उत्तर प्रदेश

पंचनद दीप पर्व के तीसरे संस्करण का पोस्टर जारी, तैयारियों में जुटा चंबल परिवार

औरैया, 27 अक्टूबर। कभी कुख्यात डाकुओं और बागियों की शरणस्थली के रूप में बदनाम रहे पांच नदियों के संगम पंचनदा को चंबल परिवार के विविध आयोजनों से अब नई पहचान मिल रही है। इसी कड़ी में आगामी माह 26 नवंबर को संविधान दिवस के अवसर पर ‘पंचनद दीप पर्व’ का ऐतिहासिक आयोजन होने जा रहा है।

पंचनद दीप पर्व के तीसरे संस्करण का पोस्टर जारी करते हुए चंबल परिवार प्रमुख क्रांतिकारी लेखक डॉ. शाह आलम राना ने पंचनदा तहजीब की वकालत करते हुए कहा कि इटावा, औरैया, जालौन मुख्यालयों से समान दूरी पर पंचनदा है। विश्व में यही एक मात्र स्थल है, जहां पर पांच नदियों का संगम होता है। यहां पर चंबल, यमुना, क्वारी, सिंध और पहुज नदियों का भोगौलिक मिलन होता है। पंचनद घाटी में कई संस्कृतियों के मिलन का पुराना इतिहास रहा है। इटावा जिला बनने से पूर्व यह पूरा इलाका ग्वालियर स्टेट के अधीन रहा है। आजादी आंदोलन में इस अंचल के क्रांतिवीरों के साझे शहादत का गवाह रही है।

भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के जानकार डॉ. शाह आलम राना ने बताया कि पंचनद दीप पर्व के तीसरे वर्ष के आयोजन में महान क्रांतियोद्धा सूबेदार मेजर अमानत अली को शिद्दत से याद किया जाएगा। इस दौरान 151 फीट तिरंगे से आजादी के दीवानों को सलामी दी जाएगी।

पंचनदा तहजीब की शानदार साझी विरासत का जिक्र करते हुए डॉ. आलम राना ने बताया कि बाबा मुकुंददास, नबी शाह, मलंगदास, बाबा साहेब जैसे ज्ञानी संतों, ज्ञानियों की एक साथ रहकर समाज को दिशा देने की रवायत आज भी यहां के लोगों की जुबां पर है, जो एक नजीर रही है। यहां का सबसे बड़ा स्टेट जगम्मनपुर जो कि सेंगर वंश से है जिसके राजचिन्ह में शेर और बकरी एक साथ बने हुए हैं। इसके पीछे भी दिलचस्प कहानी है। सूफी फकीर सुल्तान शाह के मुरीद होने से यह सेंगर राज वंश आज भी अपने नाम के टाइटिल में शाह लिखता है। जैसे महाराजा जगम्मन शाह, जोगेंद्र शाह, जागेंद्र शाह, महीपत शाह, तखत शाह, बखत शाह, मानवेंद्र शाह, राघवेंद्र शाह, रूप शाह, लोकेंद्र शाह, वीरेंद्र शाह, राजेंद्र शाह, सुकृत शाह तक गौरवशाली शाह लिखने की परंपरा आज तक कायम है।

पंचनद दीप पर्व आयोजन समिति से जुड़े चन्द्रोदय सिंह चौहान ने बताया कि संविधान दिवस के अवसर पर शाम को सांस्कृतिक संध्या का आयोजन होगा। इसी दौरान संविधान की प्रस्तावना का सामूहिक स्वरपाठ किया जाएगा। चंबल आश्रम, हुकुमपुरा से जुड़े देवेन्द्र सिंह ने बताया कि पंचनद तट को दीप जलाकर हर वर्ष की तरह रोशन किया जाएगा। पंचनद दीप पर्व के तीसरे वर्ष के पोस्टर विमोचन के दौरान चंबल परिवार मुखिया वीरेन्द्र सेंगर ने चंबल अंचल वासियों से दीप पर्व में सहयोग की अपील की।

उल्लेखनीय है कि आजादी के महासमर का बिगुल बजते ही ग्वालियर स्टेट के बिग्रेडियर पलटन के सूबेदार और चंबल निवासी मेजर अमानत अली ने 14 जून 1857 को ग्वालियर में विद्रोह कर सेना के सभी अधिकारियों का वध कर दिया था। ग्वालियर की यह पलटन अति प्रशिक्षित और पराक्रमी थी। अमानत अली के नेतृत्व में उनकी इस रेजीमेंट ने 16 जून की रात्रि में इटावा आकर अंग्रेज कलेक्टर एओ ह्यूम सहित सभी अंग्रेज अधिकारियों को बंदी बना लिया और 17 जून 1857 को इटावा को अंग्रेजी दास्ता से स्वतंत्र करा दिया था। इतना ही नहीं जेल तोड़कर सभी बंदियों को एक बार फिर आजाद कर दिया। रोने-गिड़गिड़ाने पर ह्यूम और उसके कारिंदों को कैद से मुक्तकर भाग जाने को कह दिया। उसी फौज का उपयोग करके अमानत अली ने तात्या टोपे के नेतृत्व में 19 नवंबर को कालपी और 22 नवंबर 1857 को कानपुर पर पुन: जीत हासिल किया था। इसी विद्रोही सेना ने कंपनीराज के पिट्ठू चरखारी रियासत पर चढ़ाई करके तीन लाख रुपये और 33 तोपे छीन लीं थी।

मेजर अमानत अली के समान ही उनके भतीजे जहांगीर खान ने भी 1857 के विद्रोह में प्रमुख भूमिका निभाई थी। जहांगीर खान भी ग्वालियर ब्रिगेडियर पलटन में सिपाही थे। उन्होंने अपने चाचा अमानत अली के साथ ही विद्रोह का शंखनाद किया था। विद्रोह के समय सिंधिया की फौज का सेनानायक रेम्से और ग्वालियर का ब्रिटिश पॉलिटिकल एजेंट मेकफरसन अंग्रेज नागरिकों को लेकर आगरा के लिए भाग खड़ा हुआ। खबर मिलने पर जहांगीर खान ने उन्हें मुरैना-धौलपुर के बीच घेर लिया तथा अपनी सैन्य शक्ति के बल पर उन्हें बंदी बना लिया था। ग्वालियर में 18 जून 1858 को क्रांतिकारियों की हार के बाद मध्य अक्टूबर 1858 में मेजर अमानत अली को ग्वालियर में बंदी बना लिया गया तथा इटावा की घटना के लिए इटावा में मुकदमा चलाकर मृत्युदंड देकर आगरा ले जाकर फांसी पर चढ़ा दिया गया था।

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