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कैग ने डीआरडीओ की 20 परियोजनाओं पर उठाये सवाल, समय से पूरे नहीं हुए लक्ष्य

नई दिल्ली, 25 दिसंबर। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की 20 परियोजनाओं पर सवाल उठाये हैं। कैग ने कहा कि डीआरडीओ ने अपनी इन परियोजनाओं के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए समय विस्तार मांगने के बजाय उन्हें सफल मानकर बंद कर दिया। बंद की गई परियोजनाओं को उनके लक्ष्य हासिल करने के लिए फिर से नए के रूप में लिया गया।

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान पेश की रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि डीआरडीओ को परियोजनाओं का लक्ष्य हासिल करने के लिए समय विस्तार की अनुमति लेनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा न करके उन्हें सफल मानकर बंद कर दिया गया। डीआरडीओ ने 516.61 करोड़ रुपये की 15 परियोजनाओं को अपने हाथ में लिया, ताकि पहले बंद की गई परियोजनाओं को सफल घोषित करने के बाद उनके अप्राप्त उद्देश्यों को पूरा किया जा सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010-2019 के दौरान सफल घोषित की गई 86 परियोजनाओं में से 1,074.67 करोड़ रुपये के व्यय वाली 20 परियोजनाओं में प्रमुख उद्देश्य या पैरामीटर हासिल नहीं किए गए थे।

कैग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि डीआरडीओ को उच्च प्राथमिकता वाली कई सैन्य परियोजनाओं में इसी वजह से समय और लागत में वृद्धि, अनियमित बंद सहित कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है। कैग ने संसद में पेश रिपोर्ट में कहा है कि इनमें से कुछ ‘मिशन मोड’ परियोजनाओं को डीआरडीओ ने सफल घोषित करके बंद किया, लेकिन बाद में फिर से नए प्रोजेक्ट के रूप में लेना पड़ा। दरअसल, ‘मिशन मोड’ परियोजनाओं को पूरा करने के लिए एक निश्चित समय सीमा होती है, लेकिन 178 में से 119 परियोजनाओं में इसका पालन नहीं किया जा सका।

कैग के मुताबिक 49 परियोजनाओं में पहले से निर्धारित मूल समय-सीमा से लिया गया अतिरिक्त समय 100% से अधिक था। कई मौकों पर समय विस्तार की मांग की गई, जो कुल विलंब 16% से 500% के बीच था। कैग ने कहा कि प्रौद्योगिकियां आसानी से उपलब्ध न हो पाने की वजह से मल्टी मिशन परियोजनाओं को पूरा करने में समय अधिक लगता है, इसलिए ऐसी परियोजनाओं का उद्देश्य विफल हो जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि डीआरडीओ से ऐसी कई परियोजनाओं को शुरू करने और मंजूरी देने में काफी देरी हुई। सैकड़ों करोड़ रुपये की कई ऐसी भी परियोजनाएं थीं, जिन्हें सफल घोषित किये जाने के बावजूद वे मानकों पर खरी नहीं उतरीं।

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