बाधाओं को दूर करके किशोरियों ने गैर पारंपरिक रोजगार में बनाई अपनी जगह
नई दिल्ली, 11 अक्टूबर। इच्छाशक्ति हो तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। दृढ़ निश्चय का हाथ थामे दूर-दराज क्षेत्रों में रहने वाली कुछ किशोरियों ने अपने जीवन में गैर पारंपरिक रोजगार को अपना कर सभी के लिए मिसाल कायम की है। इन किशोरियों ने न केवल अपने जीवन को संवारा बल्कि अब अपने जैसी कई लड़कियों के लिए प्रेरणा बन रही हैं।
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर ऐसी प्रेरणादायक किशोरियों से खास बातचीत के प्रमुख अंश-
गुलाबशाह की हिम्मत ने सभी को किया प्रभावितः बिहार की 18 वर्षीय गुलाब शाह प्रवीण की जिंदगी तीन साल पहले तक चुनौतियों से भरी थी। गुलाब बताती हैं कि 15 साल में ही उनका बालविवाह 55 वर्षीय व्यक्ति के साथ कर दिया गया था। वहां घरेलू हिंसा की वजह से बाल आश्रय गृह का सहारा लिया। वहां से निकलने के बाद घर वालों ने भी नहीं अपनाया लिहाजा दर दर भटकने पर मजबूर थी। गुलाब शाह बताती हैं कि यूनिसेफ के संपर्क में आने के बाद उनकी जिंदगी में नया मोड़ आया। यहां पैकेजिंग, मैनिजिंग और कंप्यूटर की ट्रेनिंग करने के बाद वहीं मैनेजर के पद काम कर रही हैं। गुलाब शाह प्रवीण की संघर्ष की कहानी सुनकर स्मृति ईरानी भी भावुक हुईं और आश्रय गृह में रोजगार परक कोर्स शुरू करने की घोषणा की।
ओडिशा की सुप्रवा बेहरा बनी इलेक्ट्रिशियनः 15 साल की सुप्रवा बेहरा ने भी बाल विवाह के खिलाफ मोर्चा खोला है। वे आगे पढ़ना चाहती थीं लेकिन माता पिता ने उनका बाल विवाह करने का फैसला लिया। उसने न केवल बाल विवाह के खिलाफ आवाज बुलंद की बल्कि आगे की पढ़ाई भी की। आईटीआई में बिजली ठीक करने का कोर्स किया और गांव में बाल विवाह प्रतिरोध मंच भी बनाया। अब वे गांव में अकेली महिला इलेक़्ट्रिशियन हैं और दूसरी लड़कियों को भी बल दे रही हैं। वे बताती हैं कि गांव में आठवीं के बाद ज्यादातर लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं इसलिए उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए नो टू स्कूल, नो टू चाइल्ड मैरेज कैंपेन चलाया है।
नासा में काम करने की इच्छा रखती हैं मान्याः दिल्ली की मान्या मिश्रा ने साइंस के क्षेत्र में काम करने का मन बनाया है। मान्या बताती हैं वे नासा में काम करना चाहती हैं। वे लड़कियों के लिए स्टेम यानि साइंस, टेक्नॉलजी, इंजीनियरिंग और मेडिसिन के विषयों जोर देती हुई स्कूल स्तर पर करियर काउंसलिंग की बात करती हैं। इस विषय को उठाते हुए उन्होंने महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी से स्कूलों में करियर काउंसलर रखने की बात की।
असम की 17 साल की उर्मिला ने ली एलईडी बल्व बनाने की ट्रेनिंगः उर्मिला बताती हैं कि उनके गांव में एलईडी बल्व बनाने की कोई फैक्टरी नहीं है। उन्होंने इस क्षेत्र में ट्रेनिंग ली है और अब वो अपने गांव में इसकी ट्रेनिंग देकर अपना व्यवसाय शुरू करना चाहती हैं। उर्मिला बताती हैं कि तकनीकी शिक्षा को क्षेत्रीय भाषा में होना चाहिए ताकि गांव की लड़कियों की समझ विकसित हो सके।