राष्ट्रीय

भारतीय भाषाओं के विकास से सर्वसुलभ होगा ज्ञान-विज्ञान, अनुसंधान और कौशल : प्रधानमंत्री

नई दिल्ली, 06 जुलाई । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि गुलामी के लंबे कालखंड में भारतीय भाषाओं की उपेक्षा की गई तथा उनका विस्तार रोका गया जिससे देश का बहुत बड़ा वर्ग ज्ञान-विज्ञान और अनुसंधान के अवसरों से वंचित हो गया।

मोदी ने बुधवार को असम के समाचार पत्र समूह ‘अग्रदूत’ के स्वर्ण जयंती समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित करते हुए कहा कि हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि बौद्धिक आदान-प्रदान को किसी भाषा विशेष के लोगों तक ही सीमित रखना कितना उचित था। उन्होंने कहा कि देश में भारतीय भाषाओं से जुड़ा एक बहुत बड़ा वर्ग ज्ञान-विज्ञान और अनुसंधान के अवसरों से वंचित रहा। प्रधानमंत्री का संकेत उच्च शिक्षा और अनुसंधान की संस्थाओं में अंग्रेजी के वर्चस्व की ओर था।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ एक भाषाओं के वर्चस्व के कारण बौद्धिक आदान-प्रदान और कौशल वृद्धि का दायरा सिकुड़ता गया। इस प्रवृति को रोकने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 के जरिये भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा जैसे चिकित्सा और प्रौद्योगिकी में शिक्षा सुविधाओं को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा कि सरकार का प्रयास है कि कोई भी भारतीय सर्वश्रेष्ठ ज्ञान, कौशल, सूचना और अवसरों से वंचित न रहे। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय भाषाओं का विकास केवल एक भावनात्मक मुद्दा नहीं है बल्कि इसके पीछे बहुत बड़ा वैज्ञानिक आधार है।

प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत अभियान में मीडिया की सकारात्मक भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा कि स्वच्छ भारत मिशन जैसे अभियान में हमारे मीडिया ने जो सकारात्मक भूमिका निभाई है, उसकी पूरे देश और दुनिया में आज भी सराहना होती है। इसी तरह, अमृत महोत्सव में देश के संकल्पों में भी आप भागीदार बन सकते हैं।

प्रधानमंत्री ने असम के मौजूदा हालात का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य वर्तमान में बाढ़ की चुनौतियों का सामना कर रहा है। वहां सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और उनकी टीम लगातार राहत कार्यों में जुटी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि वह स्वयं स्थानीय अधिकारियों और लोगों के लगातार संपर्क में हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, “मैं आज असम के लोगों को, अग्रदूत के पाठकों को ये भरोसा दिलाता हूं केंद्र और राज्य सरकार मिलकर, उनकी मुश्किलें कम करने में जुटी हैं।”

प्रधानमंत्री ने दैनिक अग्रदूत से जुड़े लोगों को पांच दशक की यात्रा के लिए बधाई देते हुए कहा की कनक सेन डेका के मार्गदर्शन में अग्रदूत ने हमेशा राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखा। आपातकाल के दौरान भी जब लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला हुआ, तब भी अग्रदूत दैनिक और डेका जी ने पत्रकारिता मूल्यों से समझौता नहीं किया। उन्होंने मूल्य आधारित पत्रकारिता की एक नई पीढ़ी का निर्माण किया।

उन्होंने कहा कि दैनिक अग्रदूत के पिछले 50 वर्षों की यात्रा असम में हुए बदलाव की कहानी सुनाती है। जन आंदोलनों ने इस बदलाव को साकार करने में अहम भूमिका निभाई है। जन आंदोलनों ने असम की सांस्कृतिक विरासत और असमिया गौरव की रक्षा की। और अब जन भागीदारी की बदौलत असम विकास की नई गाथा लिख रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब संवाद होता है, तब समाधान निकलता है। संवाद से ही संभावनाओं का विस्तार होता है। इसलिए भारतीय लोकतंत्र में ज्ञान के प्रवाह के साथ ही सूचना का प्रवाह भी अविरल बहा और निरंतर बह रहा है।

असम के मुख्यमंत्री और अग्रदूत की स्वर्ण जयंती समारोह समिति के मुख्य संरक्षक डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा भी इस अवसर पर मौजूद रहे। इस मौके पर अपने संबोधन में सरमा ने कहा कि आज असम विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से असम में शांति स्थापित हुई है। उन्होंने कहा कि अग्रदूत केवल एक समाचार पत्र मात्र नहीं है बल्कि यह एक संस्थान है।

अग्रदूत की शुरुआत असमिया द्वि-साप्ताहिक के रूप में हुई थी। इसकी स्थापना असम के वरिष्ठ पत्रकार कनक सेन डेका ने की थी। 1995 में, दैनिक अग्रदूत, एक दैनिक समाचार पत्र शुरू किया गया था और यह असम की एक विश्वसनीय और प्रभावशाली आवाज के रूप में विकसित हुआ है।

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