उत्तर प्रदेश

गोपीनाथ मिश्र को शहीद का दर्जा दिलाने को संघर्ष कर रहा है प्रपौत्र

-देवरिया के शहीद स्तंभ पर दर्ज है गोपीनाथ मिश्र का नाम

देवरिया,10 अगस्त। आजादी के 75 वर्ष मनाने के लिए शासन-प्रशासन द्वारा करोड़ों रुपए खर्च कर जनता में जागरूकता फैलाई जा रही है। दूसरी ओर गोपीनाथ मिश्र को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए प्रपौत्र सर्वोच्च न्यायालय से लेकर आला अधिकारियों के दरवाजे खटखटा रहा है ।

गोपीनाथ मिश्र का नाम भी शहीद स्तम्भ पर दर्ज है। साक्ष्य भी मौजूद हैं । उसके बावजूद सरकार और प्रशासन उन्हें शहीद मानने को तैयार नहीं। जिम्मेदारों द्वारा तर्क यहां तक दिया जा रहा है कि उनका कोई रिकाॅर्ड जिले में मौजूद ही नहीं है।

अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने शुरू किया। भारत में रहने वाले युवाओं में तरुणाई आ गई ।आंदोलन की राह पर चल दिए। देवरिया जनपद भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर अपनी आहुति दी। देसही देवरिया के नौतन हथिगाढ़ के रहने वाले रामचन्द्र विद्यार्थी ने14 अगस्त को अपने साथियों के साथ मुख्यालय पर पहुंचे कार्यालय भवन पर लगे यूनियन जैक को उतार कर तिरंगा फहरा दिया। इसे देख तत्कालीन अधिकारी उमराव सिंह ने गोली चलाने का आदेशदे दिया। रामचंद्र विद्यार्थी के साथ सहोदरा पट्टी के रहने वाले सोना उर्फ शिवराज सोनार,पैकोली के बंधू उर्फ घिन्हूं और कतरारी के गोपीनाथ मिश्र भारत मां के गोद में चिरनिद्रा में लीन हो गए। घटना के पांच वर्ष बाद देश को अंग्रेजों से आजादी मिली। इन शहीदों के सम्मान में शहर के रामलीला मैदान में शहीद स्तंभ बना है। शिलापट्ट इनके वीर गाथा की कहानी बयां कर रही हैं। इसके बावजूद गोपी नाथ मिश्र को सरकार और आलाधिकारी शहीद मानने को तैयार नहीं हैं । उनका कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं।

14 अगस्त 1942 को गोपी मिश्र शहीद हुए थे। इसके पर्याप्त साक्ष्य जिले में मौजूद नहीं हैं । स्वतंत्रता संग्राम कल्याण अनुभाग ने उन्हें शहीद मानने से इनकार करते हुए पत्र जारी कर दिया। यह पत्र शहीद के प्रपौत्र धीरज मिश्र द्वारा जनसूचना अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी पर जारी हुआ है।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कल्याण परिषद के सचिव गोविंद प्रसाद द्विवेदी की तरफ से जारी इस पत्र में कहा गया है कि देवरिया जिले के संरक्षित अभिलेखों में गोपी नाथ मिश्र के संबंध में कोई सूचना नहीं है और न ही स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में ही उनका नाम है।

देश की आजादी के बाद शहर के रामलीला मैदान में शहीद स्तंभ बना। इसका लोकार्पण 25 मई 1958 को प्रदेश सरकार के तत्कालीन शिक्षा, गृह एवं सूचना विभाग मंत्री कमलापति त्रिपाठी ने किया। नगर पालिका परिषद देवरिया ने इस शहीद स्थल का 1988 में पुनर्निर्माण कराया। यहां लगे शिलापट्ट पर शहीदों की सूची में गोपीनाथ मिश्र का नाम दर्ज है। यही नहीं, देश की आजादी के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने गोपी मिश्र के बेटे विश्वनाथ मिश्र को ताम्रपत्र प्रदान किया था। शहीद के परिवार के पास ताम्रपत्र व पं. नेहरू द्वारा दी गई एक गिलास और प्लेट आज भी मौजूद है।

प्रपौत्र धीरज कुमार मिश्र ने बताया कि इस बात का दुख है कि देश के लिए जान देने वालों की सूची बनाने में भी लापरवाही बरती गई। जिलाधिकारी कार्यालय में किसी कार्य से गया था और शहीदों के बारे में चर्चा होने पर कर्मचारी ने बताया कि गोपी नाथ मिश्र शहीद नहीं हैं। इसके बाद मैंने जानकारी जुटाई और आश्रित प्रमाणत्र के लिए आवेदन किया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का आश्रित प्रमाणपत्र बनाने के लिए 17 मार्च 2016 को डीएम से गुहार लगाई। प्रमाणपत्र जारी नहीं होने पर 4 मई 2017 को गोरखनाथ मंदिर में पहुंच कर मुख्यमंत्री से मिले। इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई तो अपने आवेदन पर प्रगति के बारे में सूचना अधिकार के तहत जानकारी मांगी। फिर भी कोई जानकारी नहीं मिली। 30 दिन बाद राज्य सूचना आयोग में जाने की चेतावनी देते हुए दुबारा गुहार लगाई। मामला राज्य सूचना आयोग में पहुंचता देख जिला प्रशासन हरकत में आया और शहीद का कोई रिकाॅर्ड मौजूद नहीं होने की बात कहते हुए निस्तारण की रिपोर्ट सौंप दी। इसके बाद धीरज कुमार मिश्र ने सभी प्रमाणों के साथ हाई कोर्ट मेंं मुकदमा दाखिल किया।

उन्होंने बताया कि देश आजाद होने के बाद गोपीनाथ मिश्र के बेटे को कार्यक्रमों में अधिकारी बुलाते थे। समय के साथ ही शासन और प्रशासन उन्हें भूलता गया। शासन और प्रशासन गोपीनाथ मिश्र को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं मान रहे हैं। वहीं 7 दिसम्बर 1950 के देवरिया जिले के डीएम रहे सीएम निगम ने गोपी नाथ मिश्र के बेटे विश्वनाथ मिश्र को एक प्रमाणपत्र दिया था, जिसमें 1942 के आंदोलन शॉट डेड होने के बारे में जानकारी दी गई है। वही जिले में तैनात जिला मजिस्ट्रेट रविन्द्र शंकर माथुर ने 12 सितम्बर 1972 को परिजनों को प्रमाण पत्र दिया कि विश्वनाथ मिश्र के पिता गोपीनाथ मिश्र 1942 के स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद हुए थे ।

देश की आजादी के लिए 18 वर्ष की आयु में ही गोपी नाथ मिश्र अपनी पत्नी और बेटे को छोड़ कर शहीद हो गए। शहीद होने के बाद सरकारें आईं और गईं। किसी सरकार ने शहीद के नाम पर न तो कोई स्मारक बनाया और न ही किसी पुल का नाम उनके नाम पर रखा। शासन और प्रशासन के साथ नेताओं ने भी शहीद के परिजनों का कुशल क्षेम तक नहीं पूछा। इस संबंध में जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह से बात करने की कई बार कोशिश की गई लेकिन उनका मोबाइल फोन नहीं उठा ।

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