से पटा

अररिया 27अगस्त फारबिसगंज में रामायण परिषद की स्थापना और उसके वार्षिकोत्सव पर 1904 से निकल रहा महावीरी झंडा शोभायात्रा जुलूस रविवार को सांवलिया कुंज ठाकुरबाड़ी से निकाला जायेगा।इसमे ने केवल फारबिसगंज के शहरी बल्कि बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों से अखाड़े के रूप में श्रद्धालु भाग लेते हैं और बजरंगबली के ध्वज के साथ नगर भ्रमण कर इसका समापन पुनः सांवलिया कुंज ठाकुरबाड़ी पहुंचकर होता है।

हजारों श्रद्धालु सैकड़ों गाड़ियों पर रामधुन के साथ भजन कीर्तन करते हुए नगर भ्रमण करते हैं और मनमोहक झांकियां निकाली जाती है और शारीरिक कला कौशल का लोग प्रदर्शन करते हैं।

रविवार को निकलने वाले महावीरी झंडा शोभायात्रा जुलूस को लेकर फारबिसगंज का शहरी और ग्रामीण इलाका रामधुन की धुन से गुंजायमान है।मंदिरों में हरे राम और हरे कृष्ण के अष्टयाम से पूरा वातावरण भक्तिमय बना हुआ है।पूजा पाठ और हवन का दौर जारी है और शहर को निकलने वाले शोभायात्रा जुलूस को लेकर स्वागत हेतु तोरणद्वार और बजरंगबली के पताकाओं से पाट दिया गया है।पूरा प्रशासनिक अमला तैयारी में जुटा है।सड़क पर बने गड्ढों को भरने के साथ शहर में नगर परिषद प्रशासन की ओर से विशेष साफ सफाई की जा रही है।

सांवलिया कुंज ठाकुरबाड़ी के महंथ कौशल दूबे और श्याम दूबे ने बताया कि 1904 में पहली बार ठाकुर की नगर भ्रमण यात्रा निकाली गई थी। यह यात्रा पंडित केवल कृष्ण दुबे की पहल और नेतृत्व में निकली थी। पहले इसका स्वरूप अलग था,लेकिन समय के साथ स्वरूप बदलता गया और यह आज सबसे बड़ा जुलूस का शक्ल ले लिया है।हर वर्ष लोगों की आस्था और विश्वास शोभायात्रा जुलूस को लेकर बढ़ता चला गया है।रामायण परिषद के वार्षिकोत्सव के रूप में मनाया जाने वाला महावीरी झंडा शोभायात्रा सांवलिया कुंज ठाकुरबाड़ी से निकलते हुए दरभंगिया बस्ती के बड़ी मस्जिद से होते हुए काली मंदिर चौक,पटेल चौक,स्टेशन चौक,पोस्ट आफिस चौक होते हुए छुआपट्टी होते हुए पुनः सांवलिया कुंज ठाकुरबाड़ी मंदिर परिसर में आकर समाप्त होती है।जगह-जगह शरबत, पानी,चना गुड़,मिठाई,चॉकलेट का वितरण जुलूस में विभिन्न संस्थाओं की ओर से स्टाल लगाकर किया जाता है।शोभायात्रा जुलूस जब दरभंगिया बड़ी मस्जिद होकर गुजरती है तो बड़ी मस्जिद के प्रधान मंदिर के महंत का आगवानी करते हुए स्वागत करते हैं और एक दूसरे से गले मिलते हैं और दोनों की ओर से एक-दूसरे के धर्म ग्रंथों का आदान-प्रदान किया जाता है,जो गंगा-जमुनी तहजीब का अलग ही मनोरम दृश्य उत्पन्न करता है।

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