उत्तर प्रदेश

जो मानवता के लिए बाधक है वह धर्म नहीं : आचार्य शान्तनु महाराज

झांसी,12 अक्टूबर। आचार्य शान्तनु महाराज राजकीय पैरामेडिकल कॉलेज के रेडियोलॉजी विभाग के तत्वावधान में बुधवार को विद्यार्थियों के बीच संवाद करने पहुंचे। उन्होंने विद्यार्थियों को आज के परिवेश में धर्म को समझाते हुए बताया कि जो मानवता के लिए बाधक हो वह धर्म हो ही नहीं सकता।

उन्होंने अंध विश्वास को दरकिनार करते हुए ईश्वर प्राप्ति की सार्वभौमिक परिभाषा को भी प्रस्तुत किया। कहा कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है उसे केवल प्रेम से ही प्राप्त किया जा सकता है। एक छात्रा के सवाल के जवाब में उन्होंने सकारात्मक सोच के लिए सकारात्मक चिंतन की सलाह दी।

आचार्य श्री ने बताया कि विद्यार्थी जीवन घर की नींव की तरह होती है। हमारे जीवन की नींव विद्यार्थी जीवन ही है। हमें अपने लक्ष्य पर कितना केंद्रित हैं। जब लक्ष्य के प्रति 100 प्रतिशत समपर्ण होता है तो सफलता कदम चूमती है। यदि लक्ष्य के बीच अन्य चीजें भी दिखाई देती हैं तब लक्ष्य प्राप्ति की संभावना कमजोर होती है। यदि लक्ष्य अर्जुन की तरह केवल मछली की आंख ही दिखनी चाहिए। आप अपने जीवन को गढ़ने का कार्य कर रहे हैं। आप ही अपने जीवन के ब्रम्हा, कुम्हार व विश्वकर्मा हैं। आगे का भविष्य इस वर्तमान काल की तपस्या पर निर्भर करता है। विघ्न सबके जीवन में आता है।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन की अपार बाधाओं का वर्णन करते हुए उन्होंने उसे विस्तार से सुनाया। हम सोचकर या बुलाकर भी इतनी कठिनाइयां नहीं आ सकती। न राज्याभिषेक पर खुशी न वनवास पर प्रलाप। महापुरुष उसी को कहा जाता है। कोई चलता पदचिन्हों पर कोई पदचिह्न बनाता है। तीन प्रकार के लोग-एक सोच लेते हैं कि विघ्न की कल्पना कर कार्य शुरू नहीं करते। दूसरे विघ्न देखकर लौट आते हैं तीसरे उत्तम श्रेणी के लोग विघ्न पर लात मारकर आगे चले जाते हैं।

उन्होंने कहा कि हनुमान जी से बड़ा इसका उदाहरण कहां मिलेगा। अनावश्यक ऊर्जा व्यर्थ नहीं जानी चाहिए। जब जहां जिस तरह की आवश्यकता हो वहां वैसे पेश आना चाहिए। एक छात्रा ने नकारात्मक से सकारात्मक होने का तरीका पूछा। इसके उत्तर में आचार्य श्री ने बताया कि हमें चिंतन सकारात्मक रखना होगा। एक भी क्षण व्यक्ति बिना सोचे राह नहीं सकता। नकारात्मक सोच को जितना काम सोचें और जितना सकारात्मक सोचें। अपने स्थान के भी संस्कार होते हैं। स्थान भी नकारात्मक होते हैं।

मोबाइल को बताया नकारात्मक सोच का जनक। मोबाइल ने हमें फिर से बंदर बनाने की ओर अग्रसर कर दिया है। संगति भी अच्छे लोगों की होनी चाहिए। टाइम पास न किया जाए। इसको उपयोगी बनाएं। संसार से नहीं उस परमात्मा से मांगा जाए। वह संसार का पिता है। लड़कियों के नारियल फोड़ने के निषेध पर उन्होंने कहा कि वह अंध विश्वास में विश्वास नहीं करता। सभी को नारियल फोड़ने का अधिकार है।

उन्होंने कहा कि अति सर्वत्र वर्जयते। हमें सकारात्मक सोच से भरा रहना चाहिए। तभी नकारात्मक सोच को रोका जा सकता है। जो मानवता के लिए बाधक है वह धर्म हो ही नहीं सकता। उन्होंने बताया कि अनुवाद कभी पूर्ण नहीं हो सकता। जिसे धारण किया जाए वही धर्म है। धार्मिक पूजा पाठ 10 प्रतिशत। जो जीवन पद्धति ही असली धर्म है। जब हम किसी पर जबरन थोपने वाली व्यवस्था ही मानवता के लिए खिलाफ है।

उन्होंने माता पिता को त्यागकर मंदिर-मस्जिद में माथा फोड़ते हैं वे अभागे हैं। ऐसे धर्म को मैं नहीं मानता। उन्होंने बताया कि हरि व्यापक सर्वत्र समाना,प्रेम ते प्रकट होहि मैं जाना। विद्यार्थियों के आग्रह पर आचार्य श्री ने बालि और सुग्रीव के प्रसंग को सुनाते हुए महावीर श्री हनुमान जी के द्वारा सुग्रीव व श्रीराम की मित्रता की कथा सुनाई। उन्होंने शिक्षा दी कि एक भी अवगुण आने पर बड़ा गुणवान भी धराशाई हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह कथा हमें सिखाती है जो अपनी सहायता करना जानते हैं।

संवाद के दौरान छात्रा दिव्या ने पूछा कि नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर केसव जाया जा सकता है। डॉ. भूमिका गौतम ने बार बार नकारात्मक विचारों के बीच निर्णय लेने के तरीके को जानना चाहा। अफ्फान ने धर्म व इंसानियत के बीच टकराव पर प्रश्न किया तो आस्था ठाकुर ने लड़कियों को नारियल फोड़ने पर निषेध होने पर अपनी जिज्ञासा रखी। वहीं विमलेश कुमार ने ईश्वर प्राप्ति की जिज्ञासा जताई।

मंच पर विभागाध्यक्ष रेडियोलॉजी के प्रो.राजकुमार चाहर, विभागाध्यक्ष नर्सिंग प्रो. योगेश पांचाल,प्रदीप सरावगी, अमित साहू व विद्यार्थियों में ईशु सोनी, प्रवीण, देवेश, आजाद, नीतेश, अभय, उमाकांत, सुरभि, मोहिनी, रोशनी, संगीता व प्रख्या सिंह मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन वेद श्रीवास्तव ने किया।

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