राष्ट्रीय

भारतवर्ष के कण-कण में लोक निहित: आरिफ मोहम्मद खान

-भूमि, जन और संस्कृति से राष्ट्र का होता है निर्माण: दत्तात्रेय होसबाले

गुवाहाटी, 24 सितम्बर। गुवाहाटी के श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र के प्रेक्षागृह में चार दिवसीय लोकमंथन-2022 नामक सांस्कृतिक संध्या एवं प्रदर्शनी के चौथे एवं अंतिम दिन आयोजित समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि भारतवर्ष के कण-कण में लोक निहित है।

उन्होंने कहा कि भारतीय सभ्यता का सबसे बड़ा महत्व यह है कि जैसा व्यवहार आपके लिए पीड़ादायक है, आप वैसा व्यवहार दूसरे के लिए न करें। भारतीयता के आदर्श ऋषि-मुनि रहे हैं। उन्होंने कहा कि बिल्डिंग खत्म हो जाएंगी, लेकिन रामायण, महाभारत आदि ग्रंथ खत्म नहीं होंगे। राज्यपाल खान ने कहा कि भारत की संस्कृति ज्ञान और प्रज्ञा के संवर्द्धन के लिए जानी जाती है। ज्ञान की प्राप्ति करना और उसे दूसरे के साथ साझा करना ही तप है।

कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि राष्ट्र के अंतस को सुदृढ़ करने और उसे गतिमान रखने का जो लोग प्रयास कर रहे हैं, उन्हें लोक मंथन से जुड़ना चाहिए। लोकमंथन के कार्यक्रम में जीवन से जुड़ी कई चीजों पर गहन चर्चा हुई है। उन्होंने कहा कि भूमि, जन और संस्कृति से राष्ट्र का निर्माण होता है। सभ्यता और संस्कृति लोक के कारण ही जीवित रहा है। लोक परंपरा में विविधता कभी आड़े नहीं आती।

इससे पहले डॉ. मल्लिका कंदली की टीम ने असमिया में भारत वंदना की प्रस्तुति दी। कलाकारों को सम्मानित किया गया। इस दौरान दो पुस्तकों और एक जर्नल का विमोचन हुआ। श्रीकांत ने लोक मंथन के उद्देश्य एवं कार्य-कलापों की विस्तृत जानकारी दी। वंदे मातरम की प्रस्तुति त्रिवेणी बुजरबरुवा ने दी। वहीं, असम के शिक्षा सलाहकार प्रो. ननी गोपाल महंत ने स्वागत भाषण तथा धन्यवाद ज्ञापन दिया।

इससे पहले देश के विभिन्न राज्यों सहित असम की जनजातियों की वैवाहिक सांस्कृतिक प्रस्तुति दी गई। इस दौरान लोक परंपरा में संस्कार और कर्त्तव्य की भावना, भारतीय समाज में औद्योगिक जातियों के संदर्भ सहित विषय पर आयोजित संभाषण समारोह में वक्ता के रूप में बनवारी ने कहा कि कर्त्तव्य की जानकारी परंपरा से मिलती है। लेकिन, शास्त्रों के अनुसार हमें संस्कार से कर्त्तव्य की जानकारी मिलती है। उन्होंने कहा कि त्याग, रक्षा और विनिर्माण के लिए हम अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करते हैं। सभी व्यवहारों का आधार धार्मिक है। उन्होंने कहा कि किसी विशेषज्ञता की रक्षा करना ही जाति है। मर्यादा का उल्लंघन करने से जाति चली जाती है।

वहीं, प्रो. भागवती प्रकाश ने कहा कि प्रतिदिन के व्यवहार में भी शास्त्र परिलक्षित होता है। आज शास्त्र के विधान लोक जीवन में नहीं मिलते, लेकिन प्राचीनकाल में शास्त्र के विधान लोक जीवन में मिलते थे। उन्होंने कहा कि मां का स्थान सबसे ऊंचा है। लोक परंपरा में ऐतिहासिक मान्यताएं विद्यमान हैं। उन्होंने कहा कि इतिहास और लोक परंपराओं का वैश्विक प्रभाव रहता है। हमारे यहां इंडस्ट्री का इतिहास काफी पुराना है। यहां दुनिया के 34 प्रतिशत सामान उत्पन्न होते थे। पूर्ववर्ती काल में भारत एक उत्पादक देश था।

वहीं नगालैंड के उच्च शिक्षा एवं जनजाति मामलों के मंत्री तेमजेन इम्ना ने कहा कि नगालैंड में 17 जनजातियां हैं लेकिन उनकी भाषा की कोई लिपि नहीं है। हमारी ऐतिहासिक शक्ति खो चुकी है। हम अपने अस्तित्व को पूरी तरह से नहीं खोज पाए हैं। अपने अस्तित्व को खोजे बिना कुछ कर पाना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि हम अपने मूल को खोज लें और सत्य विचारों पर चलें तो हम बहुत बड़े उत्पादक हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि पश्चिमीकरण ने हमें तोड़ दिया है। हमारी आर्थिक गतिविधि तहस-नहस हो चुकी है।

लोक परंपरा में पर्यावरण एवं जैव विविधता विषय पर आयोजित संभाषण समारोह में वक्ता के रूप में अनंत हेगडे अशीसार ने कहा कि तुलसी चौरा बनाकर पूजा करना हमारी संस्कृति को प्रदर्शित करता है। जैव विविधता पर दक्षिण भारत में काफी कार्य हो रहा है। उन्होंने जैव विविधता पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने अलग भाषा, अलग वेष फिर भी भारत एक के नारा पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि पर्यावरण की रक्षा के लिए पौधरोपण अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने राज्य और देश की रक्षा करने का आह्वान किया।

स्टेट बोर्ड मेंटर वाइल्ड लाइफ, विवेकानंद केंद्र इंस्टीट्यूट कल्चर के निदेशक प्रो. परिमल भट्टाचार्य ने कहा कि उत्तर-पूर्वी भारत मिनी भारत है। 98 प्रतिशत भूटान और चीन बॉर्डर पर सड़क नहीं है, जो कृषि के विकास के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा कि उत्तर-पूर्वी भारत दैश का सबसे धनी क्षेत्र है। यहां 55 प्रतिशत क्षेत्र में जंगल है। उत्तर-पूर्वी भारत में अनेक प्रकार के नींबू, केला, अनानास, धान, बांस आदि पाए जाते हैं। उन्होंने उत्तर-पूर्वी भारत के विभिन्न जीव-जंतुओं के बारे में बताया कि वे किस तरह पर्यावरण के लिए उपयोगी और महत्वपूर्ण होते हैं।

इस अवसर पर पुस्तक का विमोचन भी हुआ। इसके साथ ही लोक परंपरा में पर्यावरण एवं जल संरक्षण विषय पर चंद्रशेखर सिंह, हर्ष चौहान एवं सच्चिदानंद भारती ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए।

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