धरती पर तीन रत्न : पानी, अनाज और सुभाषित : आचार्य महाश्रमण
Acharyashree made Mangal debut in Government Primary School
हिसार से लगभग दस कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे आर्यनगर
स्वागत जुलूस संग राजकीय प्राथमिक पाठशाला में आचार्यश्री ने किया मंगल पदार्पण
हिसार, 11 अप्रैल (हि.स.)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ताअहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण सोमवार को जिले में आर्यनगर में पहुंचे। वर्षों बाद अपने नगर में अपने आराध्य को पाकर श्रद्धालुओं में उत्साह देखा गया।
सोमवार को प्रात: की मंगल बेला में आचार्यश्री महाश्रमण ने हिसार के अग्रसेन भवन से प्रस्थान किया। तेज धूप में लगभग दस किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री आर्यनगर स्थित प्राथमिक पाठशाला में पधारे। पाठशाला परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि शरीर को टिकाए रखने के लिए हवा, पानी और भोजन की आवश्यकता होती है। जीवन में प्रथम कोटि की आवश्यकता होती है, जिसमें पहले हवा, फिर पानी और अंत में भोजन। आदमी को कई दिनों तक भोजन न मिले तो भी वह जीवित रह सकता है। पानी के बिना भी वह कुछ दिनों तक जीवित रह सकता है, किन्तु हवा के बिना तो कोई भला कितनी देर जीवित रह सकता है। इसलिए मानव जीवन में हवा की अत्यंत आवश्यकता है।
शास्त्रों में धरती पर तीन प्रकार के रत्न बताए गए हैं पानी, अनाज और सुभाषित। मूर्ख लोग पत्थरों को रत्न मान लेते हैं। आदमी पत्थर के रत्नों के बिना तो रह सकता है, किन्तु हवा, भोजन और पानी के बिना भला वह कब तक जिन्दा रह सकता है। शास्त्रों के माध्यम से ऐसे सुभाषित (सुन्दर वाक्य) आदि प्राप्त हो सकते हैं, जिससे मानव जीवन की दशा और दिशा बदल सकती है। जीवन में दूसरी कोटि की आवश्यकता है कपड़ा और मकान। तीसरे कोटि की आवश्यकता है शिक्षा और चिकित्सा। ये तीन स्तर की आवश्यकताएं मानव जीवन के लिए आवश्यक होती हैं। इन आवश्यकताओं के लिए आदमी को प्रयत्न करना होता है। आदमी अपनी मेहनत और लगन से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करे तो अच्छी बात है, किन्तु नशीले पदार्थों के सेवन आदि में अनावश्यक जाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने आर्यनगर आगमन के संदर्भ में कहा कि कई वर्षों के बाद यहां आना हुआ है। यहां के लोगों में खूब आध्यात्मिक, धार्मिक प्रगति होती रहे।