जीवन मे आनंद प्राप्त करने के लिए ज्ञान और ज्ञान ही है साधना:श्री शंकर भारती महास्वामी
अररिया 05दिसम्बर। जीवन मे आनंद प्राप्त करने के लिए ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है।ज्ञान ही साधना है। शंकराचार्य जी के ज्ञान के उपदेशों को सदैव स्मरण करना चाहिए। आँख स्वयं नहीं देख सकता, कान स्वयं नहीं सुन सकता कोई शक्ति हमारे अंदर है इसलिए आंख देखता है और कान सुनता है। उपरोक्त बातें अपने सम्बोधन में श्रृंगेरी शारदा पीठ मठाधिपति यडतोरे श्री योगानन्देश्वर सरस्वती मठ मैसूर, कर्नाटक के वर्तमान मठाधिपति एवं वेदांत भारती के संरक्षक परम पूज्य श्री श्री शंकर भारती महास्वामी जी महाराज ने कही।वे फारबिसगंज सरस्वती विद्या मंदिर के खुले सत्र में अपना सम्बोधन कर रहे थे।
आदि शंकराचार्य वेदों के परम विद्वान थे, प्रखर भविष्यदृष्टा थे। उन्होंने सनातन धर्म की अपने ज्ञान से तत्कालिन समय में ही रक्षा नहीं की वरन सनातन धर्म और वेदों का अस्तित्व और प्रतिष्ठा अनंत काल तक बनाए रखने की दृष्टि के साथ अपने जीवनकाल में ही जगह-जगह घूमकर वेदान्त दर्शन का प्रचार-प्रसार किया । इसी उद्देश्य से उन्होंने देश की चारों दिशाओं में चार धाम, चार पीठ, बारह ज्योर्तिंलिंगों और अखाड़ों की स्थापना की इसलिए आज हम शंकराचार्य जी को स्मरण करते हैं ।उंन्होने बताया कि शंकराचार्य के वेदान्त को अद्वैत वेदान्त इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि उनका यह मानना है कि परम तत्व ब्रह्म की सत्ता सभी प्रकार के सजातीय, विजातीय तथा स्वगत भेदों से रहित सत्ता है। इसलिए जब ब्रह्म या आत्मा में किसी प्रकार का भेद है ही नहीं तो वह निश्चय ही अद्वैत होगा।
शंकराचार्य के अनुसार शिक्षा का एकमात्र लक्ष्य विद्यार्थी को अज्ञान से मुक्त कर उसे ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाना है। जिससे वह विद्या एवं अविद्या, सत्य एवं असत्य में अन्तर कर सके तथा स्वंय में निहित अनन्त ज्ञान तथा अनन्त शक्ति को पहचान सके।