राष्ट्रीय

अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में कुशीनगर के युवाओं ने निभाई थी सक्रिय भूमिका

– उखाड़ी रेल की पटरी, गोलियां भी खाई और जेल भी गए

– दो क्रन्तिकारियों को अंग्रेजों ने जिंदा जला दिया

– अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन 8 अगस्त पर विशेष

कुशीनगर, 08 अगस्त। सन 1942 की आठ अगस्त की रात को बम्बई से महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो और करो और मरो का जो नारा दिया, उसे उप्र की कुशीनगर जिले की तत्कालीन जनता ने शिद्दत से स्वीकार किया।

इस आंदोलन में इसे जिले के दुदही तथा इसके अगल बगल के इलाके के लोगों ने अग्रणी भूमिका निभाई। विशेषकर युवा क्रन्तिकारियों ने देश में लड़ाई का नेतृत्व कर रहे अग्रणी नेताओ के नक्शे कदम पर चलकर हुए गांव देहात में अपनी लड़ाई को धार देना शुरू किया। युवा क्रन्तिकारियों ने गोलियां भी खाई और जेल भी गए। दो क्रन्तिकारियों को तो अंग्रेजों ने जिंदा जला दिया।

युवा क्रांतिकारी रात के अंधेरे में गांवों में निकलते थे और लोगों से नेताजी सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी, पटेल, नेहरू भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद की कहानियां सुनाकर उनके द्वारा किए जा रहे आजादी के प्रयासों के बारे में बताकर आंदोलन से जोड़ने का कार्य करते थे।

उस दौरान दुदही में 1935 में स्थापित हुए प्राथमिक विद्यालय के तत्कालीन प्रधानाचार्य लोकमणि श्रीवास्तव जो अध्यापन के साथ ही डाक मुंशी का काम भी देखते थे। उनके नेतृत्व में दुदही बाजार निवासी भंगी राम कलवार के घर में चलने वाले प्राइमरी विद्यालय तथा डाकघर से ही आजादी की गतिविधियां संचालित होने लगी। भंगी राम स्कूल चलाने के लिए निशुल्क अपना घर दे दिये थे। उनसे प्रभावित होकर उनके छोटे भाई राजराम लाल ने भी आज़ादी का बिगुल फूंका।

गांधी जी के कार्यक्रम में जाते समय कप्तानगंज से लोकमणि श्रीवास्तव को अंग्रेजों ने गिरफ़्तार कर लिया। जिसके बाद इलाके में वो आंदोलन और तेज हो गया। आक्रामक ढंग से आजादी की लड़ाई लड़ी जाने लगी। जिसमें दुदही के अनेक लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उखाड़ फेंकी रेल पटरी

आंदोलन के क्रम में दुदही व तमकुही रोड रेलवे स्टेशन के बीच 1942 में रेल की पटरी को इन क्रांतिकारी युवाओं ने अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देते हुए उखाड़ डाला था। इस कारनामे से अंग्रेज भौचक रह गए। उन्होंने इसे चुनौती के रूप में लेते हुए दमन का सिलसिला शुरू कर दिया। इस काम को अंजाम देने वाले ग्यारह सेनानियों के नाम सेवरही में स्थापित शहीद स्मारक पर अंकित हैं। इन नामों में जतन, जानकी, मथुरा सिंह, धरीक्षण, रघुबीर, रामानंद, लुटावन सिंह, भोला प्रसाद, फेकू भगत, भूईलोट तथा मंगल के नाम उल्लेखनीय हैं। इस लड़ाई को धार दे रहे क्रांतिकारी युवाओं ने अंग्रेजों की पहचान में आ जाने के बावजूद अपना मिशन जारी रखा। हालांकि संसाधन विहीन इलाके के ये जांबाज सेनानी अंततः अंग्रेजों के कोपभाजन का क्रमशः शिकार भी हुए।

दो क्रन्तिकारियों को जिन्दा जला दिया

दुदही ब्लॉक के पंचायत गौरी शुक्ल के जतन मल, अमवाखास पंचायत के धरीछन, मंगल राय किसुनवा टोले के भोला चौहान को अंग्रेजों की गोली का शिकार होना पड़ा। जबकि इनकी टोली के साथी गौरी जगदीश के मंगल भगत को जिंदा जलाकर मार दिया गया। इसी इलाके के अन्य 74 क्रांतिकारी जेल में डाल दिये गए। जो लोग अंग्रेजों की पकड़ में आ गए उन्हें जेल जाना पड़ा, जिनमें अश्वथामा सिंह, सत्यनारायण गुप्ता, कुटुबदीन अंसारी, अलगू, अनमोल भगत सहित कई लोगों को जेल में डालकर कठोर यातनाएं दी गयी।

आजादी का आंदोलन खड़ा करने के आरोप में चनरदेव तिवारी को दो साल की कैद, दिलीप राम को एक साल की कैद तथा बारह बेंत, नकछेड़ को एक वर्ष की कैद तथा छह बेंत, सूर्यदेव को 18 बूट, श्रीकृष्ण को 24 बेंत तथा 500 रुपये का जुर्माने की सजा भुगतनी पड़ी थी। इनके अलावा भी तमाम गुमनाम साथी रहे जिन्होंने इन सेनानियों की मदद में नुकसान सहते हुए उनके नेपथ्य के सहयोगी रहे। इन महान व्यतित्व के याद में दुदही में सेनानी स्थल तथा सेवरही में शहीद स्मारक स्थल का निर्माण आजादी के बाद इनको याद करते हुए कराया गया है।

ज्ञात-अज्ञात सेनानियों के इतिहास जानने का हो रहा प्रयास

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) की अनुषंगी इतिहास संकलन समिति के संगठन मंत्री बालमुकुंद पांडे के नेतृत्व में कुशीनगर के ज्ञात स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों के साथ ही अज्ञात नायकों के इतिहास को जानने का प्रयास गंभीरता से जारी है। बीते 24 जुलाई को नव नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 बैद्यनाथ लाभ, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 रजनीश शुक्ल तथा सिद्धार्थ विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो0 सुरेंद्र दुबे की उपस्थिति में स्वतंत्रता आंदोलन में कुशीनगर की भूमिका विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। जिनमें विद्वानों ने अपने सारगर्भित संबोधनों के जरिए उपस्थित श्रोताओं को तमाम जानकारियों से अद्यतन कराया।

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