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ओरल हेल्थ केयर के महत्व को यूएन ने सराहा, डॉ. ज्ञानेंद्र ने यूएन में बढ़ाई भारत की शान

नई दिल्ली, 10 जून । कोरोना काल के दौरान जब लोग लॉक डाउन और क्वारंटाइन के दौर से गुजर रहे थे, तब सार्क के छह देशों के दंत चिकित्सकों ने दूर-दराज के इलाके में रहने वाले बच्चों तथा अन्य मरीजों की मौखिक स्वास्थ्य देखभाल (ओरल हेल्थ केयर) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसकी अगुवाई द साउथ एशियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक डेंटिस्ट्री (एसएएपीडी) ने की। संयुक्त राष्ट्र ने भी इस नेक पहल को महत्व दिया और अनुभव साझा करने के लिए हाल ही में अपने मुख्यालय में आमंत्रित किया।

एसएएपीडी के सचिव और मौलाना आजाद दंत चिकित्सा विज्ञान संस्थान, दिल्ली के प्रोफेसर डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार ने इसमें हिस्सा लेकर देश का मान बढ़ाया। वो संयुक्त राष्ट्र में मौखिक स्वास्थ्य देखभाल पर व्याख्यान देने वाले दक्षिण एशिया के पहले डेंटिस्ट बन गए। संयुक्त राष्ट्र ने एसोसिएशन के प्रयासों की सराहना करते हुए संयुक्त राष्ट्र में एसएएपीडी को विशेष सलाहकार का दर्जा देने की सिफारिश करने का भी भरोसा दिया।

डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार ने संयुक्त राज्य अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय का दौरा किया। वहां उन्होंने दक्षिण एशियाई देशों के दुर्गम क्षेत्रों में महामारी के दौरान मौखिक स्वास्थ्य देखभाल की संभावनाओं को बेहतर बनाने में एसएएपीडी की भूमिका पर एक व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि करीब दो साल पहले कोरोना महामारी के कारण पूरी दुनिया में ठहराव आ गया था। इस वजह से गैर-आवश्यक सेवाओं और आवश्यक सेवाओं के आपातकालीन उपयोग को पूरी तरह से बंद कर दिया गया था।

उन्होंने अनुभव साझा करते हुए कहा कि कोरोनाकाल में सामान्य स्वास्थ्य देखभाल को प्रमुख महत्व दिया गया था लेकिन गंभीर विकृत लक्षण वाले लोगों के लिए मौखिक स्वास्थ्य प्रावधान प्रतिबंधित कर दिया गया था। इसलिए दक्षिण एशियाई देशों के दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोग इन आवश्यक मौखिक देखभाल सेवाओं से वंचित थे।

उन्होंने कहा कि एसएएपीडी विकासशील छह दक्षिण एशियाई देशों यानी भारत, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव और भूटान के दंत चिकित्सा पेशेवरों की एसोसिएशन दुर्गम और दूरदराज के क्षेत्रों में बच्चों को मौखिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने की इच्छुक थी। इसलिए एसोसिएशन ने दक्षिण एशियाई देशों के ऐसे बच्चों की जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिन्हें मौखिक देखभाल सेवाओं की आवश्यकता थी। ये लोग स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचने में असमर्थ थे।

डॉ. ज्ञानेंद्र ने कहा, “दक्षिण एशियाई बाल चिकित्सा दंत चिकित्सा संघ (एसएएपीडी) भारत और उसके पड़ोसी देशों में बच्चों और उनकी देखभाल करने वालों के लिए मौखिक स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के प्रावधान की दिशा में लगन से काम कर रहा था। उन्होंने इन देशों के दूरदराज के इलाकों में बच्चों और उनके माता-पिता से जुड़ने के लिए मोबाइल फोन और दूरसंचार सेवाओं का इस्तेमाल किया।”

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