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(बॉलीवुड के अनकहे किस्से) बदरूद्दीन ऐसे बने जॉनी वाकर

अपने कैरियर की शुरुआत में अभिनय के अच्छे अवसर न मिलने पर बलराज साहनी ने कई तरह के काम किए। उनके दोस्त चेतन आनंद ने अपनी फिल्म कंपनी ‘नवकेतन’ के बैनर तले बन रही फिल्म ‘बाजी’ की पटकथा और संवाद लिखने का काम उन्हें सौंपा। पारिश्रमिक तय हुआ चार हजार रुपये। इस फिल्म का निर्देशन कर रहे थे युवा गुरुदत्त की यह पहली फिल्म थी। बलराज को गुरुदत्त की लिखी कहानी कच्ची और धुँधली सी लगी। उन्होंने उसे सजाने-सँवारने के लिए छह महीने का समय माँगा। गुरुदत्त को जल्दी थी लेकिन चेतन की वजह से वह बलराज को कुछ कह नहीं पाए, लेकिन मन-ही-मन कुढ़ते रहे। दोनों के बीच विभिन्न दृश्यों को सुधारने के लिए घंटों बहस होती। आखिर दोनों लोग फिल्म के ‘क्लाइमैक्स’ (अंतिम दृश्य) को लेकर बुरी तरह उलझ गए। दोनों को कोई राह नहीं सूझ रही थी। इसकी राह निकाली लेखक/निर्देशक जिया सरहदी ने जो बलराज के घर के पास एक होटल में रह रहे थे। जिया ने एक अमेरिकी फिल्म के आधार पर ‘क्लाइमैक्स’ सुझाया जो गुरुदत्त और बलराज दोनों को बेहद पसंद आया। सोचा गया व्हिस्की मँगाकर खुशी मनाई जाए। तीनों ने अपनी जेबों में हाथ डाले….लेकिन कड़की के मारे…तीनों बेचारे…कहीं कुछ न मिला… खैर…।

इस फिल्म में बलराज ने ‘बदरू’ को ध्यान में रखकर शराबी का एक छोटा सा रोल ‘विशेष तौर’ पर लिखा था। बदरू यानी ‘बदरूद्दीन’ से उनकी मुलाकात हलचल फिल्म के सेट पर हुई थी जहाँ वह खाली समय में शराबी, जुआरी और मजमा लगाने वालों की नकल उतारकर सबका मनोरंजन करता था। एक दिन बलराज ने उन्हें डाँटते हुए कहा कि चार रुपयों के लिए तुम यह क्या बंदरों जैसी हरकतें करते रहते हो। तुम्हें शर्म आनी चाहिए। बदरूद्दीन ने सहमते हुए कहा कि शर्म तो आती है लेकिन… तब बलराज ने उनसे वादा किया कि वे उन्हें उनकी काबलियत के मुताबिक काम दिलाएँगे। बलराज जब भी माहिम से गुजरते, बदरू उनकी मोटर-साइकिल रोक उन्हें अपने वादे की याद दिलाते। ‘बाजी’ में उन्होंने उनके लिए किरदार तो लिख लिया, लेकिन वह उन्हें ही मिले इसके लिए उन्होंने बदरू के साथ मिलकर एक योजना बनाई। एक दिन जब चेतन, देव आनंद, गुरुदत्त और बलराज नवकेतन के दफ़्तर में बैठकर कुछ सलाह-मशविरा कर रहे थे कि तभी वहाँ एक शराबी घुस आया। उसने देव आनंद को अंट-शंट बकना शुरू कर दिया। पहले तो सब चौंके, लेकिन शराबी ने अपनी हरकतों से ऐसा समा बाँधा कि उन सबके साथ पूरा आफिस हँस-हँसकर पागल हो गया। आधा-पौन घंटा बीत जाने पर चेतन को आफिस की मर्यादा का ख़्याल आया। जैसे ही शराबी को निकालने का आदेश हुआ तो वह बलराज के इशारे पर सबको सलाम ठोंक सावधान की मुद्रा में खड़े हो गए। कुछ समय पहले शराब के नशे में डूबा आदमी अब पूरी तरह होश में था। अपनी तरफ़ देख रहे चेतन को बलराज ने सारी सच्चाई बता दी। उन्हें फौरन यह रोल दे दिया गया। यह बदरू ही आगे चलकर जॉनी वाकर बन फिल्मी दुनिया पर छा गए। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आगे भी शराबी की कई यादगार भूमिकाएँ करने वाले और शराब के एक मशहूर ब्रांड पर अपना नाम रखने वाले बदरू ने अपनी पूरी ज़िंदगी शराब को चखा तक न था।

चलते चलते: बलराज ने ‘बाजी’ में छह गानों की जगह रखी थी लेकिन गुरुदत्त ने इन्हें बढ़ाकर नौ कर दिया था। बलराज को यह बात बुरी लगी और गुरुदत्त के साथ उनके संबंध फिर कड़वे हो गए। ‘बाजी’ हिट रही। देखते-देखते देव आनंद गीता बाली, गुरुदत्त, साहिर लुधियानवी (फिल्म के गीतकार) और सचिन देव बर्मन प्रसिद्धि के शिखर पर जा पहुँचे। पर बलराज की कोई विशेष चर्चा नहीं हुई। चेतन ने उन्हें अपनी एक अगली फिल्म ‘सोलह आने’ के भी संवाद और पटकथा लिखने के लिए दिए थे, कुछ समय उन्होंने उस पर काम भी किया लेकिन पटकथा लेखकों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार न होने के कारण उन्होंने इसे पूरा ही नहीं किया।

(लेखक, राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)

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