भावुक योगी ने कहा, ”पहिए होते तो शिफ्ट हो गया होता मेडिकल कॉलेज”
गोरखपुर, 05 नवम्बर । बाबा राघवदास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज की दुर्दशा को पिछले 30 वर्षों से देख रहे योगी आदित्यनाथ अपने सम्बोधन के दौरान अचानक भावुक हो गये। उनकी आँखें डबडबा गईं।
इस दौरान उन्होंने सजल आँखों ही भीड़ को देखते हुए कहा कि बीते 30 वर्षों से वह इस मेडिकल कॉलेज से जुड़े हैं। इसकी दुर्दशा को अपनी आंखों से देखा है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज ने लंबे अर्से तक उपेक्षा का दंश झेला है। इसके अस्तित्व पर ही संकट आ गया था। पूर्ववर्ती सरकारों के हुक्मरानों को किस्तें हुए कहा कि उनका रवैया ऐसा था कि पहिए लगे होते तो यह मेडिकल कॉलेज कहीं और शिफ्ट हो गया होता।
मुख्यमंत्री ने कहा कि लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज चिकित्सा और चिकित्सा शिक्षा के बेहतरीन केंद्र के रूप में उभरा है। यह एम्स जैसी केंद्रीय संस्था को टक्कर देने के लिए खड़ा हो चुका है। लेकिन उन्होंने बीआरडी क चिकित्सकों को आगाह भी किया। उन्हीने कहा कि विशिष्टता को अपने तक सीमित रखना उपलब्धि नहीं है। इसका लाभ समूचे समाज को मिलना चाहिए। चिकित्सक का पूरा जीवन समाज के लिए समर्पित रहता है। उसे धरती पर भगवान की संज्ञा दी जाती है। इसलिए, लोगों की इसी भावना के अनुरूप चिकित्सक अपने ज्ञान व अनुभव का फैलाव करें।
बीआरडी से पास आउट छात्रों से मुख्यमंत्री ने कहा कि जब आप यहां पढ़ते रहे होंगे तब मेडिकल कॉलेज में बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर व सुविधाओं का अभाव था। इंसेफेलाइटिस वार्ड में एक बेड पर चार मरीज पड़े होते थे। डॉक्टरों को सीमित साधनों में मेहनत करते देखा है। वार्डों में पंखे नहीं थे। बदबू आती थी। जायजा लेने के दौरान मै खुद मुंह पर गमछा बांधता था। पर, स्वर्ण जयंती समारोह में आने पर आप सबने बदलता मेडिकल कॉलेज देखा है। कॉलेज में हर तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर है। सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक बन चुका है।
उन्होंने कहा कि किसी संस्था के पचास साल का कार्यकाल मायने रखता है। व्यक्ति के जीवन के लिए चार आश्रमों गुरुकुल, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास की व्यवस्था है। बीआरडी अब इस व्यवस्था के तीसरे चरण में आ चुका है। अब अपने ज्ञानार्जन को समाज के प्रति समर्पित करने की बारी है। यह एक प्रकार का यज्ञ है। सिर्फ धार्मिक कर्मकांड ही यज्ञ नहीं है। माता-पिता, शिक्षक का सम्मान, संस्था के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना भी यज्ञ है। संस्थान के प्रति हमारा भाव पवित्र मंदिर सा होना चाहिए।
हमारी पहचान विश्वसनीयता व स्वीकार्यता से होनी चाहिए। एक मरीज दूर से चिकित्सक का नाम लेकर शहर में आता है। उस दिन मुलाकात न होने पर रात में कहीं रुक कर अगले दिन तक इंतजार करता है। विश्वसनीयता को बनाए रखने की जिम्मेदारी चिकित्सक की खुद की होती है। चिकित्सकों की पहचान उनके कार्यों, रिसर्च व उपलब्धियों से होती है।