उत्तर प्रदेश

फिराक गोरखपुरी ने भी लड़ी थी जंग-ए-आजादी

लखनऊ, 28 अगस्त। रघुपति सहाय “फिराक गोरखपुरी” का जन्म 28 अगस्त 1982 को गोरखपुर में हुआ था। जवानी के शुरुआती दिनों में फिराक साहब गांधी के मुरीद थे। कभी उन्होंने कहा था कि गांधी की टूथलेस स्माइल पर संसार न्योछावर हो सकता है। आठ फरवरी 1921 को गोरखपुर स्थित बाले मियां के मैदान में महात्मा गांधी के भाषण से प्रभावित होकर फिराक ने डिप्टी कलेक्टर का ओहदा छोड़ा और जंग-ए-आजादी में शामिल हो गए। अपनी विद्वता और मंत्रमुग्ध करने वाली भाषण कला से वे पंडित नेहरू के काफी निकट हो गए। यह निकटता ताउम्र बनी रही। असहयोग आंदोलन के दौरान वह गिरफ्तार हुए और करीब डेढ़ वर्ष तक आगरा और लखनऊ के जेलों में रहे।

चौरीचौरा कांड के बाद उस समय के तमाम कांग्रेसी नेताओं की तरह फिराक भी आंदोलन को एकाएक स्थगित करने के पक्ष में नहीं थे। लिहाजा उनका गांधी से मोहभंग हो गया। अपनी एक रचना में उन्होने लिखा भी- “बंदगी से नहीं मिलती, इस तरह तो जिंदगी नहीं मिलती। लेने से तख्तो-ताज मिलते हैं। मांगने से भीख भी नहीं मिलती।”

लक्ष्मी निवास था फिराक के गोरखपुर के पुस्तैनी घर का नाम

फिराक के पिता फ़ारसी के नामचीन शायर थे। फिराक के पिता गोरख प्रसाद सहाय उर्फ इबरत गोरखपुर के जाने-माने वकील और फारसी के शायर थे। तुर्कमानपुर स्थित उनके पुश्तैनी घर का नाम लक्ष्मी निवास था। उस जमाने में लक्ष्मी निवास समय-समय पर पंडित जवाहरलाल नेहरू, अली बंधु और मुंशी प्रेमचंद्र जैसी हस्तियों का ठिकाना हुआ करता था। उस समय के जाने-माने साहित्यकार और शहर के रईस मजनू गोरखपुरी, गौहर गोरखपुरी, परमेश्वरी दयाल, एम कोटियावी राही, मुग्गन बाबू, जोश मलीहाबादी, मजनू दि्ववेदी और तबके जाने-माने समाजवादी नेता शिब्बन लाल सक्सेना जैसे लोग भी वहां अक्सर आते रहते थे। लंबी बीमारी के बाद पिता की मौत के बाद पिता द्वारा छोड़े गए कर्ज, भाइयों की तालीम और बहनों की शादी के लिए फिराक ने उस कोठी को महादेव प्रसाद तुलस्यान को बेच दिया था। महादेव प्रसाद तुलस्यान के पुत्र बाला प्रसाद तुलस्यान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से खासे प्रभावित थे। लिहाजा बाद के दिनों में उन्होंने इस कोठी को संघ को दे दिया। वर्षों तक नानाजी देशमुख का यह केंद्र हुआ करता था। अब इसके एक हिस्से में सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल है। बाकी हिस्से में मकान और एक निजी चिकित्सालय है। खुद फिराक इस कोठी को मनहूस मानते थे।

लोकसभा चुनाव में जब्त हो गई थी जमानत

फिराक गोरखपुरी ने बासगांव लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। वह न केवल चुनाव हारे, बल्कि उनकी जमानत जब्त हो गई। इसके बाद उन्होंने यह कहकर राजनीति से तौबा कर ली कि राजनीति उन जैसे पढ़े-लिखों का शगल नहीं। उनके सचिव रहे रमेश द्विवेदी ने फिराक से जुड़ी अपने संस्मरणों की पुस्तक में इस चुनाव की चर्चा की है। वर्ष 1957 के इस आम चुनाव में वह शिब्बन लाल सक्सेना की पार्टी किसान मजदूर पार्टी से प्रत्याशी थे। उनके खिलाफ हिंदू महासभा से उस समय के गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ और कांग्रेस से सिंहासन सिंह चुनाव लड़ रहे थे। गोरखपुर आकाशवाणी में दिए एक साक्षात्कार में फिराक ने खुद इस चुनाव के अनुभवों की चर्चा की थी। उन्हें सबसे बड़ा मलाल इस बात का था कि जवाहर लाल नेहरू की कांग्रेस के खिलाफ उन्हें चुनाव लड़वा दिया गया। इसके लिए उन्होंने शिब्बन लाल सक्सेना को भी बुरा-भला कहा था।

आकाशवाणी के पूर्व कार्यक्रम अधिशासी रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव जुगानी भाई इस चुनाव से जुड़े रोचक किस्से बताते हैं। उनके अनुसार चुनाव प्रचार के लिए एक बस ली गई थी। यह बस नजीर भाई की थी। जो इसे भाड़े पर गोला से गोरखपुर के बीच चलाते थे। बस के आधे हिस्से में कार्यालय था। इसी से चुनाव संचालन होता था। आधे में पोस्टर बैनर और झण्डे आदि रखे जाते थे। यह बस जहां तक जाती थी फिराक साहब वहीं तक चुनाव प्रचार करते थे। फिराक के भाषण का विषय सिर्फ राजनीतिक नहीं था, वे सामयिक साहित्य एवं संस्कृति पर भी धाराप्रवाह बोलते थे। यह उनका अंतिम चुनाव रहा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker