गतिशक्ति विश्वविद्यालय से जुड़ा विधेयक लोकसभा से पारित
नई दिल्ली, 03 अगस्त। लोकसभा ने बुधवार को ‘केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2022’ को मंजूरी प्रदान कर दी। विधेयक राष्ट्रीय रेल और परिवहन विश्वविद्यालय एक डीम्ड-टू-विश्वविद्यालय को एक स्वायत्त केंद्रीय विश्वविद्यालय (गति शक्ति विश्वविद्यालय) में परिवर्तित करेगा।
विधेयक को केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने आज लोकसभा में पेश किया। विधेयक केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 में संशोधन करेगा। विधेयक केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक परिवहन के क्षेत्र में महत्वाकांक्षी विकास और आधुनिकीकरण को मजबूत करने के लिए विश्वविद्यालय के दायरे को रेलवे से परे पूरे क्षेत्र को कवर करने का विस्तार करता है।
उन्होंने कहा कि गति शक्ति विश्वविद्यालय की स्थापना रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और विस्तारित परिवहन क्षेत्र में कौशल की आवश्यकता को पूरा करेगा और इस क्षेत्र के विकास और विस्तार को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षित प्रतिभा की मांग को पूरा करेगा।
केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते और जवाब देते हुए कहा कि गति शक्ति विश्वविद्यालय की कल्पना अनुसंधान, ज्ञान अर्जन, दुनिया की सर्वोत्तम प्रथाएं अपनाने की दृष्टि की गई है।
रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि हमने रेलवे, मेट्रो, राजमार्ग, बंदरगाहों की तकनीकी, इंजीनियरिंग और इससे जुड़े वित्त की शिक्षा के लिए गतिशक्ति विश्वविद्यालय की अवधारणा को सामने रखा है। उन्होंने कहा कि परिवहन क्षेत्र खासकर रेलवे और मेट्रो बेहद जटिल है। इस तरह की जटिल व्यवस्था को संभालने के लिए तकनीकी शिक्षा बेहद जरूरी है। विश्वविद्यालय परिवहन आधारित पाठ्यक्रम, कौशल विकास, अनुप्रयुक्त अनुसंधान, प्रौद्योगिकी विकास और परिवहन अर्थशास्त्र सहित पांच क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेगा।
विधेयक का बीजू जनता दल, बसपा, शिवसेना सहित विभिन्न पार्टियों ने समर्थन किया। चर्चा के दौरान कांग्रेस और डीएमके के सांसद नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी की कार्रवाई का विरोध करते रहे है। इसके बाद सत्र को स्थगित किया गया और सत्र के दोबारा शुरू होने पर उन्होंने इसमें भाग नहीं लिया।
इस दौरान कुछ सांसदों ने विश्वविद्यालय को विस्तार दिए जाने और इसके अन्य राज्यों में कैंपस बनाने का आग्रह किया ताकि अन्य राज्यों को लाभ मिल सके। कुछ सांसदों ने विभिन्न विश्वविद्यालयों में आरक्षित पदों में चल रही रिक्तियों का मुद्दा उठाया।