उत्तर प्रदेश

 अयोध्या : जयंती की पूर्व संध्या पर ”रामानंदाचार्य” काे अर्पित किया श्रद्धासुमन

अयाेध्या,13 जनवरी। प्रतिष्ठित पीठ श्रीरामाश्रम, रामकाेट में जगद्गुरू स्वामी रामानंदाचार्य महाराज की 724वीं जयंती हर्षोल्लास पूर्वक मनाई गई। जयंती की पूर्व संध्या पर श्रीरामाश्रम पीठाधीश्वर महंत जयराम दास महाराज ने उनकी मूर्ति पर श्रद्धासुमन अर्पित कर नमन किया। उन्होंने कहा कि जगद्गुरू स्वामी रामानंदाचार्य महाराज वैष्णव भक्तिधारा के महान संत थे। रामानंद अर्थात रामानंदाचार्य ने हिन्दू धर्म को संगठित और व्यवस्थित करने के अथक प्रयास किए। उन्होंने वैष्णव संप्रदाय को पुनर्गठित किया। वैष्णव साधुओं को उनका आत्मसम्मान दिलाया। सोचें जिनके शिष्य संत कबीर व रविदास जैसे संत रहे हों। तो वे कितने महान रहे होंगे। बादशाह गयासुद्दीन तुगलक ने हिन्दू जनता और साधुओं पर हर तरह की पाबंदी लगा रखी थी। हिन्दुओं पर बेवजह के कई नियम तथा बंधन थोपे जाते थे। इन सबसे छुटकारा दिलाने के लिए रामानंद ने बादशाह को योगबल के माध्यम से मजबूर कर दिया। अंतत: बादशाह ने हिंदुओं पर अत्याचार करना बंद कर उन्हें अपने धार्मिक उत्सवों को मनाने तथा हिन्दू तरीके से रहने की छूट दे दी। उनका जन्म माघ माह की सप्तमी संवत 1356 अर्थात ईस्वी सन 1300 को कान्यकुब्ज ब्राह्मण के कुल में जन्मे रामानंद जी के पिता का नाम पुण्य शर्मा और माता का नाम सुशीला देवी था। वशिष्ठ गोत्र कुल के होने के कारण वाराणसी के एक कुलपुरोहित ने मान्यता अनुसार जन्म के तीन वर्ष तक उन्हें घर से बाहर नहीं निकालने व एक वर्ष तक आईना नहीं दिखाने को कहा था। आठ वर्ष की उम्र में उपनयन संस्कार होने के पश्चात उन्होंने वाराणसी पंच गंगाघाट के स्वामी राघवानंदाचार्य जी से दीक्षा प्राप्त की। तपस्या तथा ज्ञानार्जन के बाद बड़े-बड़े साधु तथा विद्वानों पर उनके ज्ञान का प्रभाव दिखने लगा। इस कारण मुमुक्षु लोग अपनी तृष्णा शांत करने हेतु उनके पास आने लगे।

महंत ने कहा कि स्वामी रामानंदाचार्य जी के कुल 12 प्रमुख शिष्य थे, जिनमें संत अनंतानंद, संत सुखानंद, सुरासुरानंद, नरहरीयानंद, योगानंद, पिपानंद, संत कबीरदास, संत सेजान्हावी, संत धन्ना, संत रविदास, पद्मावती एवं संत सुरसरी हैं। संवत 1532 अर्थात सन् 1476 में आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने अपनी देह छोड़ दी। उनके देह त्याग के बाद से वैष्ण्व पंथियों में जगद्गुरु रामानंदाचार्य पद पर ”रामानंदाचार्य” की पदवी को आसीन किया जाने लगा। जैसे शंकराचार्य एक उपाधि है, उसी तरह रामानंदाचार्य की गादी पर बैठने वाले को इसी उपाधि से विभूषित किया जाता है। उत्तर भारत में वाराणसी भगवान शिव की नगरी काशी में पंचगंगा घाट स्थित “श्रीमठ” प्रतिष्ठित हो विख्यात है। नाम से जगद्गुरु रामानंदाचार्य पीठ घोषित हुआ। जो वर्तमान समय में जगद्गुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित रामनरेशाचार्य जी आचार्य गद्दी संभाल रहे हैं। दक्षिण भारत के लिए श्रीक्षेत्र नाणिज को वैष्णव पीठ रूप में घोषित कर इसका नाम ”जगद्गुरु रामानंदाचार्य पीठ, नणिजधाम” रखा गया है। ऐसे ही उनकी शाखा देशभर में अयोध्या मथुरा, काशी, हरिद्वार, प्रयागराज, चित्रकूट, आरी धाम तीर्थों तथा धर्म स्थलों पर मठ मंदिर के रूप में लोग चला रहे हैं।

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