बिहार

दशहरा पर नेपाल में लोक नृत्य झिझिया की परंपरा की धूम, बिहार में ले रही सिसकियां

अररिया 04अक्टूबर। नेपाल के तराई इलाकों में बहुतायत संख्या में मधेशी समुदाय के लोग रहते हैं।दरअसल नेपाल के दक्षिणी भाग के मैदानी इलाके को मधेश कहा जाता है और यहां रहने वाले लोगों को मधेशी कहते हैं।मूल रूप से मधेशी भारतीय मूल के हैं।यहां की संस्कृति,धार्मिक,सामाजिक,भाषा भाषी सीमा पार भारतीयों से काफी मिलते जुलते हैं।मुख्य रूप से मधेशी समुदायवासी नेपाली और मैथिली भाषा भाषी होते हैं।यही कारण है कि इन इलाकों में मिथिला संस्कृति का भी बोलबाला है।

इसी मिथिला संस्कृति के तहत दशहरा में मिथिलांचल की प्रमुख संस्कृति में लोक नृत्य झिझिया है,जिसे शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा को रिझाने के लिए शाम में महिलाएं झिझिया खेलती है और इन दिनों भारतीय सीमा क्षेत्र से सटे नेपाल में प्रतिदिन दशहरा के मौके पर महिलाओं द्वारा खेला जा रहा है। दुर्गा पूजा के मौके पर इस नृत्य में लड़कियां बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती है। मिथिलांचल के इस नृत्य में कुवारीं लड़कियां अपने सिर पर जलते दिए एवं छिद्र वाली घड़ा को लेकर नाचती हैं और मैथिली भाषा मे झिझिया गीत गाते हुए मां दुर्गा को आह्वान करती है।

यूं तो झिझिया नृत्य बिहार का लोक नृत्य माना जाता है और इसका आयोजन दुर्गा पूजा के अवसर पर किया जाता है। पूर्णतः महिलाओं के इस लोक नृत्य में ग्राम की महिलाएँ अपनी सखी-सहेलियों के साथ एक घेरा बनाकर नृत्य करती हैं।नेपाल के बिराटनगर,करसिया,रंगेली, कप्तानगंज,दीवानगंज,राजविराज आदि इलाकों में ग्रामीण महिलाएं अपनी संस्कृति के तहत झिझिया का आयोजन कर लोकनृत्य करती है।

आधुनिकता के इस दौर में मिथिला क्षेत्र का पारम्परिक नृत्य झिझिया को नेपाल के इन सीमाई इलाकों की कुछ महिलाओं और बच्चियों की टोली इससे जुड़ी हुई है और यह टोली झिझिया नृत्य की परंपरा का निर्वहन करती नजर आ रही है।

महिलाएं अपना दैनिक घरेलू कार्य सम्पन्न करने बाद देर रात माथे पर छिद्र युक्त घड़ा के अन्दर दीप जलाकर एक के ऊपर दूसरे और तीसरे को रख समूह बनाकर नृत्य के साथ-साथ गीत गाते हुए माता दुर्गा की आराधना करने निकल पड़ती है। वे सभी अपने भावपूर्ण नृत्य एवं भक्तिपूर्ण गीतों के माध्यम से माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए आराधना करती है और इसे देखने के लिए हजारों की संख्या में ग्रामीण इकट्ठा होते हैं।

इस माध्यम से महिलाएं मां दुर्गा से समाज में व्याप्त कलुषित मानसिकता की शिकायत करती है। वे उनसे जल्द से जल्द दुर्विचार को समाप्त कर समाज में सद्भावना एवं सद्विचार लाने की प्रार्थना करती है। गीतों के माध्यम से समाज में व्याप्त कुविचारों को भिन्न-भिन्न नाम देकर उसे समाप्त करने की प्रार्थना करती है। शारदीय नवरात्रा में कलश स्थापना के साथ शुरु होने वाली यह परम्परा विजयदशमी को मां दुर्गा की प्रतिमा के साथ ही विसर्जित होती है।

झिझिया लोकनृत्य में महिलाएं अपनी सहेलियों के साथ गोल घेरा बनाकर गीत गाते हुए नृत्य करती हैं। घेरे के बीच एक मुख्य नर्तकी रहती हैं।मुख्य नर्तकी सहित सभी नृत्य करने वाली महिलाओं के सिर पर छिद्रवाले घड़े होते हैं, जिनके भीतर दीप जलता रहता है।घड़े के ऊपर ढक्कन पर भी एक दीप जलता रहता है। नृत्य में एक साथ ताली वादन तथा पग-चालन और थिरकने का एक अलग ही समा बंधता है।

दशहरा पर यूं तो गुजराती परंपरा की गरबा और डांडिया जैसे नृत्य भी किये जाते हैं और गुजरात से बाहर दूसरे प्रदेशों में भी इसका प्रचलन तेजी से बढ़ा है।लेकिन मिथिलांचल की यह लोक पौराणिक परम्परा वाली झिझिया लोक नृत्य आज मिथिलांचल में ही विलुप्ति के कगार पर है।दरभंगा और मधुबनी जैसे जिलों में झिझिया की परंपरा दशहरा पर आज भी कायम है,लेकिन बिहार के अन्य जिलों में यह सिसकियां ले रहा है।लेकिन इन सबसे इतर नेपाल में यह परम्परा शहरी समेत ग्रामीण इलाकों में आज भी दशहरा के मौके पर निर्वहन किया जा रहा है,जो काबिले तारीफ है।जरूरत है बिहार सरकार के लोक कला एवं संस्कृति विभाग को इसको प्रचारित और प्रसारित करने के साथ प्रोत्साहित करने की।

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