राष्ट्रीय

मुख्यमंत्रित्व काल की इन घटनाओं के लिए विवादों में रहे मुलायम सिंह यादव

लखनऊ, 10 अक्टूबर। उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को अगर धरतीपुत्र, किसानों के मसीहा और नेताजी जैसी उपाधियां मिलीं तो मौलाना मुलायम की उपाधि से भी उन्हें नवाज कर विपक्ष हमले करता रहा। तमाम उतरा-चढ़ाव के साथ अपनी सियासी पारी में वह तीन बार मुख्यमंत्री और एकबार रक्षा मंत्री ही नहीं रहे बल्कि बेटे को मुख्यमंत्री बनाने में भी सफलता हासिल की। आज नेताजी को पूरा देश याद कर रहा है। इसी कड़ी में हम आपको बताएंगे कि उनके मुख्यमंत्रित्व काल के कुछ ऐसे फैसले या घटनाक्रम रहे जिसे लेकर वे विवादों में भी रहे हैं।

अयोध्या में कारसेवकों पर जब चली थी गोली

नब्बे के दशक में राममंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। विश्व हिन्दू परिषद के आह्वान पर पूरे देश में हिन्दू जनमानस यह चाह रहा था कि बाबरी मस्जिद विध्वंस कर वहां राममंदिर का निर्माण किया जाए और उन्हें उनका हक मिले। 30 अक्टूबर 1990 की तारीख थी। बड़ी संख्या में कारसेवक अयोध्या में एकत्र हुए थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की मुख्यमंत्री वाली कुर्सी और भविष्य की सियासत, दोनों ही दांव पर थी। वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह कहते हैं कि ऐसी परिस्थिति में विश्व हिन्दू परिषद के राममंदिर आंदोलन को रोककर मुस्लिम मतदाताओं को साथ जोड़े रखना मुलायम ने बेहतर समझा। शायद इसी का नतीजा रहा कि पुलिस ने कारसेवकों पर गोली चला दी। कारसेवकों की कुर्बानी से हिन्दू जनमानस में मुलायम सिंह यादव खलनायक की तरह देखे जाने लगे। दूसरी तरफ मुलायम के साथ मुस्लिम मतदाता मजबूती से खड़ा हो गया और उनकी सियासत चमकती गयी।

कल्याण सरकार के नकल अध्यादेश को जब दी थी ढील

उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार नकल विरोधी एक अध्यादेश लेकर आई। इससे पूरे प्रदेश भर में यूपी बोर्ड की परीक्षाओं में नकल पर करीब-करीब रोक लग गयी। इसको लेकर कल्याण सिंह की सरकार और तत्कालीन शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सुर्खियों में रहे। उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा। मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने युवाओं का दिल जीतने के लिए नकल अध्यादेश को शिथिल करने का काम किया। इससे एक तरफ जहां कुछ खास युवाओं में खुशी देखने को मिली, वहीं प्रबुद्ध वर्ग ने मुलायम सरकार की कड़ी आलोचना की। लोगों ने कहा कि मुलायम सिंह नकल करा रहे हैं। वह युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। जानकार कहते हैं कि कोई कुछ भी विरोध करे लेकिन मुलायम अपनी रणनीति में सफल हुए।

वरिष्ठ पत्रकार रतिभान त्रिपाठी कहते हैं कि वह (मुलायम) नकल कराने के पक्ष में नहीं थे। नकल में पकड़े गए बच्चों को जेल भेजे जाने के खिलाफ थे। वह नहीं चाहते थे कि जो बच्चा भविष्य बनाने के लिए पढ़ाई कर रहा है, वह जेल जाए। इसलिए उन्होंने इसमें कुछ बदलाव किये थे।

रामपुर तिराहा कांड याद कर आज भी सहम जाते हैं लोग

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में रामपुर तिराहा कांड आज भी याद कर लोग सहम जाते हैं। दरअसल उत्तर प्रदेश में पर्वतीय समाज के लोग अलग पहाड़ी राज्य की मांग कर रहे थे। इस मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलन चल रहा था। वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह कहते हैं कि पहाड़ी राज्य की मांग को लेकर एक अक्टूबर 1994 को पहाड़ी इलाकों से बसों में सवार होकर कुछ लोग दिल्ली के लिए रवाना हुए। पुलिस ने उन्हें कई स्थानों पर रोकने का प्रयास किया लेकिन उनका काफिला बढ़ता गया। पुलिस ने आंदोलनकारियों के जत्थे को रामपुर तिराहे पर रोकने की योजना बनाई। एक अक्टूबर की रात में आंदोलकारियों को यहीं रोका गया। पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच कहासुनी हुई। फिर पत्थरबाजी हुई। इसमें तत्कालीन जिलाधिकारी समेत कुछ अधिकारी चोटिल हुए।

आंदोलकारियों की तरफ से आरोप लगे कि पुलिस ने आंदोलनकारियों के साथ बड़ी बर्बरता की। महिला आंदोलनकारियों के साथ छेड़खानी भी हुई। यह सूचना आंदोलन समर्थकों तक पहुंची तो दूसरे दिन आंदोलनकारियों की संख्या बढ़ गयी। इस भीड़ को रोकने के लिए पुलिस ने गोलियां चला दीं जिसमें सात प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। आखिरकार नवंबर 2000 में केन्द्र की अटल सरकार ने नये राज्य का गठन किया लेकिन वह घटनाक्रम घाव दे गया। एक अक्टूबर की रात दमन एवं अमानवीयता के बीच ऐसे बीती और दो अक्टूबर का दिन ऐसा घाव दे गया जो आज भी काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है।

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